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उधारी के धंधे में सुख का... २८७ व्यापार की शोभा भी नॉर्मेलिटी.. ३०० कौन सी दृष्टि से जगत् दिखे... २८९ समता का एडजस्टमेन्ट... ३०३ 'सुनार,' कैसी गुणवान दृष्टि २९० लक्ष्मी, स्पर्श के नियमाधीन ३०५ यह कैसी रिसर्च, कि भगवान.. २९२ जहाँ अभिप्राय, वहीं उपाधि ३०६ अवकाश, धर्म के लिए ही... २९२ सही या गलत, उसका थर्मामीटर..३०६ नुकसान बता देना, उधार तो... २९३ 'गलत' बंद करके तो देखो ३०७ दोनों को जवाब अलग-अलग २९३ फायदा नहीं, लेकिन यह तो... ३०९ चोरियाँ होने दीं, हिसाब चुकाए २९५ हिसाब से बटवारा, उसमें... ३१० दंड का भान हो, तभी गुनाह... २९६ व्यापार, न्याय-नीति से होनी... ३११
२०. नियम से अनीति नियमपूर्वक अनीति.... ३१३
२१. कला, जान-बूझकर ठगे जाने की ...वहाँ पर ज्ञानी जान-बूझकर... ३२३ जान-बूझकर धोखा.... ३२९ ठगे गए, लेकिन कषाय नहीं... ३२३ भोजन करके जाने दो ३३० खरीददारी, लेकिन ठगे जाकर ३२४ जान-बूझकर धोखा खाना ३३२ ...परिणामस्वरूप विज्ञान प्रकट...३२६ ...और जान-बूझकर ठगना... ३३३ ...लेकिन इसमें हेतु मोक्ष का... ३२६ जगत् में, सिद्धांत स्वतंत्रता का ३३३ ...परिणामस्वरूप कौन सी... ३२९
२२. वसूली की परेशानी और ज्ञानी ने दुनिया को कैसा.. ३३४ लक्षण कैसे? मानी के! लोभीके!३४० उसका हिसाब कुदरत चुकाएगी ३३५ जिसने उधार दिया, उसी ने... ३४२ पैसा वापस लेने में विवेक... ३३६ यदि वसूली करेंगे तो दोबारा...३४४ लोभ भी आर्तध्यान करवाए ३३८ ...तब भी रुपये की चिंता ३४५ समझदारी, दूसरा नुकसान नहीं...३३९ ...उसमें अपनी ही भूल ३४५
२३. रुकावट डालने से डलें अंतराय उपादान ‘निश्चय' का, आशीर्वाद... ३४७ औरों को रुकावट डालने से ३४९ सोचने से डले हुए अंतराय... ३४८ कितनी बड़ी भूल!... ३५१