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प्रात्मा और पुद्रलका अनादि-सम्बन्ध
( लेखक-श्री लोकपाल )
आत्माका स्वभाव पुद्गलसे एकदम भिन्न है। केवल मानकर ही न चले किन्तु समझकर माने आत्मा चेतन तथा अमूर्तीक है और पुद्गल जड और तदनुसार चले जिससे श्रद्धान और दृढ एवं तथा मूर्तिक । आत्मा पुद्गलका सम्बन्ध स्वभा- पक्का तथा पुर-असर हो । जब आत्मा और पुद्वतः नहीं होना चाहिए। स्वभावसे आत्मा कभी गलकी प्रकृति नहीं मिलती, एकतरफसे सांसारिक भी पुद्गलका साथ नहीं चाह सकता और पुद्गल भाषामें दुश्मनी ही है तो फिर यह मेल-मिलाप तो इच्छाविहीन जड ही है उसे क्या ? जहाँ चाहे और बंध वगैरह क्यों ? आत्मा स्वभावतः ही रख दीजिए या लगा दीजिए। फिर ऐसी हालतमें पुद्गलसे मिलना या बंधना नहीं चाहता, न चाह यह जो कहा जाता है कि यात्मा और पुद्गलका सकता है यदि एकबार वह निर्मल-परम विशुद्ध सम्बन्ध अनादि कालसे चला आता है-पुद्गलसे होजाय । फिर पुद्गलमें कौन-सी शक्ति है कि उसने श्रात्मा बंधा हुआ है-यह क्यों और कैसे है ? आत्माको बांध रखा है, जबकि वह स्वयं जड है इसका समाधान अब तक ऐसा ठीक-ठीक तथा तब ऐसा क्यों होता है ? यह प्रश्न ऐसा है विशेषरूपमें नहीं हो पाया जिससे सचमुच आदमी कि किसी भी समझदार आदमीके दिमागमें उत्प
न्न हुआ करता है जब वह सिद्धान्तका पीछा करते २ हूं । पात्रता, रुचि, मंस्कारादिके अनुसार दोनोंका यहां तक पहुँच जाता है। फिर उसे प्रायः यह उपयोग करता हूं । बुद्धिको भी खुराक देता हूं नमझकर संतोष कर लेना पड़ता है कि किसी भावनाको भी खुराक देता हूं। हां! दोनों राहोंकी सर्वज्ञने ऐसा कहा है इसलिए ऐसा ही होगा और बराइयोंको हटानेकी पूरी चेष्टा भी करता हूँ। यह बात केवल जन्मजात विश्वाससे ही हो सकती
मैं समझता हूं कि इस लम्बे-चौड़े खुलासेसे है जो केवल एक जैनीके दिलमें ही हो सकती है। पाठक मेरे विचारोंको स्पष्ट समझ जायेंगे, मुझे उग्र- दूसरे इसे क्यों मानने लगे। तुम यदि अपने सर्व बुद्धिवादी या उग्र भावनावादी समझकर भ्रममें न ज्ञकी व्याख्या नहीं कर सकते तो फिर मेरा ईश्वर रहेंगे। वास्तबमें मैं कल्याणवाद या सत्यवादका ही कौन खराब है । मैं ही क्यों फिर अपने ईश्वरको प्रचारक हूं जिसमें विज्ञान और धर्म, बुद्धि और छोडूं जब तुम भी वहीं आकर रुक जाते हो। भावना दोनों ही समन्वित होते हैं।
भाई, यहां तक तो बात मानने लायक हो भी सकती सत्याश्रम वर्धा
सत्यभक्त है कि आत्मा है और पुद्गल है और दोनों भिन्नता०२२-५-४६
भिन्न हैं-इत्यादि । पर जब दोनोंका स्वभावNature-प्रकृति एकदम विपरीत-भिन्न-भिन्न