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किरण ७-८]
जैन धातु-भूतियों की प्राचीनता
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रामसिंहजीकी मार्फत उन्हें प्राप्त की और बीकानेरके संघने पार्श्वनाथ प्रभुका जिनालय बनवाके उक्त वासुपूज्य मंदिरमें वे रखी गई । इनमें वासुपूज्य चमत्कारी मत्तिको उसमें स्थापित की हाल ही में में भगवान्की चौवीसी मति तो अब भी मंत्रीश्वरके घर उक्त मूत्तिका दर्शन करके आया हूँ । प्रतिमा गुप्तदेरासरके मंदिर में पूजित है। बाकीकी मूर्तियोंको कालकी मालूम देती है । एक कान कुछ कटा हुआ संख्या अधिक होने व नित्य पूजा करनेको असुभोता है। प्रवाद है कि खानने यह सोनेको हे या पीतल समझ उन्हें स्थानीय चिन्तामणि मंदिरके भूमिगृहमें की परीक्षाके लिये यह हिस्सा कटवाके देखा था। रखी गई है जिन्हें समय समय बाहर निकालकर ३. पिंडवाडेकी जिन आठवीं शतीको धातु पूजा की जाती है। हमने इन सब प्रतिमाओंके लेख मृत्तियोंका उल्लेख ऊपर किया गया है उनक अपने बीकानेर जैनलेखसंग्रह प्रन्थमें दिये हैं।
विषयमें भी मुनि कल्याणविजयजीने लिखा है कि२. मारवाड़का प्राचीन नगर व प्राचीन गुजरात "प्रस्तुत धातु मूर्तियाँ वि० सं० १६५६ में वसंकी राजधानी और श्रीमाल आदि जातियों के उत्पत्ति तगढ़के जैनमन्दिरके भूमिगृहमें थीं जिनका किसीको स्थल, भीनमाल नगरमें पार्श्वनाथप्रभकी सपरिकर पता नहीं था, परन्तु उक्त वषमें भयंकर दुष्कालका मर्ति है, जिसे मुसलमानोंके आक्रमणक समय भयसे
समय था, धनके लोभस अथवा अन्य किसी कारण भूमिगृहमे रख दी गई थी। संयोगवश मकान खोदत से पुराने खण्डहरोंकी तलाश करनेवालोंको इन जैन हुए उस भूमिगृहका पता चला व उसमें से उक्त पार्श्व .
मूर्तियोंका पता लगा। उन्होंने तीन बार मूर्तियोंके प्रतिमा, महावीरके पीतलमय समोवसरण, शारदादि
अंग तोड़कर उनको परीक्षा करवाई और उनके
सुवर्णमय न होनेके कारण मूर्तियोंको वहीं छोड़ ८ विद्यादेवियोंको मूर्तिये प्राप्त हुई । जब उसका
दिया। पता स्थानीय हाकिमको लगा तो उसने अपने सूबेदार यद्यपि उपर्यत उद्धरणोंसे लोभवश धातु मूतिजावालके गजनीखॉनको इसकी सूचना दी। उसने इन योंकी देशा करनेका प्रमाण मिलता है फिर भी जन धातु मतियोंको अपने यहाँ मंगवाकर इन्हें गलाकर मर्तिकलाको दृष्टिसे इन सर्व धातुकी मूर्तियोंका हाथियोंके गलेके घटे बनवानका विचार किया जनम्घ बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक ता धातु घसीजने उस बहत समझाया ४हजार रुपए तक घंटे न कर. ता कम है। अतः ये अधिक काल तक सुरक्षित वानेके लिए देनेको कहलवाया पर गजनीखांनने नहीं रहती है, लेख भी साफ खुदते हैं। दूसरे इनको माना और लोभवश लाख रुपये देनेको कहने बनानेमे खर्च कम पड़ता है। इसी कारण ये हजारोंकी लगा । श्रावकलोग निराश होकर आगये और संख्यामें प्राप्त है। छोटो होनेसे हरेक स्थानमें रखने जहाँ तक प्रतिमा प्राप्त न हो विविध अभिग्रह व लाने लेजानेमें भी सुभीता रहता है। कलाकी दृष्टि धारण किये । पर जांगसेठने तो अन्न खाना भी छोड़ से देखा जाय तो जितनी विविधता इनमें पाई जाती दिया। इधर अधिष्ठायकदेवने गजनीखांनको चम- है पाषाणकी मर्तियोंमें नहीं पाई जाती। एकल, कार दिखाया। शहर में मरकीका उपद्रव फैला व कायोत्सर्गस्थित, त्रितीर्थी, पंचतीर्थी, चौवीसी खांनको भी व्याधिने आ घेरा । प्रजाने भी मूर्तियोंको आदि प्रकार तो है ही पर परिकरादि बाह्य उपकरणों में भीनमाल पहुँचानेका अनुरोध किया अतः प्रभुको कलात्मक विशेषताएँ भी हैं। C.P.प्रान्तकी व गुप्तहाथ जोड़ क्षमा मांगकर खानने भीनमाल पहुँचादी। कालकी धातु मर्तिये बहुत ही मनोहर है । खेद है
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इनमेंसे कुछ लेख मूर्तियोंके ब्लाकके साथ हमारे सम्पा- दिव राजस्थानी पत्रिकामें प्रकाशित हैं।
विशेष जाननेके लिये जैनसत्यप्रकाश प० १२-१३ में प्रकाशित स्तवन देखें।