Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 463
________________ ४२४ भनेकान्त वर्ष १० हुए हैं उतने और किसी तरहसे भी नहीं । यही कोही ठोक नहीं जान पाते हैं तो उनके ऊपर निर्भर संसारका इतिहास कहता है और यही बात सभी (आधारित) या उनसे ही बननेवाली दसरी जो जगह जाहिर है-मले ही इसे हम समझ कर भी न बाते (Theories)तथ्य या सिद्धान्त कही जायंगी वे समझे या जान बूझ कर भी अनजानो करदें, यह कैसे ठीक हो सकती हैं। जितना जितना हम तत्वों दूसरी बात है । पर बात है यही और सभी समझ (elements)को ठीक ठोक जानते जायेंगेहमारी बातें, दार इसे जानते और मानते है। जिन्हें हम ननपर निर्धारित सिद्धान्तों ( Theories) पर जब हजारों वर्षोंसे ऐसा ही होता आया है के रूपमें कहेंगे, उतनो ही अधिकाधिक ठाक होती और इसने काफी जड़ पकड़ रखी है तब आखिर जायगी। जिसममय हमें तत्त्वों(elements)काएकदम इसे दूर भी कैसे किगा जा सकता है ? यह एक टेढा ठीक ठीक सच्चा एवं पक्का बोध हो जाय उस सबाल है, जिसे हल करना आसान नहीं। कोरे समय उन पर निधारित जो Theory या बात कही आदशवादके रूपमे ( Theoratically ) तो हम जायगी वह एक दम ठीक होगी। अतः सबसे पहले सब कुछ कह लेते हैं या कह सकते है पर व्यवहारतः यह जरूरी है कि हम जान लें कि संसार क्या है { practically) कैसे और कहां तक और कैसे बना है अथवा इसकी बनावटमें वस्तुतः संभव है यही उपाय खोजना जरूरी है। हमारे किन किन वस्तुओं (elements ) का संयोग है। धार्मिक शिक्षकोंका अपना श्राचरण इतना ऊँचा उन वस्तुओंका असल स्वरूप जानना सबसे पहले रहा कि कभी उनका ख्याल नीचे नहीं गया। लोग परम आवश्यक है। तभी आगे कुछ हो सकता है। स्वयं ही सनसे प्रभावित होकर उनके पीछे चलने और तभी आगे जो कुछ इस विषयमें कहा जायगा लगे और दूसरोंको भी चलाने लगे। अधिकतर ठीक होगा । अन्यथा नहीं। धर्मों में यही तथा ऐसा ही हुआ है। और इमी अधिकतर धर्मा में यही प्रारम्भिक गलती की कारण बादमें चलकर विकार धीरे धीरे बढ़ते बढ़ते गई है, जो सारे अनर्थोंको जड़ है। लोगोंने जो काफी बढ़ गये। और फिर अंतमें उनको दूर करना दृश्य जगतमे आंखोंके सामने देखा उसे ही असल या एक दम हटाना असंभव सा ही हो गया। कुछ या मूलभत (elementery ) मान लिया, बगैर कुछ सुधारक कभी कभी हर धर्म में बादको भी समय उसकी गहराई में गए अथवा उसकी खोद-कुरद समयपर हुए है और होते रहे हैं पर परिस्थिति-वश (analysis ) किए हो । यही सारी गलत भाववे भी कुछ कान्तिपर्ण सुधार नहीं करसके । सधारमे नाओंका मृल-कारण ( Root cause ) है। इसे कुछ गति हुई भी तो फिर धीरे धीरे समय के बढ़ावेके ठीक करना होगा। और यह तभी ठीक हो सकता साथ रफ़्तार बेढंगी होते होते वहीं पहुँच गई और है जब हम तथा हमारे विद्वान लोग हठधर्मी (bias) सारे सधार लुप्त होगए या सुधार ही विकारमें छोड़ कर तथा अपने ज्ञान-द्वारको सब ओरसे खला परिणत होकर हानिप्रद बन गये, इत्यादि । अाखिर रखें और हर बात पर खुले दिजसे अनेकान्तात्मक इन सब अव्यवस्थाओंका प्रधान कारण क्या ? विवचन करें। और तभी हम किसी इनका प्रधान कारण है संसारके कारणभूत पहुँच सकेंगे और संसारको अव्यवस्थाओंका उचित या मुलभत तत्त्वों ( elements )का ठीक ठाक रीतिसे समाधान एवं निराकरण कर सकने में ज्ञान नहीं होना । जब हम तत्त्वों ( elements | समर्थ होंगें ।

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