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किरण ११-१२ ] मोहनजोदड़ोकी कला और श्रमण-संस्कृति
४४५ के कारण सम्राट सम्प्रतिका जैन इतिहास में वही चिह्न वैसा ही है जैसा कि मौर्यवंशी राजाओंकी स्थानहै जो सम्राट अशोकका बौद्ध इतिहास मे हैं। मुद्राओंपर मिलता है । इन बातोंके अतिरिक्त यह इसके लिए हेमचन्द्राचार्यकृत परिशिष्ट पर्व विशेष बात भी ध्यानमें रखने योग्य है कि उक्त स्तम्भोंपरदर्शनीय है। इन हालात में स्वभावत: यही सिद्ध की पैलकी मूर्तियां मोहनजोदड़ो वाली मोहरों और होता है कि उक्त सिक्कोंपर जो हाथी और सिंह टिकड़ोंपर उत्कीर्ण बैलकी तरह खड़े आकारकी के चिह्न बने हुए है वे अवश्यमेव जैनसंस्कृतिसे घनिष्ठ हैं। यह शिवके प्रसिद्ध नन्दी चैलको तरह बैठे सम्बन्धित हैं। जैसा कि पीछे कई स्थलोंपर बत- आकारकी नहीं हैं। अपभ भगवानका चिन्ह, जैसा लाया जा चुकाहै, हाथी दूसरे तीर्थ कर अजितनाथका कि उसकी समस्त प्राचीन और नवीन मूर्तियोंसे चिह्न है और सिंह अन्तिम तीर्थ कर महावीरका सिद्ध है, प्रायः खड़े आकार बैलका चिन्ह है। चिह्न है।
(५) सारनाथका Lion Capital चौवीस ___(४) बिहार प्रांत के चम्पारन जिलेके रामपूर्वा आरों वाला धर्मचक्र वृषभ और घोड़े के चित्र। लौरिया, नन्दनगढ़ और मुजफ्फरपुर जिले के कोल्हु.. इन जन्तुओंके टिकड़े जिस बड़ी संख्यामें
आ स्थानोंमें मौर्य राजवंशियोंद्वारा स्थापित किए मोहनजोदड़ोके सभी गृह क्षेत्रोंसे मिले हैं उनसे हए जो २३०० वर्ष पुराने पचास पचास फुट ऊचे यह निभ्रान्ततया सिद्ध है कि जैसे जैन संसारमें एक पाषाणीय स्तम्भ खड़े हुए मिले हैं उनपर वृषभ तीर्थङ्करोंके प्रतीकरूप पशु अथवा वृक्ष आदि
और सिंहकी बड़ी-बड़ी मनोज्ञ मूर्तियां रक्खी हुई चिह्न दीघ संसर्गके कारण मूर्तियोंके समान ही हैं ? यद्यपि इन मूर्तियों अथवा स्तम्भोंपर किसी विनय और भक्तिकी वस्तु बनगए हैं वैसे ही मोहनप्रकारके कोई लेख अङ्कित नही है, तो भी इस जोदड़ोके टिकड़ोंपर उत्कीर्ण जन्तु ओंके चित्र बात को ध्यानमें रखते हुए कि मौर्यवंशका कुलधर्म योगी महापुरुषोंके प्रतीक होने के कारण प्राचीन जैन धर्म था. यह बात निर्विवाद रूपसे कही जा भारतमें विनय और भक्ति की वस्तु थे और श्रद्धाल सकती है कि ये स्तम्भ आदि और अन्तिम जैन गृहस्थी जन इन्हें अपनेको अनिष्ट कर घटनाओंसे तीर्थकर वृषभनाथ और महावीरकी हो शुभ स्मृति बचाने के लिए मन्त्रोंकी तरह प्रयोगमें लाते थे । में खड़े किए गए है, क्योंकि वल वृषभनाथ भगवान श्री जॉन मार्शलने भी इन टिकड़ोंपर उत्कीर्ण जन्तु
और सिंह महावीर भगवानके प्रसिद्ध चिह्न है। ओंके सम्बन्धमें अपना मन्तव्य देते हुए उपयुक्त इसके अतिरिक्त कोल्हुश्रा प्राम, जहांपर एक सिंह- मतकी ही पुष्टि की है। स्तम्भ खड़ा हुआ मिला है, भगवान महावीरस दाक्टर प्राणनाथ-नागरी प्रचारिणी पत्रिका, विशेषतया सम्बन्धित है। पूवकालमे यह प्राचीन
___ भाग १६, अंक १, पृ० ११४, वैशाली नगरकी एक निकटवर्ती वस्ती थी-जहां
२"No other hyoPthesisaccounts for भगवान महावीर का जन्म हुआ था। रामपूवा वाल the numerous specimens of these aniसिंह-स्तम्भपर वृषभ और तीन महराबवाले mals seals found distribution over चैत्यक चिह्न भी बने हुए है । यह चैत्य- almost every building on tine site as
compared with the small number of clay १ परिशिष्टपर्व-हेमचन्द्राचार्य श्लोक ६६-१०२।।
sealings, not does any other hypothesis Archeological Survey of India- accounts for the religious character of New Imperial Series Vol LI-Bihar many of the devices engraved on them and Orissa 1931.pp5-29.
..... we are forced to the conclusion