Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 485
________________ ४४४ अनेकान्त [ वर्ष १० कथन अनुसार उस समय अग्रोहामें राजा दिखा- दसरी ओर सिंहके प्रतीक अङ्कित है। हाथीके ऊपर कर राज्य करते थे। वे श्रीलोहाचार्य के शिष्य होगए चैत्यका आकार बना हुआ है और सिंहके ऊपरकी थे। उनके अनुकरण में अन्य बहुतसे अग्रोहा निवा- ओर स्वस्तिक और सामने की ओर चन्द्रसहित सियोंने जैनधर्म स्वीकार किया । अप्रवाहोंमें चैत्यके आकार बने हैं। बहुतसे लोग जैनधर्मके अनुयायी हैं,ये सब श्रीलोहाचार्यको अपना गुरु मानते हैं। श्रीविहारीलाल जैनने __ चन्द्रसहित चैत्याकार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्यका राजचिह्न है,जो आकार पीछेके सभी मौर्यवंशी भी अपने "अग्रवालइतिहास" में 'जैनप्रन्थों के आधार पर उक्त मतकी पुष्टि की है। राजाओंका राजचिह्न हो गया था। तक्षशिलासे प्राप्त एक सिक्केपर, जिसे श्री कनिंघमने अपनी 'भारतके जैन पट्टावलियोंके अनुसार लोहाचार्य नामके प्राचीन सिक्के' नामक पुस्तकमें प्रकाशित किया, दो आचार्य होगए हैं। इनमें प्रथम लोहाचार्य अपर चन्द्रसहित चैत्यकी आकृतिके नीचे स्वस्तिकका नाम सुधर्माचार्यश्रीगौतम गणधरके बाद वीरनिर्वाण चिह्न भी बना हुआ है। इस सिक्केकी एक ओर सम्बत् २८ में जैनसंघके आचार्य हुए; दूसरे प्राचार्य भद्रबाहु द्वितीयके शिष्य थे जिनको वोर निर्वाण सं० Ho 'साम्प्रदि और दूसरी ओर "मौर्यो' शब्द उल्लि६८३ वषे बाद १५६ ई० सन्में स्वर्गवास हआ था। बित है। डा० जायसवाल के मतअनुमार । यह ये दक्षिणदेशस्थ भद्दलपुरसे विहार करते हुए सिक्का स्पष्टतया सम्राट अशोक के पौत्र साम्प्रतिका अग्रोहा आये थे और दिवाकरको जैन धर्मकी दीक्षा सिक्का है । इस कथन से पूर्णतया सिद्ध है कि तक्षदी थी। शिलाका उपयुक्त सिक्का भी-जिसपर चन्द्रसहित ___ 'अप्रवैश्य वंशानुकीर्तनम्' का भी राजा दिवा. चैत्य और स्वस्तिकके साथ-साथ हाथी और सिंहरकका उल्लेख करना और उसे जैन बनाना सूचित के चिन्ह भी अङ्कित हैं-मौर्यवंशी राजाओंके सिक्के हैं। सम्भवतः ये सम्राट् साम्प्रति अथवा उत्तरा करता है कि जैन अग्रवालोंमें प्रचलित अनुश्रति धिकारियोंके सिक्के हैं। यह बात भली भांति प्रमाऐतिहासिक तथ्यपर आश्रित है। णिन है कि मौर्यवंशी राजाओंका कुल धर्म सम्राट इस तरह उक्त सिक्के दिवाकरराज्यकालीन इ० अशोकके अन्तिम जीवनके कुछ वर्षे छोड़कर शुरू सनकी दूसरी शताब्दोके हैं, जिनपर प्राचीन जैन से आखिर तक जैनधर्म रहा है। जैनधर्म-प्रचार संस्कृति की मान्यता अनुसार वृषभ, सिंह भौर त्य वृक्षके चिह्न अङ्कित किए गये हैं। ४. The coins of India by Brown, फलक १ सिक्का नं०५ (३) इसीप्रकार तक्षशिलासे प्राप्त हुए सिक्कों में * Ancient Coins of India by Cunninकई सिक्के ऐसे हैं जिनकी एक बार हाथी और gham Plate II Coin no.२० १. अग्रवाल इतिहास विहारीलाल जैन पृ.११, १२. ६. Modern Review-June 1934 P.647 २. (अ) षटखण्डागम, धवला,टीका प्रथम पुस्तक ७. (अ) Jainism an early faith of प्रस्तावना प्रो. हीरालाल अमरावती १६३७ पृ० Ashokaby G. E. Thomas, P. 23६४.-७१. टामसाहबने लिखा है कि चन्द्रगुप्तके समान उसके (श्रा ) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ( देखें जैनसाहित्य संशो पुत्र बिन्दुसार और पौत्र प्रशोक भी जैनधर्मावलम्बी थे। इसके लिये उन्होंने मुद्राराक्षस, राजतरंगिणी धक खण्ड १ अंक ४, वीरनि० सं० २४४६ पृष्ठ १४६) और श्राईने अकबरीके प्रमाण दिये हैं। ३. अमवालजातिका प्रचीनइतिहास (सत्यकेतु) पृ.११७ (भा) अशोकके अभिलेख ।

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