Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 488
________________ किरण ११-१२ ] मोहनजोदडोकी कला और श्रमण-संस्कृति वार्षिक रिपोर्ट १६३०-१९३४, प्रकाशित १६३६ सिन्ध देशकी प्राचीन धार्मिक सभ्यताजिल्द १ पृष्ठ ३०-इसमें राजगृहके मन्यारमठके अब देखना यह है कि ५००० वर्ष पूर्व सिन्ध ऊपरी तीन स्तरोंकी खुदाईसे जैन कलाकी जो वस्तुएं देशमें रहनेवाले लोग किस प्रकारको धार्मिक संस्कृति में प्राप्त हुई हैं उनमे निम्न चीजें भी शामिल है- के अनुयायी थे। यह जाननेके लिए हमारे पास टूटी हुई जैन मूर्तियों के दो शिर और एक धड़, उस पुरातात्विक सामग्रीके अतिरिक्त जो मोहनलाल पत्थरका टूटा हुआ एक शिलाखएढ जिसपर जोदड़ों और हड़प्पाकी खुदाईसे मिली है और कोई इसाकी दसरी शताब्दीके एक अभिलेख-सहित साधन आज पर्याप्त नहीं है। इस सामग्रीपरसे विपुलाचलपर बैठे हुए महाराज श्रेणिककी एक मूर्ति निस्संदेह यह निष्कर्ष निकता है कि पुराने जमाने बनी है । एक और घड़ा हुआ शिलाखण्ड जिसपर में सिन्धवासी लोग लघु एशियाके देशों में बसने ईसाकी तीसरी सदीके अभिलेख सहित एक ओर वाली पुरानी जातियों की तरह धरती माताको महाआठ नागफणधारी पुरुषोंकी मूर्तियां हैं और दूसरी देवी जगदम्बा मानते थे। वे अपने पूर्व पुरुषों और ओर तीन खड़े पुरुषोंकी मूर्तियां हैं। यह खण्ड माताओंके उपासक थे। वे उन्हीं को अपनी वस्तियों किसी जैन मर्तिका टूटा हुआ निचला खण्ड मालूम के संरक्षक मानकर देव-देवियोंके रूपमें उनकी उपाहोता है, जिसपर मूर्ति के प्रतिष्ठापक उपासकोंकी सना करते थे । उनका मत था कि यह चराचर आकृतियां अङ्कित है। सृष्टि पुरुष स्त्रीरूप आकाश-पृथ्विीके सम्मेलसे दोनों युगके कलाकारोंने अर्हन्तोंके प्रति यक्ष-यक्ष उत्पन्न हुई है। इस आशयसे वे लिङ्ग और योनिको णियों की अनुपम भक्ति दर्शाने के लिए उनकी अनेक भी पूजते थे। परन्तु इतने विवेचन मात्रसे हमारा अन्वेषणकार्य खतम नहीं हो जाता। हमें देखना सुन्दर अलंकृत मूर्तियां निर्माण की हैं। इनमेंसे कितनी ही स्तूपों और देवालयोंके स्तम्भोंपर उत्कीर्ण यह है कि क्या उस जमानेके लोगोंका दार्शनिक की गई हैं । हस के लिये देखें विकास यहांतक उठकर ही रहगया था या उन्होंने इससे भी भागे बढ़कर किसी आध्यात्म-संस्कृतिको (अ) वही Epigraphica India पृ० ३१२ भी अपनाया था। इसका समाधान इधर-उधरकी इसपर एक आयागपट्टका चित्र दिया हुआ है। कल्पनाओंसे न करके स्वयं टिकड़ोंपर उत्कीर्ण इसमें एक एक स्तूपके सामने दो नाचती हुई यक्ष योगीजनकी मूर्तियोंसे ही करना अधिक प्रामाणिक णियों को दिखलाया गया है। और लाभदायक होगा। (आ) वही Epigraphica Indicaपृ० ३१६,३२१ फलक ३-इसमें अर्हन्तोंके उत्सवों में नाचती गाती इन योगियोंकी मूर्तियोंको यदि ध्यानसे मध्यहुई यक्षणियोंको दिखाया गया है। यन किया जाये तो पता चलेगा कि इनमें निम्न र लक्षण विद्यमान हैं:(इ) वही जैन स्तूप आदि वी० ए० स्मिथ १६०१ लप फलक १२, फलक ६०, फलक ६१, फलक ६२, फलक १. पुरुषाकार,२. शान्त तरुण मुद्रा,३. ध्यानारूढ़, ६३-इनमें तोरणद्वारों और स्तम्भोंपर अनेक सुन्दर ४. नासादृष्टि, ५. कायोत्सर्ग भासन-दोनों हाथ यक्षणियोंको दिखाया गया है। घुटनों तक सीधे लटकते हुए। ६.दिगम्बर वेश(ई) वही मोहनजोदड़ो, जिल्द १ फलक ११- निष्परिमहीपस्त्र-शस्त्रहित भृकुटिक्षेप-रहित । इसपर हड़प्पासे प्राप्त एक नाचते हुए यक्षको मूर्ति इन उपर्युक्त लक्षणोंसे स्पष्टतया विदित हैं कि । दिखलाई गई है। वे लोग निरे शाक्तवाद या पितृवादको ही मानने

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