Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 470
________________ चिट्ठा हिसाब 'अनेकान्त' दशम वर्ष ___ (जून सन् १६४६ से अगस्त सन् १८५० तक) अनेकान्तके इस १० वे वर्ष-सम्बन्धी आय-व्ययके हिसाबका चिट्ठा निम्न प्रकार है। पाठक देखेंगे कि इस वर्ष अनेकान्तको कितना अधिक घाटा उठाना पड़ा है और उसपरसे सहज ही यह अनुमान लगा सकेंगे कि साहित्य और इतिहासकी ठोस सेवा करनेवाले ऐसे पत्रोंके प्रति समाजको कितनी रुचि है। और ऐसी स्थितिमें कोई पत्र कितने समय तक जीवित रह सकता है। __ आय (जमा) व्यय (नाम) १२६७१) ग्राहक खाते जमा, जिसमें वो० पी०से प्राप्त ७१४)।। कागज खाते नाम इस प्रकार:__ हुआ पोष्टेज भी शामिल है। ३°३।।-)॥ धूमीमल धर्मदास कागजीको २६८/-) सहायता खाते जमा, जिसमें अकेली २० रिम २०४३० साइजके २४ २००) की सहायता सेठ सोहनलाल जो पौडी कागज बाबत दिये।। जैन कलकत्तासे प्राप्त हुई है । इस सहायता २३६)। भारतीय ज्ञानपीठ काशी को से प्रायः ५० लायबेरियों तथा जैनेतर उसके पिछले वर्षके बचे हुए कागज विद्वानोंको अनेकान्त फ्री भेजा गया है। ४। रिम कवर पेपर, १ रिम रैपर ११- फुटकर किरणोंकी विक्री खाते जमा। आदिकी बाबत दिए । २-)| रद्दी विक्री खाते जमा, जो प्रायः दैनिक ६८) दलीपसिंह रतनलाल कागजीको पत्रकी रद्दी बेचनेसे प्राप्त हए। २० रिम कागजको बाबत । कागज खात जमा, बाबत सवा रिम कवरपे ३११-) प० दरवारीलाल कोठियाको दो परके, जो खच होनेसे बचा हुआ है। रिम कागजकी बावत । ३०॥-) पर पेपर १ रिम खरीदा १६१०॥) १४)। २४७३॥) घाटेकी लगभग रकम, जो अनेकान्त पत्र १६४५) छपाई वधाई खाते खचे जिसमें रैपरकी को देनी है। छपाई भी शामिल है:४०.७/-|| १८४।) अकलक प्रेसको दिये। (४३०वें पृष्ठका शेषांश) १००) राजहंस को अर्थज्ञानमित्येतावति उच्यमाने प्रत्यक्षादा १६४५) वतिव्याप्ति:,अत उक्त वाक्यनिबन्धनमिति वाक्य निबन्धनमर्थज्ञानमित्युच्यमानेऽपि यादृच्छिक संवा- त्यभियुक्त वचनात् । तत प्राप्तवचनादिनिधनदिप प्रलंभकसंवादिप विप्रलभकवाक्यजनेष सुप्तो- मर्थज्ञानमित्युक्तमागमलक्षण निदोषमेव । न्मत्तादिवाक्यजनेषु वा नदीतीरे फलसंसगोदि- इस प्रकार सारा टिप्पण मलप्रथके सभी कठिन ज्ञानेष्वतिव्याप्तिः, अत उक्तं आप्तेति । प्राप्त- स्थलों और विषम पदोंका सरल शब्दोंमें रहस्योवचनिबन्धनज्ञानमित्युच्यमाने आप्तवाक्यकमके द्घाटन एवं अर्थ-स्पटोकरण करता है। इस टिप्पणश्रावण प्रत्यक्ष तिव्याप्ति:,अत उक्तं अर्थति। के प्रकाशमे आनेपर न्यायशास्त्रके अध्येताओं को अर्थस्तात्पयरूढ़ इति यावत , तात्पर्यमेव वचसी- बहुत सुविधा और सहायता प्राप्त होगी।

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