Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 472
________________ मोहनजोदड़ोकी कला और श्रमण-संस्कृति (लेखक-श्री बा० जयभगवानजी, एडवोकेट ) जैनसंस्कृतिके वास्तविक जन्मदाता- घट, २० कच्छप, २१ उत्पल, २२ शंख, २३ सर्प, भारतको प्राचीन सभ्यता और संस्कृतिकी २४ तह. उपयुक्त प्रतीकोंके अतिरिक्त प्राचीन चित्रजांच करने के लिये जैनियोंकी मूर्ति और चित्रकला लिपिके अनुसार तीर्थकरोको उन वृक्षों-द्वारा भी का महत्व कितना अधिक है, इसका कुछ परिचय दशाने की प्रथा प्रचलित है जिनकी छायामे वृषभ लेखकने वीरसेवामंदिर सरसावाके मासिक पत्र आदि चौबीस तीर्थंकरोंने दीक्षा धारण की थी या ध्या'अनेकांत' वर्ष ५ किरण १-२ के पृष्ठ १-१२ पर नस्थ होकर केवलज्ञान प्राप्त किया था और जो "जैनकला और उसका महत्व" शीर्षक लेखमें जैन साहित्य में चैत्यवृक्ष व दीक्षावृक्षके नामसे प्रसिद्ध दिया है। इस परिचय-द्वारा बतलाया गया है कि हैं। ये वृक्ष तीर्थंकरोंके क्रमसे निम्नप्रकार हैं:भारतीय श्रमणमंस्कृतिकी शैवशाखाकी तरह जैन १न्यग्रोध (बड़),२ सप्तपर्ण (देवदारु),३ साल, संस्कृतिके वास्तविक जन्मदाता वैदिक आर्य नहीं ४ प्रियालु (खिरनीका वृक्ष), ५ प्रियंगु (एक प्रकारबल्कि भारतके मूलवासी यक्ष, गंधर्व, नाग और की लता), ६ ध्वजवृक्ष, ७ सिरस, ८ नाग, मालती, राक्षस आदि द्राविड लोग हैं। उन्हींकी यंत्रों-मंत्रों १० पिलखन, ११ टिंबरू, १२ पाटल, १३ जम्बू वाली दृष्टिमेसे अध्यात्मवादकी सृष्टि हुई है। (जामुन), १४ पीपल, १५ दधिपर्ण, १६ नन्दीवृक्ष, उन्हींके अणिमा,महिमा, गरिमा भादि अनेक १७ तिलक, १८ श्राम, १६ अशोक, २० चम्पा, २१ अलौकिक ऋद्धि-सिद्धि-साधक कायक्लेशवाले बकुल ( मौलसिरि ), २२ वेनस ( बांस ), २३ धवा, साधनों व ध्यान-आसनवाले अनुष्ठानोंमसे योग २४ साल। साधनाकी उत्पत्ति हुई है। उन्हीं की पितृश्रद्धा और इसी प्रकार स्वस्तिक, धर्मचक्र और त्रिशंकु भारवीर-पूर्वजोंकी उपासनावाली वृत्तिमेसे अर्हन्तोंकी तीय श्रमण-सस्कृतिकी आध्यात्मिक मान्यताओं के उपासना, उनके चैत्य और स्तूप, उनकी मूर्तियां प्रतीक है, इसलिए भारतमें इन चिन्हों को सदा मन्दिर बनानेकी कलाका विकास हुआ है। उन्हींकी मंगलकारी माना जाता रहा है और भारतके प्राचीन प्राचीन लिपिके नियमानुसार जैनियों में आजतक कलाकारोंने अपनी कलाओंको इन चिन्हों-द्वारा अपने माननीय चौबीस तीर्थकरोंको निम्नलिखित खुब सुशोभित किया है। शुभ अवसरोंपर जैनी २४ प्रतीकों-द्वारा दशाये जाने की प्रथा प्रचलित है - लोग आज तक इन प्रतीकोंका प्रयोग करते आ __१ वृषभ, २ हाथी, ३ घोड़ा, ४ बंदर, ५ चकवा, रहे है। . ६ कमल, ७ स्वस्तिक, ८ चन्द्रमा, ६ मच्छ, १० वृक्ष, उपयुक्त लेखमें यह भी बतलाया गया है कि जैन ११ गैंदा, १२ भैंसा, १३ बराह, १४ सेही ( श्येन) साहित्य और संस्कृति में, जैनकला और पाख्यानों१५ वत्र, १६ हिरण, १७ बकरा, १८ मछली, १६ मे जो महत्वपूर्ण स्थान नाग, सुपर्ण, किन्नर, गंधर्व,

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