Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 466
________________ किरण ११-१२] जेसलमेरके भण्डारकी छानबीन स्थानमे लेजाए जा चुके है। होता । विवेक ग्रन्थ जैन है और वह जिसके ऊपर है ___ मैं इन मतियों के फोटो प्राप्त करने वाला हूँ। वह ग्रन्थ भी जैन होना चाहिये, पर वह प्रन्थ कौन ये दिगम्बर है या श्वेताम्बर, इसकी चिकित्सा है यह खबर अभी लगी नहीं। अमरचंदकी 'कविमैन की नहीं, और करना चाहता भी नहीं। सच्चा कल्पलता यह नहीं है क्योंकि विवेकची प्रति सं० बात कहिये तो प्राचीन प्रतिमानों में दिगम्बर श्व- १०५ में लिखी गई है। अमरचंद १३ वीं शताब्दीके ताम्बरका कोई चिह्न मिलता हो नहीं, दिगम्बर उत्तरार्धका विद्वान है। कविकल्पलता मिली नहीं, जैनके तौर पर उदारता करनी ही चाहिये। अन्यसब विवेकका प्रारम्भ इस प्रकार हैकी जाने वलो चिकित्सा निरर्थक है। सचित्र प्रतियों यत्पल्जवेन विवृतं दुर्बोध मन्दबुद्धिभिश्चापि । के फोटो भी मै लगा तथा महत्वके ग्रन्थोंके क्रियत कल्पलतायां तस्य विवकोऽयमतिसुगमः ।।शा फोटो लॅगा। एक बात बतलाता हूँ- द्वादशारकी सयाचन्दमसावति । "खद्योत पोतको यत्र सयापाथीमें पुष्पिकाके अन्तमे जो २ का अक जैसा चन्द्रमसावपि" इति पाठे, इत्यादि है। आता था वह क्या ? ऐमा प्रश्न हा था श्राप इससे कल्पलता मूल ग्रन्थहै, जिसके उपर 'पल्लव जानो कि वह दंड मात्र ही है। प्राचीन बारहवीं और दोनोंक ऊपर 'विवेक' है। विवेकका दूसरा सदोको प्रतिमें ऐसे हा दड-पर्ण विराम आत है। नाम 'पल्लवशेष' भी है। इस समय तो कापी २२या इममें मिलते ही ये दंड है। आदि-अन्तम तय्यार हो गई है। आनवालो आकृतियों आदिक फोटो जरुर लेन है। हमें तो इस समय सब विशिष्ट संचय करते हमारा काम कितना बाका है, इसक उत्तरम रहना चाहिये । बादको सब कुछ होजायगा। श्रीधरआप जानेगे कि हमें यहाँ आगामी माघ-फाल्गण की न्यायकंदलो क्या आपके संग्रहमें है। हो तो तक रहना चाहिये,तब और सतत काम करूगा तब मिलानके काम आवे। मेरे पास नहीं है तथा काम पूर्ण होगा। यहां प्राचीन प्रतियां एसी है कि मिला मिलतीनही । हो तो अवसरपर भेजेग । 'प्रमालक्षण' लेनके सिवा चलता ही नहीं और हमें दूसरे स्थान भी असल प्रति । उस भी मिला लगा। जहां तक पर वैसे प्रत्यन्तर मिलेंगे नहीं। अतः यहाँ जो हा बन सकंगा वह सब काम कर लूंगासोजानना । खास या है उसका काम यहीं कर लेना, जिसस अपना सूचनाके योग्य हो ता बतलाना । मार्ग सरल बन जाय । ओनियक्ति-द्रोणवृत्ति मं०१११७ की लिखी _हमारे यहा सामान्य गरमी है । लू वगैरह कुछ हुई है। इसी तरह दूसरे प्रथ है। ये ग्रंथ मिलाय नहीं, तथैव हमे एक स्थानपर स्थायी होकर बैठना बिना कैस रहना । हमने यहां से तीसरे वर्ष गजरात है अतः गरमी हमें सतावे ऐसा नहीं। जैसलमेरमे पहुंचनेका निर्धारण किया है। और आगमका बारह महीनेक घामको नक्की करके हीाना चाहिये। काम वेगवान चले वैसा सकल्प । द्वादशार (नयचक्र) भडारको सक्षित करूंगा, पुस्तकोंका संशोधन भी उस अर्सेमे छपजाय वह इष्ट है। बराबर करूगा, उसके बाद ही निकलूगा ।न्यायक विशेष फिर लिम्वगा। हमारे जिस भाइने यहांदली वगैरह बहुत बहत ग्रन्थोंकी प्राचीन प्रतियां के खर्च के लिपे २५०००) घर खर्च खाते लिखकर यहाँ है । तत्त्वसग्रहकी प्रति यहाँ बारहवीं शताब्दो दिवेआगये है, वे भी देखने सनने की इंतजारीको है, इस भी हम मिला लेवेंगे। से आये है। काव्य-कल्पना-विवेककी प्रति यहाँ पर है। यह विवेक किस ग्रन्थकं ऊपर है यह मालूम नहीं मुनि पुण्यविजय

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