Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 465
________________ ४२६ अनेकान्त [वर्ष १० आगमोंकी कितनी ही प्रतियां तो बहुत प्राचीन सम्मत पाठ कौन है इत्यादिका बोध होता है। आप और सरस हैं। यदि मैं यहां न पाया होता तो यह इन टुकड़ोंको देखेंगे तो खुश हो जायगे। और काम अधूरा एवं अपूर्ण हो रहता । दशवैकालिक यह मालम होता है कि हम नसीबवान है। चणि छप गई है उसकी प्राचीन प्रतियां पाटणमें विविध सामग्रो मिलती रहती है। द्वादशारकी भा है उससे मिलानेके लिये मै अपनो प्रति यहाँ पोथी तथा अन्य कोई यहां नहों। बौद्ध ग्रंथ भी ल पाया हूँ । यहाँको प्राचीन प्रतिके साथ मिलाया खास यहां नहीं है, दो चार हैं। न्याय-विन्दु तब भवाड़ा (गड़बड़घुटाला) असा लगा । आप टीका आदि अमुक ग्रन्थ है। यह जान कर आश्चर्य करेंगे कि मुद्रित और अपने यहां जितने नथ प्राचीन है उनके आदि-अन्तके भंडारकी प्राचीन प्रतियोंक अन्तभागमें एक ताड तार पत्रोंके फोटो जरूर लिए जाने चाहिए, जिससे पत्रीयपत्र-जितना पाठ हो नहीं है। यहांको पाथी- विवाहित प्राधिका चिह्नों तथा लिपि आदिका परिचय सहज हो जाय । में यह सब हो पाठ है। ग्रन्थकार-चूर्णिकार स्थविर में यहां भांदकमे आने को निकला उस बीच में के नामकी प्रशस्ति वगैरह सब है। इस तरहसे यवतमाल जिला आता है। वहा यवतमालम अपने लिए अपूर्व वस्तु मिली हुई समझना चाहिए। एक प्रखर सशोधक ब्राह्मण वकान श्री यशवन्त मैंने तो वास्तवमें यहांकी प्रतियोंसे ही प्रतिलिपि खशाल देशपांडे (M. A, LL. B., D. Litt.) कार्य करानेका निश्चय किया है। और दूसरी रहता है। भारतके ऐतिहासकोंमें वह नामांकित प्राचीन प्रति है उसके साथ मिलान कर लिया जायगा। है। उसके साथ मेरी धनी बातचीत हुई थी। यहां कितने ही प्रथोंकी ऐसी प्रतियां है कि ग्रथ- बात-बातमे उसने कहा है कि "यवतमाल जिलेके रचनाके पोछे तुरन्त ही अथवा कुछ ही बादकी लिखी पांढरखवड़ा ग्रामसे ईशान कोणमें नजदीक ही हुई है। धर्मविधि, कमग्र'थकी टोकाएँ, भवभावना 'वाई' नामका एक बड़ा यात्रास्थल वैदिकोंका है। सटीक पंचाशक आदि अनेक ग्रंथ इमी कोटिक है वहाँ मैं गया था। उस गांवके अन्दर तथा बाहर हमने बहत मिला लिए हैं और दूसरे मिला लूंगा। एकदा मीलके परिसरमें मैने बड़ी बड़ी उत्तम मन्मतितर्क का एक खण्ड यहां अधूरा है, दूसरा कोटिकी १०-१२ जैन प्रतिमाएँ अभी तक अखड है ही नहीं। परन्तु यहॉसकड़ ताडपत्रके टुकडे पड़े स्थितिमें देखी थी और उनका फाट लिया है। है। इन टुकड़ांको मैने अनेक वार देख डाला है, जब मूतियाँको नागपुरक म्यूजियममें ले जानक लिये जब देखता हूं तब तब अपूर्व वस्त मिल ही जाती र गावक लागास बात की गई। उन्होंने उस वक्त ता है। इस तरह सन्मति'के पत्रका टुकड़ा मिल गया मजूर भी कर लिया था परन्तु बाद का “तियोंक है, उसमे पुष्पिकाका अंश मिला है, जिसमें ऊपर तिलक करके तथा फूल चढ़ार हम ता इन्हें 'तत्वबोधविधायिन्यां मन्मतिटी' ये अक्षर हैं, रोज पूजना चाहिये इसलिये नहीं दना" ऐना कह इसमे 'सन्मति' नामका उल्लख मिलता है, यह कर इन्कार कर दिया। महत्वकी वस्त है। टुकड़ा बिल्कुल छोटा है परन्तु इससे यह जाना जाता है कि यहां भूतकाल में इस दृष्टिसे महत्वका है। ऐसे मैंने अनेक टुकड़ घनो ही मोटी जैन संस्कृति की जाहाजलाली थी, इम का है। अनयोगद्वारसूत्रकी प्रतिके टुकड़े टुकड़े समय यवतमाल जिलामे मोटा भाग तो मन्दिरोंहो गये । इन टुकड़ोको मैने टुकड़ोंमेसे का ही बना हुअा है । वहाँ भी ऐसे प्राचीन अलग बीन कर काढा है। ये इतने महत्वके है कि अवशेष है यह एक बड़ी गौरव लेने जैसी बात है। आज अपने को जिस तरह के पाठभेद वगैरहकी यवतमालके पासके चाँदा जिलाके भांदकमेंसे खोज करनी है, योग्य पाठ कौन है और टीकाकार- तो हमारी मूर्तियोंके वेगनके वेगन भरकर सग्रह

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