Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 464
________________ जेसलमेरके मण्डारकी छानबीन मुनिश्री पुण्यविजयजीकी भारी साहित्य-सेवा । जेसलमेर में जैनियोंका एक बहुत बड़ा शास्त्र-भंडार है, जिसमें बहुतसे जैन ग्रन्थोंको ही नहीं किन्तु कितने हो अजैन ग्रन्थोंकी भी प्राचीन प्रतियां मौजूद है। कुछ असा हा मुनिश्री पुण्यविजयजी. जो श्रागमादि ग्रन्थोंके संशोधन-कायमें बदी तत्परताके साथ सलग्न हैं, वहां कुछ विद्वानों तथा सुलेखकोंको साथ लेकर पहुंचे हुए है। श्रापने सारे कर हारकी छानबीन करते हुए जो पत्र पं० सुखलालजी और मुनिश्री जम्वृविजयजी श्रादिको लिखे है वे अधिकांशत: जैन पत्रो में प्रकाशित हो रहे है और उनसे यह जाना जाता है कि भंडार कितनी अव्यघस्थाका शिकार हुआ है और उसके कारण अनेक ताड़पत्रादिके अलभ्य ग्रन्थ टूट टाट कर अस्त-व्यस्त अथवा नष्टभ्रष्ट हो गए है। माजीने बडे परिश्रम के साथ दो महीनेमे भडारको सभाला है और उसकी एक व्यवस्थित सूची तैयार की है, जो रिपोर्ट के साथ छपने जा रही है। यहांपर हाल में मनिश्री जम्वविजयको लिखे गए पत्रके वे खास अश अनुवादरूपमें प्रकट किए जाते है जो गुजराती 'जैन' पत्रके ६ वीं जुलाई के अंक नं० २७में प्रकट हुए है और जिनसे कितनी ही महत्वको बातोंका पता चलता है। साथ ही, यह भी मालूम होता है कि मुनिश्री पुण्यविजयजी कितना परिश्रम उठा रहे है और कितनी भारी साहित्य सेवाका कार्य कर रहे हैं । निःसन्देह उनका यह मेवाकार्य बहुत ही प्रशंसनीय है । उनके इस सत्कार्य में एक हो सज्जनने फिलहाल २५ हजारको निजी सहायता मेज दी है। दिगम्बर जैन साधुनों, शुल्लकों-गल्लको और ब्रह्मचारियों आदिका इस पवित्र साहित्य-सेवाको और कुछ भी लक्ष्य नहीं है, यह बड़े ही खेदका विषय है ! उन्हे इस पत्र परसे कुछ पदार्थपाठ लेकर नष्ट-भ्रष्ट होती हुई जिनवाणीकी भी सधि लेनी चाहिए भार उसके प्रति अपना कर्तव्य बजाना चाहिए । दिगम्बर श्रीमानोंका भी ध्यान इस महत्वपूर्ण कार्यकी और जाना चाहिए और उन्हें अपने आर्थिक सहयोग-द्वारा कुछ विद्वानोंको भएडारों की जांच-पढनाल, सुव्यवस्था और सूची श्रादिके काममें लगाना चाहिए । कितने ही शास्त्र-नंडारोंकी बुरी हालत है और अनेक बहुमुल्य ग्रन्थप्रतियां दिनपर दिन चूहों दीमकों तथा सील श्रादिका शिकार होकर नष्ट-भ्रष्ट हो रही हैं। प्रति दिन जिनवाणी माताको अर्ध चड़ा कर ही सन्तुष्ट हो रहनेवालोंको शीघ्र चतना चाहिए और एक प्रत्यदर्शीकी इस दर्दभरी उक्ति पर ध्यान देना चाहिए"फटे हालों माता गिनत दिन कारागृह पड़ी ! बने मौनो बैठे युवक हम लज्जा धिक् बड़ी !! -सम्पादक | 'आप यह जानकर प्रसन्न होंगे कि यहाके हागी, इस दृष्टिमे स्वयं ही कापी को जा रहीहै। इस भंडारके पत्र पत्र खोज लिये हैं। प्रत्येक ग्रन्थको सरम के सिवाय सांख्यसप्ततिकाक ऊपर दो नवीन टीका सीलिसे व्यवस्थित कर दिया है, और पूरी सूची मदितसे भिन्न भी मिल रही है। उनकी नकलें भी रिपोर्टके रूपमे तैयार हो चुकी है। आज ही पर्ण होगी, उनमें एक प्रति ११७५ की लिखी हुई है, और हाई है। पुस्तकों की व्यवस्था और लिस्टमें दो महीने दूसरी भी इतनी ही प्राचीन है। टीकाकारोंके नाम का समय लगा है। अब दूसरा काम शुरू करू'गा। लिखे नहीं है, एकमे नाम था वह जाता रहा है सिर्फ भंडारमें आचार्य पादलिप्तकी ज्योतिष्करगडक- एक 'म' अक्षर ही रह गया है, उसके पीछेके तीन की टीका मिली है, 'सर्वसिद्धान्तप्रवेश' नामका अक्षर नष्ट हो गये हैं। 'माठर' तो नहीं हैं। क्योंकि प्रन्थ 'पडूदर्शन से मिलता है । यहां उसकी दो नकलें यह वृत्ति माठर वृत्तिसे जुदी और मोटी है। माठर(प्रतियां) हैं, उसकी कापी कर रहा हूँ, एक दो दिन- वृत्ति तो छप गई है। उसके साथमे मुकाबला में पूर्ण हो जायगी। 'प्रमाणान्तर्भाव' नामके जैन (मिलान) कर लिया है । दूमरीमें तोनाम है ही नहीं। अन्धकी कापी भी कर लेना है, अपनेको उपयोगी दोनोंकी नकलें करा ली जायेगी।

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