Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 462
________________ किरण ११-१२] मूल में भून अहंकारको दृढ़ रखने या पुष्ट करनेके लिए तरह मान्यताओंको प्रचलित किया । इतना ही नहीं, कुछ तरह की चेष्टाओंसे, तों और गढ़े गए सिद्धान्तों बहुत प्रभावशाली नरेशोने तो अपनी किसी का सहारा लेकर, उन्हीं बातोंका प्रतिपादन करने कमजोरी गलती या गुनाह(अपराध)को छिपाने, उसे लग जाते है। यही सारे खुराफातोंकी जड़ है। न्यायसंगत (Justify) करने या जनतास पर जब एक दूसरेको बोलने-कहनेका मौका अनुमोदित (Approve) कराने की नीयतसे प्रभाव. दिया जाय, नसे सुना जाय और मनन करके शाली विद्वानों-द्वारा तरह तरह के उपायों द्वारा समझा जाय तो ऐसी बात कमसे कम होगी। और अपनी प्रशंसाके ऐसे प्रचार उस समयके समाज में यह तभी होगा जब धार्मिक कदरता कम हो और कराए है कि उन्हें लोग देवता या ईश्वरका हम यह न समझ कि दसरे धर्मोके गुरू या प्रति अवतार समझे और यह समझे कि जो कुछ गलतपादक एकदम ही मूर्ख थे और स्वप्नमें उन्होंने सही उन्होंने किया वही सब ठोक उचित और न्यायकोई धर्म चला दिया । सभी धर्मों के चालकोंमें पूणे था, इत्यादि। ऐसी हालतमे उन नरेशोंके विद्वत्ता तो थी ही या रही ही होगी इतना कमसे कम व्यक्तित्व, प्रभाव और शक्तिने प्रचारके जोरपर मानना बहुत जरूरी है ।हां विद्वत्ताका उचित या समाजमे न जाने कितने अधर्मो को धर्म और अनुचित उपयोग हो सकता है पर तों में कुछ न कितनी अनीतियों को नोतिका रूप देकर उनका कुछ सार या मतलब तो अवश्य ही होगा। इस प्रचलन करा दिया, जिसका कोई हद्दो हिसाब, इं. तरह सभी तों एवं तत्त्वोंको इकटठा करके यदि तहा (अन्त) या गिनती नहीं ? इस तरह समय कोई एक निश्चित अपना तत्त्व निकाला जाय तो समयपर ऐसा होता रहा है, जिससे असल वस्तुफिर झगड़ा ही न रह जाय । तत्त्व एक दम छिप गया और रंगीन आवरणमय सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि साधारण मनुष्य गलत भावनाओंका प्रचार एवं प्रसार सत्यके भी अपनेको सबसे बड़ा, सबसे अधिक जामी और नामपर और सत्यके रूपमें संसारमें चारों तरफ फैल गया । समयने इसपर अपनी सील-मुहर जानकार कहता तथा समझता है-पर इसका ज्ञान । करके इसे और पक्का कर दिया। फिर तो बादमें बड़ा ही सीमित और अल्प है। सभी कुछ पर्णरूप जिन लोगोंको इसका मजा मिल गया-शराब के से समझ जाना किसी बिरले का ही काम हो मकता पीनेवाले शराबियोंकी तरह-उसके नशेमें है। पर वे सभी लोग जो कुछ समझने, बझने या कहने लग जाते है और जिनका कुछ प्रभाव इस उन्होंने और भी कितनी ही रंगोनियां उसमें लादी संसारमे कहीं किन्हीं लोगोंपर कायम हो जाता है और बराबर लाते गए जिससे सत्यका असली उस प्रभाव या बड़प्पनको बनाए रखने लिए भव्य सीधा सादा उज्वल स्वरूप पाना कठिन ही फिर वे स्वयं या उनके प्रशंसक बादमे तरह नहीं असंभव-जैसा हो गया। यदि कहीं किसीने तरह के तर्को या नरीकोंको काममें लाने लग जाते कुछ विरोधी प्रवृत्ति जाहिर की भो तो जैसे है । मानवसमाज अपनी विवशतामें एवं अज्ञान- शराबियोंकी जमाअतमें, जो गहरे शराबके नशे में की हालतमें जो कोई भी प्रभावशाली ढंगस जो मदमत्त हा, जाकर एक आदमो शराब छोड़नेकी कुछ कह देता है तथा गलत-सहो तों से या किसी शिक्षा देने लगे, तो उसकी जो हालत या गति उन भी तरह उसके दिमागमें कोई बात बैठा देता है शराबियोंके हाथों होनेकी कल्पना की जा सकती उसे ही ठीक सही, सत्य और मान्य मानने लगता है। है वैसी ही बात यहां भी हुई और होती रही है। बहतसे धर्माचार्या ने तो बड़े बड़े प्रभावशाली धर्मके नामपर और ईश्वरकी दुहाई देकर राजाओंकी बलशक्तिद्वारा अपनी अपनी धार्मिक जितनी खून खराबी, पाप और अत्याचार संसारमें

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