________________
[वर्ष १०
मुद्रिता क्षमा कल्याणकै र्विहितेति प्रघोषः " परन्तु प्रशस्ति नहीं दी है, अतः यहाँ दी जाती है
३३०
अनेकान्त
मिलाके देखा गया तो वह साधुपूर्णिमा गच्छीय रामचन्द्रसूरिरचित ही है। सं० १४६० के माघसुदी १४ को स्तभती प्रस्तुत प्रन्थ रचा गया है जैसा कि निम्नोक्त प्रशस्तिसे स्पष्ट है ।
सुभाषितानि पूर्वे च कवीनां रचितानिषचां । सत्य काव्यमुख्याणि शतानि पंचमुग्धकैः ॥ २२॥ श्री साधुपूर्णिमापक्षका ने कल्पपादपाः । श्रीमद भयदेवाख्याः सूरयो गुणभूरयः ॥२३॥
पाद प्रसादेन मया मूर्खेण निर्मितिः । ग्रन्थो विद्वज्जन शोध्यः कृपां कृत्वा ममोपरि ॥ २४ ॥ श्रीमद्विक्रमकालश्च खं निधी रत्न संख्या । वर्षे माघे सिते पक्ष शुक्लचतुदशीदिने ॥२२॥ पुष्य स्तीर्थे रामचन्द्रसूरिणा । narataयकारि प्रबंधो जनरंजकः ॥२६॥ यावद्भूधरसागरौ रविशशी संभूभु वस्तारकाः धर्माधर्मविचारक निपुणां यावज्जगद्राजते । वाषद्विक्रमभूपराज विलसत्कीर्त्तिप्रमाभिश्चितो । ग्रन्थोऽयं जिनशासन' सहृदयां चिसे चिरनन्दवात् ॥ २६ श्लोकेनुष्टपा संख्या ज्ञ ेया लेखनकोविदैः । पंच विंशति सार्द्धानि शतानि संति संख्यय ॥२८॥ एवं प्रस्तावे ५८७ ग्रन्थामन्थ २५५० अक्षर ३१ । श्रीविक्रमादित्य नरेन्द्र श्रीपंचद ड छत्र चरित्र समाप्त।
॥
५. श्रीपालचरित्र अवचूर्णि - सूरत के सुप्रसिद्ध देवचन्द्र लालभाई पुस्तकों द्वारा मन्याँक ६३ के रूप में सं० १८८० के रूपमें प्रकाशित हुआ है । उपोद् घात में आनन्दसागर (सागरानन्द) जीने इसकी अवचूर्णिकेलिये लिखा है कि "परमत्रावचूर्णिर्या
वर्षे नन्दगुहास्यसिद्धिवसुधा संख्ये शुभे चाश्विने । मा निर्मलचंद्रके सुविजयाख्यायां दशम्यां विथों । पूज्यश्री जिनहर्षसूरिगणभृत् सद्धर्मराज्ये मुद । श्री श्रीपालनरेन्द्र चारुचरिते व्याख्या समन्तात् कृता ॥ १ ॥ श्रीमन्वो जिनभक्तसूरि गुरवश्चांद्र कुले जज्ञिरे ।
या जिल्लाभरि मुनिपाः श्रीप्रीतितः सागराः । तच्छिष्यामृतधमं वाचकवरा स्तेषां विनेयक्षमाकल्याणाख्य सुपाठकेन सुधियां चैतः प्रसत्यै सदा ॥२॥ युग्मम् स्व प्रशिष्यस्य प्राशस्य ज्ञाननंद मुनेः कित्न |
महा लिखितोर्थोयं वीकानेरपुरे मुदा || त्रिभि: सम्बंध:
इति श्री श्रीपाल चरित्रस्य संक्षेप व्याख्या प्रायस्त्रीणि सहस्राणि साधिका द्वाविंशति ३०२२ सूत्र सख्या १५५० उभयमलनेन ४५७२ संख्या ज्ञातव्या ।
किसी किसी प्रन्थकी प्रतियोंमें प्रतिके लेखक द्वारा लिखित प्रन्थका कुछ विशेष परिचय लिखा हुआ पाया जाता है जो अन्य प्रतियोंमें नहीं मिलता । उदाहरणार्थ पं० हीरालाल प्रकाशित हर्षकुं जरके सुमि
चरित्र में ग्रन्थकारके गच्छ व गुरुका उल्लेख नहीं है जब कि जैसलमेर के तपागच्छीय भंडारकी उक्त ग्रन्थकी प्रतिमें खर तर श्री जिनहर्षसूरि राज्यजयकीर्तिमहोपाध्यशिष्यहर्ष कु जरोपाध्यायप्रकृतदान रत्नोपाख्याने लिखा पाया जाता है ।
-