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अनेकान्त
| वर्ष १० अर्थ-प्राषाढ़ मासकी पूणिमाके दिन व दिशाका वाय-पुरवाई हवा–यदि सारे दिन चले तो (वर्षाकालमें) अच्छी वर्षा होती है, वर्ष अच्छा बोतता है ।। ७ ।। वाप्यानि सर्वबीजानि जायन्ते निरुपद्रवम् । शूद्राणामुपघाताय साऽत्र लोके परत्र च ॥८॥
__अथे--उस समय बोये गये सम्पूर्ण बीज उपद्रव (ईतिभीति) रहित होकर उत्तम रीतिसे उत्पन्न होते हैं । परन्तु शद्रोंके लिये वह वाय इसलोक और परलोकमें उपघातका कारण होता है। दिवसाधं यदा वाति पूर्वमासौ तु सोदकी । चतुर्भागेण मासस्तु शेषं ज्ञयं यथाक्रमम् ॥॥
अर्थ-यदि आषाढ़ी पूर्णिमाके आधे दिन ( सूर्योदयसे दोपहर तक ) पूर्व दिशाका वायु चले तो पहिले दो महीने अच्छी वर्षा के समझने चाहिये और यदि चौथाइ दिन ( एक पहर ) वह वायु चले तो एक महीना अच्छी वर्षाका समझना चाहिये। इसी तरह वायु तथा वर्षाका शेष हिसाब जानना चाहिये ॥४॥ पूर्वाद्ध दिवसो ज्ञेयो पूर्वमासो तु सोदकौ । पश्चिमे पश्चिमा मासो ज्ञेयो द्वावपि सोदको ॥ १० ॥
अर्थ-यहां इतना विशेष जानना चाहिये कि उस दिन यदि पूर्वाधमें पूर्ववायु चले तो पहले दो महीने वर्षाके और उत्तराद्ध में चले तो पिछले दो महीने अच्छी वर्षाके समझने चाहिये । १०॥ हित्वा पूर्व तु दिवसं मध्याह्न यदि वाति चेत् । वायुमध्यममासात्त तदा देवो न वर्षति ॥ ११ ॥
अर्थ-यदि दिनके पूर्वभागको छोड़ कर मध्याह्नमें उस दिन वायु चले तो मध्यम मासस मेघ नहीं वर्षगा ऐसा जानना चाहिए ॥ ११ ।। ।
आषाढीपूर्णिमायान्तु दक्षिणो मारुता यदि । न तदा वापयत्किचिद् ब्रह्मक्षत्रौंच पीडयेत् ॥ १२ ॥ धनधान्यं न विक्रेयं बलवन्तं च संश्रयेत् । दुर्मिन मरणं व्याधिस्त्रासं मासं प्रवर्तते ॥ १३ ॥
अर्थ-आषाढी पूर्णिमाको ( दैवयोगसे ) यदि दक्षिण दिशाका वायु चले तो उस समय (बोवनीके समय ) कुछ न बोना चाहिए । वह वायु ब्रह्मक्षेत्रको-ब्राह्मण प्रदेशदे लिये--पीडाकारी होता है। उस समय धनधान्यका विक्रय नहीं करना चाहिए एवं किसी बलवान राजादिका श्राश्रय ग्रहण करना चाहिए क्योंकि एक मासमें ही दुर्भिक्ष, मरण, व्याधि और त्रास उपस्थित होने लगता है। १२, १३ ॥
आषाढीपूर्णिमायान्तु पश्चिमो यदि मारुतः । मध्यमं वर्णणं शस्यं धान्यार्थो मध्यमस्तथा ॥१४॥ उद्विजन्ति च राजानो वैराणि च प्रकरते । परस्परापघाताय स्वराष्ट्रपरराष्ट्रयोः। १५॥
अथ-आषाढ़ी पूणिमाको यदि पश्चिमवायु चले तो मध्यम प्रकारकी वर्षा होती है । शस्यकी तथा धान्यके अर्थ(मूल्य) की स्थिति मध्यम होती है । राजा लोग उद्विग्न हो उठते हैं और अपने तथा दूसरोंके राष्टको परस्पर में घात करने के लिए वैर-भाव धारण करते है ।। १४, १५ ।।
आषाढीपूर्णिमायान्तु वाय: स्यादुत्तरो यदि । वापयत्सर्वबीजानि शस्य ज्येष्टं प्रबद्ध ते ॥ १६॥ क्षेम सुभिक्षमारोग्यं प्रशान्ताः पार्थिवास्तथा । बहूदकास्तदा मेघा मही धर्मोत्सवाकुला ॥ १७ ॥