Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 454
________________ किरण ११-१२ । भद्रबाहु-निमित्तशास्त्र ४१५ अथ-आषाढको पूणिमाको यदि उत्तर दिशाका बाय चले तो उस समय (बोवनीके ममय) सब रनोंको बो देना चाहिए, क्योंकि उस समय बोये गये बीज बहुप्तायतसे उत्पन्न होते हैं । सथा तेम (कशलता), सुभिक्ष, (सुकाल) एवं प्रारोग्य (तन्दुरुस्ती) की वृद्धि होती है और राजा युद्धके उद्यमसे सदा शान्त रहत है-प्रजाके साथ उत्तम व्यवहार करते है-मेघ बहुत जल बर्षाते है और पृथ्वी धर्मोत्सवोंमे व्याप्त होती है ।। १६, १७ ।। आषाढीपणंमायां तु वायुः स्यात्पूर्वदक्षिणः । राजमृत्युर्विजानीयाच्चित्र शस्यं तथा जलम् ॥१८॥ क्वचिनिष्पद्यते शस्यं क्वचिच्चापि विपद्यते । धान्यार्थो मध्यमो ज्ञेयस्तदाऽग्नेश्च भयं नणाम्।।१६।। अर्थ-आपाढी पूणिमाको यदि पूर्व और दक्षिण के बीचकी अथान् अग्निकोण की वाय चले तो राजाकी मत्य होती है। शस्य तथा जलकी स्थिति चित्र-विचित्र होती है। धान्यकी उत्पत्ति कहीं होती है और कहीं उमपर आपत्नि आ जाती है। मनुष्यको धान्यका लाभ मध्यम होता है और अग्निमय बना रहता है ।। १८, १६ ॥ आपाढीपणिमायान्तु वायुः स्यादक्षिणापरः । शस्यानामुपघाताय चौराणां तु विवृद्धये ॥२०॥ भम्म पांशु-रजाकीर्णा तदा भवति मंदिनी। सर्वत्यागं तदा कृत्वा कर्तव्यो धान्यसंग्रहः ॥२१॥ विद्रवन्ति च राष्ट्राणि क्षीयन्ते नगराणि च । खेतास्थि मंदिनी ज्ञेया मांम-शोणित-कर्दमा ॥२२॥ अर्थ-आषाढो पुणिमाको यदि (देवयागमे ) दक्षिण और पश्चिमके वीचकी दिशा-नैऋत्य कोमाकी वायु चले तो वह धान्योंके घात एवं चोरोंकी वृद्धिके लिये होता है। उस समय पृथ्वी भस्म, धूलि एव रज: कणोंसे भर जाती है अथात् अनावृष्टसे पृथ्वीपर धूलि, मिट्टी उड़ा करतो है । उस समय और सब चीनको छोड़कर धान्य का संग्रह करना चाहिए । उस समय राष्ट्रोंमे उपद्रव पैदा होते हैं नगगेका क्षय होता है। पृथ्वी श्वेत हडियोसे भर जाती है और मांस तथा वृनके कीचर से स. रहती है। ।। २०, २१, २२ ।। आपाडीपणिमायान्तु वायुः स्यादुतरापरः । मक्षिका दंरामराका जायन्ते प्रकलास्तदा ॥ २३ ॥ मध्यमं क्वचिदुत्कृष्ट वर्ष शम्यं च जायते । नूनं च मध्यमं किञ्चिद्धान्यार्थतत्र निर्दिशेन ॥२४॥ अर्थ-आषाढी पणिमाको यदि वायु उत्तर पश्चिम (वायव्य) कोएकी चले तो मक्खो डांस और भच्छा प्रचल हो उठते है। वो और धान्योत्पत्ति कहीं मध्यम और कहीं उत्तम होती है और कुछ धान्योंका मूल्य अथवा लाभ निश्चित रूपसे मध्यम ममझना चाहिर ।। २३, २४ ॥ आपाढीपुणिमायान्तु वायुः पूर्वोत्तरा यदा । वापयेत्सर्वबीजानि तदा चौगश्व घातयेत् ॥२५॥ स्थलप्वपि च यद्वीजमुप्यते तत्समृद्धति । क्षम व मुभिक्षच भद्रवाहुवचा यथा ॥२६॥ वहूदका शस्यवती यत्रोत्सवसमाकुला । प्रशान्तडिम्भडमरा च शुभा भवति मेदिनी ॥ २७ ।। अर्थ-आपादकी पूणिमाको यदि पूर्व और उत्तर दिशाके बीचका-ईशान कोणका-वायु चले उससे चोरोंका घात होता है अथोत चोरोंका उपद्रव कम होता है। उससमय सब पोज बोने चाहिए, स्थलों

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