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अनेकान्त
[वर्ष १०
यदा राज्ञः प्रयातस्य प्रतिलोमोऽनिलो भवेत् । अपसव्यो समार्गस्थस्तदा सेनावधं विदुः ॥४शा
अर्थ--राजाक प्रयाण के समय वायु यदि प्रतिलोम (उल्टा) बहे अर्थात् उस दिशाको न चलकर जिधर प्रयाण किया जारहा है उस दिशाको चले जिधरसे प्रयाण हो रहा है और वह अपसव्य (दाहिनी
ओरका) माग अंगीकार करे अथवा सेनाके मार्ग स्थित हो जाए तो उससे राजाकी सेनाका बध होगा ऐसा समझना चाहिए ॥ ४५ ॥ अनुलोमो यदा स्निग्धः सम्प्रवाति प्रदक्षिणः । नागराणां जयं कुर्यात्सुभिक्षच प्रदीपयेत॥४६॥
___ अथे-यदि वायु स्निग्ध (सचिक्कण) हो और प्रदक्षिणा करता हुआ अनुलोमरूपसे बहे - उसी दिशाको चले जिधरको प्रयाण होरहा है तो उससे नगरवासियोंकी विजय होती है और सुभिक्षको सूचना मिलती है ।। ४६ ॥ दशाहं द्वादशाहं वा पापवाता यदा भवेत् । अनुबन्धं तदा विन्द्याद्राजमन्यु जनक्षयम् ॥१७॥
___ अर्थ-यदि पापवायु दश दिन तक या बारह दिन तक लगातार चले तो उससे सनादिकका बन्धन, राजाकी मृत्यु और मनुष्योंका क्षय होता है, ऐसा समझना चाहिए । ४७ ।। यदाऽभ्रवर्जितो वाति वायुस्तृणमकालजः । पाशुभस्मसमाकीणः शस्थधाता भयावहः॥४८॥
अर्थ-जब मेघरहित अकालमें उत्पन्न हुआ वायु धूलि और भस्मसे भरा हुप्रा चलता है तब वह शस्य ( धान्य ) घातक एवं महाभयंकर होता है ॥ ४ ॥ सविध त्सरजो वायुरूवंगा वायुभिः सह । प्रवाति पक्षिशब्देन क्रूरेण स भयावहः ॥ ४६ ॥
अर्थ-यदि विजली और धूलिसे युक्त वायु अन्य वायुओं के साथ ऊध्र्वगामो हो और करपक्षोके समान शब्द करता हुआ चले तो वह भयंकर होता है ॥४६॥ प्रवान्ति सर्वता वाता: यदा तूर्ण मुहुमुहुः । यता यतोऽभिगच्छन्ति तत्र देशं निहन्ति ते ॥५०॥
अथे-यदि पवनें सब ओरस बार बार शीघ्रगतिसेचले तो जिस जिस देशको तरफ गमन करती है उस उस देशका घात करता है-उसे हानि पहुँचाता है। ॥ ५० ॥ अनुलोमो यदानोके सुगन्धा वाति मारुतः । अयत्नतस्तता राजा जयमाप्नोति सर्वदा ॥५१॥
अर्थ-यदि राजाकी सेनामें सुगन्धित अनुलोम (प्रयाणकी दिशामें ही प्रगतिशील पवन चले तो बिना यत्नके ही वह राजा सदा विजयको प्राप्त होता है ।। ५१ ।। प्रतिलोमा यदानीके दुर्गन्धा वाति मारुतः । तदा यत्नेन साध्यन्ते वीरकोनिसुलब्धयः ॥ ५२ ।।
अर्थ-यदि राजाकी सेनामे दुर्गन्धित प्रतिलोम (प्रयाण-दिशा-प्रतिपक्षी ) पवन चले तो उस समय वीर-कीर्तिकी उपलब्धियाँ बड़ी ही प्रयत्न-साध्य होती हैं-वीरोंको यशका मिलना दर्धर होजाता है ।। ५२ ।।