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भनेकान्त
[वर्ष १०
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(३) संस्थानिर्णय
(१२) अजितशांतिविवरण-प्रति भा०६० प्रना। कोश
(१३) लघुाँ तिशवृत्ति-मानदेवके लघु शाँति वृत्ति(४) शारदीय नामभाला-इसकी सं० १६४०. स्तोत्रपर वृत्ति है ग्रन्थ १५० । प्रति हमारे सँग्रहमें है। ४८ की लिखित प्रतियाँ उपलव्य होनेसे रचना पूर्व- , (१४) भक्तामरवृत्ति'-उ. देवसुन्दर की अभ्य वती सिद्ध है । अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें है।
र्थनासे रचित, प्रति दानमागर भंडार (१) मनोरमानाममाला-इसकी प्रति हमारे संग्रहमें (१५) वृहत्शांति-सं०१६५६ पत्र ४. मोतोच.
जो खजानचीके संग्रह में । छन्द
(१६) कल्याणमन्दिरवृति--र.देवसुन्दरकी अभ्य (8) छन्दशतक (प्रा०)-बीकानेरके उ० जय र्थनासे रचित, प्र.५.५ प्रतिमा भक्ति भंडार । चन्द्रजोक भडारमें इसकी पत्रकी प्रति है।
(१७) संसारदावास्तुतिटोका-हमारे संग्रहम। (७) अ तबोधवृत्ति-यह महाकविकालिदासके
जैनेतरस्तोत्रश्रतबोधपर टोका है, जिसकी प्राचीन प्रति
(१८) माहम्नस्तोत्रवृत्ति-सुप्रसिद्ध पुष्पदंतके थनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें है।
शिवल्तोत्रपर टीका है। प्रति भां०६० पूनामें है। काव्य-स्तोत्र वृत्ति
(१०)सिंदरप्रकर टोका-सुप्रसिद्ध मोमप्रमसूरिके () नमस्कार ( नवकार) स्तोत्र-वृत्ति सूक्तिकाव्यपर टीका है। प्रति बारे संग्रह में है। ह) उवसग्गहर , , प्र०अनेकार्थरत्नमंजूषाम मौलिक रचनाएं(१०) नमिऊण (भयहर)स्तोत्रवृत्ति-हमारे
(२०) शारदास्तोत्र (सं.) संग्रहमें
लोकभाषाकाव्य(११) तिजयपहुतस्तोत्रवृत्ति-प्र० २३३, हमारे संग्रहमें
(२१) विजयसेठ विजया सेठाणी समाय गा.
२६, हमारे संग्रहमें? १.न.८ से १४ तकके स्तोत्र समस्मरण कहे जाते
(२२) परम्परा वत्तोसी बद्ध मानभण्डार बीकानेर हैं। इनके क्रमादिमें अन्तर पाया जाता है। हर्षकीर्भिसरि (२३) अठारह दृषण सज्झाय गा०२१ ने भक्तामरतो ७ वां स्तोत्र माना है। 'सप्तस्मरणे, टीका
वैद्यककुर्वे भक्तामरस्तवे सप्रस्मरणवृत्ति को (संयुक्त) प्रतिभा०
(२४) योगचिन्तामणि-वैद्यक-विषयक प्रसिद्ध इ. पुने में सं० १६१० लिखित होने से रचना पूर्ववर्ती
प्रन्थ है। अपनी उपयोगिताके कारण जनेतर विद्वानां सप्तस्मरण खरतरगच्छ एवं तयागच्छ में भिन्न भिन्न
के अनवादके साथ प्रकाशित हो चुका है। प्राचीन स्तोत्र माने जाते हैं।
भाषा टोकापोंमें खरतरगच्छीय नरसिंहरचित २. इन्ही देवसुन्दरकी अर्थना से अमरप्रभसरि
वालावबोध वोकानेरके वृहद् ज्ञान भण्डारमे उप. रचित भक्तामर टीकाका समय प्रो हीरालाल रसिकलाल
लब्ध है। इसका अपर नाम वैद्यकसारोद्धार भी है। कापाडिया ने भक्तामरादि स्तोत्रत्रयमकी प्रस्तावनामें १५
ज्योतिषवीं शती बताया है जो ठीक नहीं है।
१-प्रो कापडियाने भक्तमरादि स्तोत्रकी प्रस्तावना (२५) जन्मपत्रिपद्धति-सं० १७२८ की लिखित इसका रचनाकाल सं० १६६५ बतलाया है जो सही नहीं ४३ पत्रको प्रति मुनि जिनविजयजींके संग्रहमें है। प्रतीत होता । संभवतः वह प्रति लेखकका समय है।
(शेष अन्यत्र)