________________
३३८ अनेकान्त
[वष १० अर्थ-सूर्योदय के समय पीत वर्णकी संध्या याद होवे और वह दक्षिण दिशाका आश्रय करे तथा सौम्य होवे तो वैश्योंकेलिये जयदाई है ॥५॥
उद्गच्छमाने चादित्ये कृष्णसंध्या यदा भवेत् । अपरेण गता सौम्या शूद्राणां सा जयावहा ६
अर्थ-- सूर्योदय के समय कृष्ण वर्णकी सन्ध्या यदि हो और वह पश्चिम दिशाका आश्रय करे तथा सौम्या हो तो शूद्रोंके लिये जयकारक जानना ।।६॥
संध्योत्तरा जयं राज्ञः ततः कर्यात्पराजयम् । पर्वा क्षमं सुभिक्षं च पश्चिमा च भयंकरा ॥७॥
अर्थ-उत्तर दिशाकी सध्या राजाके लिये जय सूचक है, और दक्षिण दिशाकी सध्या पराजय सूचक जानना पूर्व दिशाकी सध्या क्षेमकुशल और सुभिक्षकारक जानना। पश्चिम दिशाकी सध्या भयंकरा जाननी ॥७॥
आग्नेयी अग्निमाख्याति नैऋती राष्ट्रनाशनी । वायव्या प्रावषं हन्यादीशानी च शुभावहा ॥८॥ अर्थ- चारों दिशाकी संध्याका फल कहकर अब चारों विदिशाओंकी मध्याका फल दिखाते है। १ अग्निकोगकी सध्या अग्नि भय करती है। नैऋत्य दिशाको सध्या देशका नाश करने वाली है। ३ वायु कोणकी सध्या वर्षाकी हानि करती है । ४ ईशान कोणकी सध्या शुभ जानना । एवं संपत्कराय षु नक्षत्रेष्वपि निर्दिशेत् । जयं सा कुरुते सन्ध्या साधकेषु समुत्थिता ॥६॥
अर्थ-इसी प्रकार सम्पत्तिका लाभ आदि कराने वाले नक्षत्रों में भी निर्देश करना चाहिये वह संध्या साधक के जय करने वाली है। तात्पर्य यह कि साधक पुरुषको नक्षत्रों में भी शुभ संध्याका दिखाइ देना जयको देनेवाला है ।
सन्ध्याल क्षणम उदयास्तमनेऽर्कस्य यान्यभ्राण्यग्रता भवेत् । सप्रभाणि सरश्मीनि तानि संध्या विनिदिशेत् ।।
अर्थ-सूर्यके उदयास्तके ममय बादलोपर जो सूर्य की प्रभा पड़तो है उस प्रभासे बादलोंमें नाना प्रकारके वर्ण (रंग) उत्पन्न हो जाते है उसी को मध्या कहते है ॥१०॥
अभ्राणां यानि रूपाणि सौम्यानि विकृतानि च । सर्वाणि तानि संध्यायां तथैव प्रतिवारयेत ।।
अर्थ - अभ्र (बादल) अध्यायमे जो उनके अच्छे और बुरे रूप दिखाए गये है वह सब इस संध्या अध्यायमें लागूकर लेना चाहिये ॥१शा
एवमस्तमने काले या संध्या सर्व उच्यते। लक्षणं या तु संध्यानां शुभं व यदि वाऽशुभम् ॥१२
अर्थ-ऊपर सूर्योदयकी संध्याका लक्षण और फल शुभ वा अशुभ कहा गया है वही सब लक्षण सूर्यास्त कालकी संध्याके विषै जैसे कुछ शुभ वा अशुभ हो जानना ॥१२॥
स्निग्धवर्णमती संध्या वर्षदा सर्वशोः भवेत । सर्वा वीथिगता चापि सुनक्षत्राविशेषतः ॥१३॥
अर्थ-स्निग्ध वर्ण (चिकनी) सध्या वर्षाको देनवाली है वाथियोंमें प्राप्त और विशेषकर शभ नक्षत्रों वाली सध्या वर्षाको करती है ॥१३॥
पूर्वरात्रपरिवेषा सविद्य त्परिखायुता । सरश्मी सर्वतः संध्या सद्यो वर्ष प्रयच्छति ॥१४॥