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अनेकान्त
[ वर्ष २०
अर्थ:- ऊपर दिखाये हुये लक्षणवाले मेघ अनावृष्टि, घोरभय, दुर्भिक्ष मृत्युको करने वाले जानने ।। तिथौ मुहूर्ते करणे नक्षत्रे शकुने शुभे । सम्भवन्ति यदा मेघाः पापदास्ते भयङ्कराः ॥ १६ ॥
अर्थ-अशुभ तिथि, मुहूर्त, करण, नक्षत्र और शकुन में यदि मेघोंका संभव हो तो वे मेघ भयंकर पाप फलको देनेवाले जानना ||१६||
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एवंलक्षणसंयुक्ताश्चमू ं वर्षन्ति ये घनाः । चमू सनायकां सर्वा हन्तुमाख्यांति सर्वशः ॥२०॥
अर्थ - उपरोक्त दिखाए हुये लक्षणवाले मेघ सेना पर बहुत वर्षा करें तो सेना और उसके नायक सब ही मारे जाते हैं अर्थात् उनका सर्वनाश होता है ||२०|| रक्तपांशुः सधूम वा क्षौद्र ं केशाऽस्थि शर्कराः । मेघा वर्षदित विषये यस्य राज्ञो हतस्तु सः ॥ २१ अर्थ - लोही, धूलि, धूम्र, मधु, केश, अस्थि और खांडके समान मेघ वर्षा करें तो देशका राजा मारा जाता है ||२१||
क्षारं वा कटुकं वाऽथ दुर्गंधं सस्यनाशनम् । यस्मिन् देशे ऽभि वर्षन्ति मेघा देशो विनश्यति ॥ २२
अर्थ - जिस देशमें धान्यको नाश करनेवाले क्षार ( लवण रस), कटुक ( चरपरा रस ) और दुर्गन्धित रसको मेघ वर्षा करें तो उस देशका नाश होता है ||२२||
प्रयातं पार्थिवं यत्र मेघो वित्रास्य वर्षति । वित्रस्यो वध्यते राजा विपरीतस्तदापरे ||२३||
अर्थ - राजाके प्रयाणके समय त्रासयुक्त मेघ वर्षे तो राजाका त्रास युक्त बध होता है, यदि त्रासयुक्त वर्षा नहीं हो तो ऐसा नहीं होता ||२३||
सर्वत्रैव प्रयाणे च नृपो येनाभिषिच्यते । रुधिरादिविशेषेण सर्वघाताय निदिशेत् ||२४||
अर्थ - राजाके चढाई के समय वर्षासे देश सिंचन हो और विशेषतः रुधिरादिसं हातो सबोंक घातक
संभावना है ||२४||
मेघा सविद्युतश्चैव सुगंधा सुस्वराश्च ये । सुवेषाश्च सुवाताश्च सुधियाश्च सुभिक्षदाः || २५॥
अर्थ-बिजली सहित, सुगंधित, मधूर स्वरवाले सुन्दर वर्ण और आकृतिवाले, शुभ घोषणावाले और अमृत समान वर्षा करने वाले मेघों को सुभिक्षका देनेवाला जानना चाहिए ||२५||
नोट- यह स्मरण रहे कि निमित्तोंका शुभाशुभ फल वहीं होता है जहां वे मिलते है, सारी दुनियां
में नहीं ।
अभ्राणां यानि रूपाणि संध्यायामपि यानि च । मेघेषु तानि सर्वाणि समासाद्व्यासतो विदुः । २६ । अर्थ - बादलों और संध्याका, मेघों का, जैसा कथन किया वैसा सब कथन संक्षेप अथवा विस्तार से मेघों में भी समझना चाहिए ||२६||
उल्कावत्साधनं ज्ञ ेयं मेघेष्वपि तदादिशेत् । अतः परं प्रवच्यामि वातानामपि लक्षणम् ||२७|| अर्थ - इस मेघवर्णन अध्यायका भी उल्काकी तरह पूर्ववत् साधन करना चाहिए अब वायुको वहने का लक्षण और फल कहते है ||२७||
इति नैप्रन्थे भद्रबाहुके निमित्ते मेघनामाष्टमोऽध्यायः ॥