Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 444
________________ किरण ११-१२1 आर्यों से पहिलेकी संस्कृति ४०५ अपने साथ बड़ा पशुधन तथा आशुगामी घोड़ोंके जब आर्य बे घरबारके लुटेरे थे तब अनार्य बड़े. रथ लाये थे। वे प्रकृतिपूजक थे तथा उन्हें होमयज्ञके बड़े नगरों में रहते थे। भारतीय धर्म और संस्कृति रूपमें पशुबलि,यव. दूध, मक्खन और सोम चढ़ाते की अनेक परम्पराए' रीति रिवाज प्राचीन पुराण थ। वे अपनी पवेनिवासभूमि-लघु एशिया और इतिहास अनार्योसे आर्य भापामे अनूदित ( Asia minor ) और असीरिया बाबुलसे कुछ किये है क्योंकि आर्य भाषा ऐसी थी जो सर्वत्र छा धार्मिक मान्यनाऐं, कुछ कथा इतिहास ( प्रलय गई थी। तथापि उसकी शुद्धि कायम न रह सकी कालीन जलप्लावन ) श्रादि भी साथमें लाये क्योंकि उसमें अनेक आनाय शब्द मिल गए।" थे। उनका जातीय देवता इन्द्र था जो कि बाबुल ये अनार्य कौन हैं ? के देवता मदु कसे मिलता जुलता है। उन्होंने अपनी समद्ध भापासे अनार्योको विशेष मानववश-विज्ञानके अध्ययनसे भारतके प्रभावित किया। धरातल पर जिस अनार्य जातिका पता लगा है वह श्रायाने यहां बस कर यहाँके निवासियोंको है कृष्णांग ( Negrito ) । बन्दरसे विकसित ही अपनेमे परिवर्तित नहीं किया बल्कि स्वय हो उत्पन्न होने वाली किसी जातिका यहां पता नहीं चला। कृष्णांगोंकी सन्तान आज भी अन्दमान बहुत हद तक उनमें परिवर्तित हो गये। आर्य संस्कृतिक निर्माणमें आर्योंकी अपेक्षा अनार्यों द्वीपोंमे पाइ जाती है। उनको भापाका विश्वकी का बड़ा भाग है । जब अनार्य, आर्योंमे सम्मिलित किमी भाषा शाखासे सम्बद्ध नहीं । पहले ये अरब हुए तो उस जातिकं समृद्ध कवियोंने आर्यभाषा सागरसे चीन तक रहते थे पर अब वे या तो खतम में अपने भी भाव व्यक्त किये, पद रचना की। कर दिये गये या दूसरी मानव शाखाक लोगोंने उन्होंने अपने दार्शनिक, धामिक, सांस्कृतिक उन्हें अपनेम पचा लिया। शेष वचे हुए लोगोंसे ऐतिहासिक कथानक, आख्यान आदि सामग्राको उनकी सुदूर अतीतकी सस्कृतिका अनुमान लगाना आयभाषामें प्रकट करना शुरू किया जैसे कि संभव नहीं। कहा जाता है कि उनके उत्तराधिकारी आजका भारतीय अपने साहित्यको अंग्रेजीमे बलोचिस्तानम पाये जाते हैं तथा दक्षिण भारतकी मुख्य जंगली जातियोंम उनका जातिय गुण मिलता प्रकट करता है। इससे आर्य साहित्य में अनाय है । तिब्बत, बमाकी नागा जातिके रूपमें भी संस्कृतिका बहुत बड़ा भाग आ गया। अनार्य उनका अस्तित्व है। चकि यह जाति बहुत प्राचीन साहित्यिकोंने पार्योंकी भापाको भी सुधारा। दो युग की है इसलिये वादको सभ्यतामें इसकी क्या प्रबल संस्कृतियोंके संघप का परिणाम ही यह होता देन रही है, यह कहना बड़ा कठिन है । यह जाति डा. समीति कुमार चटर्जीका कहना है अपने पीछे आने वाली शक्तिशालिनी मानव शाखाओंसे अपनी संस्कृतिको बहुत कम बचा "आजकी नतन सामग्री और नवीन उद्धार काय सकी। अजन्ताके एक चित्र में कृष्णांग जातिका वतलात है कि भारतीय सभ्यताके निर्माणमें न चिन्ह मिलता है। केवल आयोंको श्रेय है बल्कि उनसे पहले रहने । वाले अनार्योंको भी है। अनार्यो का इस सभ्यता कृष्णांग जातिके बाद पूर्वकी ओरसे माग्नेय के निर्माणमें बहुत बड़ा हिस्सा है। अनार्याक (Austric) जाति आई। इनकी भाषा धर्म और पास आर्यों से बहत बढी चढ़ी भौतिक सभ्यता थी। मंस्कृतिका रूप हिन्दचीनमे मिलता है। इस जाति

Loading...

Page Navigation
1 ... 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508