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मौर्य साम्राज्यका संक्षिप्त इतिहास
(ले०-बालचन्द्र जैन एम० ए० )
चन्द्रगुप्त मौर्य
गलाम नहीं देख सकता था। उसने सिकन्दरकी
माम्राज्य-लिप्साके प्रति विरोध प्रकाश किया जिसमे चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वजोंका कुछ पता नहीं
सिकन्दर उसपर गए होगया और चन्द्रगुप्तको यहाँ चलता । मौय मोरियका संस्कृत रूप है। मोरिय
में प्राण बचाकर भागना पड़ा। तक्षशिलामें ही उसे जातिका परिचय हमें बुद्ध और महावीर के समय
बाह्मण चाणक्य मिला। वह भी नंदराजसे में भी मिलता है। मौर्यपुत्र या मोरियपुत्त भगवान
असन्तुष्ट था। दोनों ही धुनके पक्के थे। जैन, महावीरके ग्यारह गणधरोंमे से एक थे। चन्द्रगुप्त बौद्ध और हिन्द सभी अनुतियां चाणक्यको इसी मौर्य जातिका था। पिछली दन्तकथामे उसे
मगधका मिहासन हथियानेमे चन्द्रगुप्तका सहायक मुग नामक दासीका पुत्र कहकर मौर्य नामकी
मानती है। माथकता बताइ जान लगी। वस्तुत: उक्त दन्तकथा में कोई तथ्य नहीं है और न इस प्रकारका काई
चन्द्रगुप्तने पंजाबमें ही सैन्य-संघटन किया
और पश्चिमकं प्रान्त जीतता हुआ पूर्वमें क्रमशः प्राचीन उल्लेख ही मिलता है। विष्णुपुराणकी
पाटलिपुत्र तक चढ़ पाया। वहां भयानक और घमाटीकामे पहली बार यह बात उठाई गई है। मुद्रा
सान युद्ध के पश्चात चन्द्रगुप्त विजयी हुआ और राक्षस नाटकमे भी पता चलता है कि वह नन्दक
कौटिल्य (चाणक्य ) ने मगध के सिंहासनपर उसका वंशका था। स्पष्ट है कि किसी कारण विशेषमे ही
अभिषेक किया । महापंश टीकामें एक कथा चन्द्रगुप्तको नीचकुलीन प्रचारित करनेके उद्देश्यस
मिलती है। चन्द्रगुप्त और चाणक्यने धननम्दसे यह कथा गढ़ी गई । सत्य तो यह है कि वह मारिय- हारकर भागते एक वृदियाके घरमे शरण ली । जातिका क्षत्रिय था।
बुढ़ियाने अपने बेटेको खानेके लिये एक रोटी दो चन्द्रगुप्त महत्वाकांक्षी यवक था। अंतिम नंदराजा किन्तु उसने उसे बीचस कुतर-कुतरकर सारी रोटी धननंदसे उसका प्रारंभिक विरोध था और वह खराब कर दी। बुढ़िया यह देखकर लड़केको डांटते उसके साम्राज्यको उखाड फेकनके लिये प्रयत्नशील हुए बोली कि मूर्ख, रोटी कोनोंसे तोड़ । चन्द्रगुप्त था। इसी उद्देश्यको लेकर वह तक्षशिलामें सिकन्दर और चाणक्य जैसी मूर्खता कर सारी रोटी खराब से भी मिला था। नन्दसाम्राज्यको नष्ट करने में वह
मत कर। चन्द्रगुप्त और चाणक्य के लिये यह सामसिकन्दरको सहायता चाहता था लेकिन सिकन्दरसे
यिक शिक्षा थी। उन्होंने साम्राज्य के मध्यमें हलचल उसकी पटी नहीं। मिकन्दर समूचे भारतपर अपना
मचानकी अपेक्षा कोनोंस आक्रमण करनेका सबक आधिपत्य चाहता था पर चन्द्रगुम अपने देशको
सीखा और पहले पश्चिमी प्रान्तोंकी विजय की तब
पूर्बकी ओर बढ़े। इसप्रकार ३२२ ई० पू० मगधका १. चन्द्रगतं नन्दम्य व शुदायां मुरायां जातं मोर्याणां
सिंहासन मौर्योक अधिकार में आगया। चाणक्य प्रथमम् ।..
२. कोटिल्य एव. चन्द्रगुप्त राज्येऽभिषेक्ष्यति ।