________________
3७८
अनेकान्त
[वष १०
किन्तु इन चौरासी जातियोंमे ऐसी कितनी ही उप. पूज्यपाद । देवनन्दी ) को पद्मावती पुरवाल जातियां अथवा वंश है जो पहले कभी बहुत कुछ लिखा है, परन्तु प्राचीन ऐतिहामिक प्रमागम समृद्ध और सम्पन्न रहे है। किन्तु आज वे उतन उनका पद्मावतो-पुरवाल होना प्रमागिन नहीं ममृद्ध एव वैभवसम्पन्न नहीं दीखते, और कितने होता, कारण कि देवनन्दी ब्राह्मण कुल में समुत्पन्न ही वंश एवं जातियां प्राचीन समय में गौरवशाली हुए थे। रहे हैं किन्तु आज उक्त संख्यामे उनका उल्लेख भी जाति और गोत्रोंका अधिकांश निकास अथवा शामिल नहीं है। जैसे धर्कट १ आदि । निमोण गांव, नगर और देश आदिक नामों परम
इन चौरामी जातियोंम पद्मावतीपुरवाल भी एक हुअा है। उदाहरगा के लिए मांभरके श्राम-पामक उपजाति है, जो आगरा, मैनपुरी, एटा, ग्वालियर बघेग स्थानसे बघरवाल, पालोम पल्लीवाल
आदि स्थानों में श्राबाद है. इसकी जनसंख्या भी वण्डेलासे खण्डेलवाल, अग्रोहामे अप्रवाल, कई हजार पाई जाती है। वर्तमानमे यह जाति जायम अथवा जैमसे जैमवाल और ओमासे बहत कुछ पिछड़ो हई है तो भी इसमें कई प्रतिष्ठित श्रीमवाल जातिका निकाम हा है। तथा चंदेरी विद्वान है। आज भी समाज मेवाके कायमे लगे के निवासी होनस चन्दैरिया, चन्दवाडस चान्दुहा है। यद्यपि इस जातिके विद्वान अपना उदय वाड या चांदवाड और पद्मावती नगरीये पद्मावब्राह्मणाम बतलात है और अपनका दवनन्दी तिया आदि गोत्रों एव भरका उदय हैंा है। इसी (पज्यपाद) का सन्तानीय भी प्रकट करत है, परन्तु तरह अन्य कितनी ही जातियांक मम्बन्धी प्राचीन इतिहामस उनकी यह कल्पना कबल कल्पित हा लेखां, ताम्रपत्रों, मिक्को, ग्रन्थ प्रशस्तिया ओर जान पड़ती है। इसके दो कारण है। एक तो यह
ग्रन्थों आदि परस उनक इतिवृत्तका पता लगाया कि उपजातियोंका इतिवृत्त अभी अन्धकार में है जो
जा सकता है। कुछ प्रकाशमें आ पाया है उसके आधारम उमका
उक्त कविवाक प्रन्याम उल्लिग्वित 'पामावइ' अस्तित्व विक्रमकी दशमी शताब्दीमे पूर्वका ज्ञात
शब्द स्वयं पद्मावती नामकी नगरी का वाचक है। नहीं होता, हो सकता कि वे उससे भी पूर्ववर्ती रहा
यह नगरी पूर्व समयमे खूब समृद्ध थी उसकी इस हो, परन्तु बिना किसी प्रामाणिक अनुसन्धानक इम
समृद्धिका उल्लेख ग्बजुराहोकं वि० सं० १०५२ क मम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा मकता।
शिलालेखमे पाया जाता है, जिसमें यह बतलाया पट्टावली वाला दूसरा कारण भी प्रामाणिक
गया है कि ये नगरी ऊचे-ऊच गगनचुम्बी भवनों प्रतीत नहीं होता, क्योंकि पदावलीम श्राचार्य
एवं मकानातोंसे सुशोभित थी, जिसकं राजमार्गों 1. यह जाति जैन समाजम गौरव-शालिनी रही है। मे बड़े बड़े तेज तुरंग दौड़त थे और जिसकी इसमें अनेक प्रतिष्ठित श्रीसम्पन्न श्रावक और विद्वान चमकती हुई स्वच्छ एवं शुभ्र दीवार श्राकाशसं हुप है जिनकी कृतियां आजभी अपने अस्तित्वस भूतल बातें करती थी। जैसाकि उक्त लेखक निम्न पद्योंस को पमलंकृत कर रही हैं। भविष्य दत्त कयाक कर्ता प्रकट है:बुध धनपाल और धर्म परीक्षाके कर्ता बुध हरिषेणने भी सोधुत्तंग पतग लंघन पथ प्रोगमालाकुला अपने जन्मसे 'धर्कट वश को पावन पिया है। हरिषेण शुभाभ्र कप पाण्डुरोच्च शिखरप्राकारचित्रा (म्ब) रा ने अपनी धर्मपरीक्षा वि० सं० १०४५ में बना कर प्रालेयाचचन शृगन्नि (नि) भशुभप्रासादसमावती ममाप्त की हे। धर्कट वंशक अनुयायी दिगम्बर श्वेताम्बर भण्यापूर्वमभूदपूर्वरचना या नाम पद्मावती ॥ दोनों ही सम्प्रदायोंमें रहे हैं।
स्वगत गतुरंगमोदगमधु (खु) रक्षोदादजः प्रो [] त,