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ॐ अहम
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बस्ततत्त्व-सघातक
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विश्व तत्त्व-प्रकाशक
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* वार्षिक मूल्य ५)*
= ★ इस किरणका मूल्य ॥)*
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नीतिविरोधध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकःसम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्त,
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अप्रैल
वर्ष ५० किरण१०
वीरमेवामन्दिर ( समन्तभद्राश्रम ), ७/३३ दरियागंज, दहली वैशाख शुक्ल, वीनिवाण-मंवत् २४७६, विक्रम संवत् २००७
श्रीमाघनन्दि ति विरचिता
अहेन्नतिमाला [यह स्तनि जयपुरके बडे मन्दिरके उसी-जीण शीर्ण गटक परमे उपलब्ध हुई है जिसपरसं अनेकान्तकी गत किरण में प्रकाशित 'शम्भस्तोत्र की उपलब्धि हुई थी। इस स्ततिक, जिसका नाम अन्तिम पद्यपरमे 'अईन्नतिमाला' पाया जाता है, सामने आते ही खयाल उत्पन्न हुआ कि शायद यह स्तुति वही हो जो जैनसिद्धान्त भास्करक प्रथम वर्ष की किसी किरण मे कोई ३१ वर्ष पहिले प्रकाशित हुई थी परन्तु जयपुर में भास्करकी उस वर्षकी फाइल न मिलपकनेक कारण मिलान आदिकी दृष्टि से स्तुतिको १०मार्च सन १९५० को नोट कर लिया गया। इसके याद एक दूसरे गुटको दूसरी प्रति भी मिल गई, जो पहली प्रतिसे शुद्ध जान पड़ी और इसलिए उसके पाठ भेदोंको नोट किया गया । हाल में मास्कर 'क प्रथम वर्षकी थी किरणको देखनेसे मालूम हा कि यह स्तुति उपमें एक ऐतिहासिक स्तुति के नाम प्रकाशित
है और इसे कर्णाटकदेशमे प्राप्त उन माघनन्दि प्राचायका कृति बतलाया है जो दैवयोगमे अपना मुनिपद छोड़ कर
अत्यन्त सुन्दर कुम्हारकी कन्याके माथ विवाह करने लिए वाध्य हए थे। साथ ही,यह भी प्रकट किया है कि वह कुम्हार के घर रहते जब घड़ा (मटकादि) बनानेको बैठते थे तो उसपर थपकी लगाते समय इस प्रकारके स्तुति श्लोकोंको बना बना कर गाया करते थे। यह सब बात कहां तक ठीक है इसक विचारका यहां अवसर नहीं है। हां, इतना जरूर कहना होगा कि स्तुति बड़ी सुन्दर तथा मावपूर्ण है, आदि अन्तक दोनों पोंको छोडकर शेष पद्य ऋषभादि चतुर्विंशति तीथरोंकी स्तुतिको लिए हए बड़े ही रसोले हैं और वे घड़ेपर थपको लगाते हुए गाए बजाए जा सकते हैं। भास्कर में यह स्तति किपने हा प्रशद्ध रूप में प्रकाशित हुई थी जिमसे अनेक स्थलों पर अर्थ को संगति