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अनेकान्त परम ज्योति स्वरूप है, समस्त मोह रूपी अन्धकार वाह्य प्रकाश तभी तक सहारा मात्र होना चाहिये के दूर होने पर समस्त पदार्थोंको युगपत् तीनों जबतक अपना प्रकाश प्रकट न हो। सीढ़ी तभी तक कालकी समस्त पयोयों सहित जैसाका तैसा जानने उपयोगी है जब तक ऊपरी जोने पर न पहुंच जाय । वाला है। किसी दीपक आदि प्रकाशक पदार्थोके समस्त बाह्य साधनोंको एक सहायक मात्र ही समझ अधीन नही अपितु प्रकाशक होकर स्वयं प्रकाश रूप कर उनके छोड़नेमें रुचि व अभ्यास करते रहना है, चित्का स्वरूप प्रकाशमय हो तो है, अथ च चाहिये और निज की क्तियोंको पकड़ कर उनपर अनन्त सुखी है और अनन्त बलके कारण निर्भय है पूर्ण विश्वास करते हुए अपनी अनन्तज्ञान-अनन्त इसप्रकार की शक्तिको प्रकट करने का अभ्यास- निर- दर्शन ज्योतिको जगाना चाहिये । प्रश्न हो सकता न्तर अपनी समस्त मन वचन काय सम्बन्धी क्रिया- है कि प्रकाश-प्रकाशमें किस भांतिका भंद है? लौओंको रोककर अपने आत्माके अन्दर करो। किक प्रकाश व आत्मिक प्रकाशमें क्या अन्तर है ?
यह ही तो वास्तविक प्रकाश है समस्त जीवोंके क्रिया भी एकसी दीखती है-उत्तर यह है कि एक लिये प्रकाशका एक मात्र मार्ग है ऐसा श्री जिनेन्द्र- प्रकाशाभास है जो कुछ समय पश्चात् नष्ट हो जाता देवने अपनी दिव्य वाणीके द्वारा उपदेश दिया है। दूसरा प्रकाश है जो सदा बना रहता है जिसे हम - इसी प्रकारका प्रकाश प्राप्त करने वाले मनुष्य पूर्ण आनन्द भी कह सकते है क्योंकि जब यह आत्म परमात्मा होते है जो संसारके समस्त प्राणियोंको प्रकाश चमकने लगता है तभी आत्मिक आनन्दानुअपने समान शक्ति वाला जानकर शक्तिको अपेक्षा भवकी प्राप्ति होता है सखाभास तो अन्धेके समान उनको अपने समान देखते हैं।
अन्धा है बेभरोसे है पराधीन है क्योंकि विषय-जन्य इसीप्रकार के प्रकाशको प्राप्त करने वाले अभ्या
है। किन्तु श्रात्मस्थ सख स्वाधीन है निरन्तर रहने सी मनुष्य अपनी आत्मामें शान्तिको स्थापित करते
वाला है। किसी के द्वारा नष्ट होने वाला नहीं और रहते है और दूसरे जीवोंको भी सुखके निमित्त बन न ही किसी को नष्ट करने वाला है। जाते है।
अपने प्रकाशमें आप मग्न हो जाते हैं अपनी त्वामध्यय विभुचिन्त्यमसंख्यमाद्यं, आत्माका दर्शन प्राप्त करते हैं और यही आत्माके
ब्राह्मणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । उज्वल होनेका प्रमाण है। प्रत्येक मात्मा स्वयं प्रका
योगीश्वर विदितयोगमनेकमेक, शमान शक्तिमय है।
ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः।
STAKA
AAPAN