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भारतीय जनतन्त्रकी स्थापना
(ले० श्री विजयकुमार चौधरी )
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हमारे भारतीय जनतन्त्रकी स्थापना विश्वको महानतम घटनाओं मे से एक है। एक हजार वर्षकी पराधीनताके बाद आज उसने अपनेको सर्वसत्तासम्पन्न लोकराज्य घोषित कर दिया है। अब वह पूर्णरूप ने उन्मुक्त और अपनी चतुर्मुखो उन्नति करने के लिये पूर्ण स्वाधीन है । इतने लम्बे समय तक भारतको पराधीनताकी अच्छेय जञ्जीरों में जकड़ा रहना पड़ा। इस समय तक सम्राट चन्द्रगुनके स्वर्ण युगको स्मृति भी उसके हृदय में धुंधली सी पड़ गई थी। अब फिर हमारे देशमें उस स्वर्णिम युगका नूतन विहान उदित हुआ है । भारतकी ३५ कोटि जनताको अब उद्बोधित होने का समय गया है ।
यह सब देश के उन अगणित शहीदोंके वलिदानका फल है जिनके प्रति आज हमारे मस्तक श्रद्धासे नत होजाते हैं, जिन्होंने बापूके द्वारा प्रदर्शित सत्य अहिंसा के मागपर चल अपने जीवनको न्योछावर कर दिया। हमें इस बात का गर्व है कि यह युगान्तरकारी परिवर्तन वापके बताये मार्ग हिंसा और सत्यपर चलनेसे ही सुलभ हुआ है। इतनी बड़ी रक्तहीन क्रान्तिसे जिसका मूल, शाखा और पत्तियां सब प्रायः शांति से सम्बद्धित हों, किसी भी देशमें नहीं हुई। इस क्रांति शान्तिके सुन्दर समन्वयने ही हमारी स्वतन्त्रताको अर्जित किया है ।
पराधीनता १ हजारवर्ष के लम्बे समय में भारतको अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पहले पहल मुगल सम्राटोंके कठोर धर्मोन्मादने भारतीय जनताके हृदयको तोड़ दिया था । आशा मूलक सम्पूर्ण वृत्तियां इन शासकों के शासनने समाप्त कर दी थीं। जोवनको समरसता और सौष्ठव प्रायः विच्छिन्न हो चुके थे । उस समय देशके अगणित नौजवानों और नौनिहालों को कठोर एवं एकदलीय धार्मिक नीतिका शिकार होना पड़ा।
जजिया जैम करोंने भारतीय आत्माको जैसे कुछ आघात पहुँचाये उनसे हमारे सामाजिक जीवन की उर्वराशक्ति प्रायः नष्ट-सी हो गई। इसके पश्चात् विदेशी श्वेतांगजातिने भी इसे अपना स्वार्थका विषय बनाया और उसके नैतिक जीवनके साथ आर्थिक जीवनको भी तहस-नहस कर दिया । सौभाग्य से देश में कांग्रेस-राष्ट्रीय महासभाकी स्थापना हुई जो अनेक आघात प्रतिघातों में से गुजरती हुई अन्तमे वापूके नेतृत्त्वद्वारा ही स्वतन्त्रताको प्राप्त करने में सफल हुई
२१ वर्ष पूर्व इस राष्ट्रीय महासभाने रावीके तट पर भारतीय लोक राज्यका संकल्प किया था, जो गत २६ जनवरीका पूर्ण हो चुका। इससे भारत ही नहीं सारा विश्व प्रभावित हुआ है और वह भी भारतके इन्हीं अहिंसा तथा सत्यके सिद्धान्तों पर चलकर शान्तिके स्थापनमें कृतप्रयत्न है ।
भारतीय जनतंत्र के नव-निर्मित विधानमें जा विशेषतायें है, विश्वास है कि उनसे भारतीय जनता सुखी और सम्पन्न बन सकेगी और एक हजार वर्ष का म्रियमाण जीवन पुनरुज्जीवित हो उठेगा । भारतीय संविधानके प्रारूप या लक्ष्यसे ही इससे इस बात की पुष्टि होजातो है जिसकी प्रस्तावनामे कहा गया है कि - 'हम भारतके लोग भारतको एक सम्पण प्रभुत्व-सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने तथा उसके समस्त नागरिकोंको सामाजिक राजनैतिक और प्रार्थिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासनाकी स्वतन्त्रता प्रतिष्ठा और श्रवसरकी समता प्राप्त कराने तथा उन सबमें व्यक्तिकी गरिमा और राष्ट्रकी एकता सुरक्षित करने वाली वन्धुता बढानेके लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस सम्विधान सभामें एतद्द्वारा इस सम्विधानको गोकृत अधिनियमित और श्रात्मार्पित करते हैं ।" कहना चाहिए कि अब भारतको जनता अपने विधानद्वारा अपनो स्वतन्त्रताका पूर्णच नुभव कर सकेगी, और अपनी चतुमुखी उन्नति के लिये