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अनेकान्त
वर्ष १०
इसीमें कहा गया है कि आर्थिक व्यवस्था ऐसी न का उल्लेख नहीं किया गया है। संविधानने न त हो जाय जिससे कुछ व्यक्तियोंके हाथोंमें सारी देशको समाजवादो बनाया है और न साम्यवादी। संपत्ति केन्द्रित हो जाय और आम जनताका उससे पूजीवादो व्यवस्थाभो संविधान में नहीं की गई है। अहित हो।
इस मंविधानके प्रति की गई समाजवादियों की यह आदेशात्मक व्यवस्था भारत के लिये नई आलोचनाका मल आधार यही है कि कायेरूपमें चीज नहीं है। वास्तवमें यही चीजें थीं जिनके लिये इसके द्वारा पंजीवादका पिष्टपेषण होता रहेगा। कांग्रेस इतने दिनोंसे आजादीका संघर्ष चलाती रही उनका कहना है कि काँग्रेसने सदैव कुटीर, उद्योगों, राजनैतिक स्वतंत्रता उस समय तक बेकार है जब
खादी आम व जनताका नाम लेते-लेते भी पूजीपतितक जनताको आर्थिक रूपमें स्वतंत्रता और समा- गोंको बल प्रदान किया है। इस प्रकारको आलोनता प्राप्त न हो। जो मौलिक अधिकार और
चना केवल सहानुभूति की कमीके कारण ही हैं। सिद्धांत इस संविधानमें रखे गये है उनमें बहुत .
विधानमें इस बात की पूर्ण गुजाइम रखी गई है कि से करांची कांग्रेसके प्रस्तावमें निर्धारित किये जा चुके थे। कांग्रेसके कई चनावघोषणा-पत्रों में भी उनका
जनताको इच्छाओंके अनुकूल देश किसीभी आर्थिक उल्लेख किया जा चुका है। कई इसमेसे ऐसे आधा
व्यवस्थाको अपना सके। यदि अधिकांश जनमत रभूत सिद्धांत भी है जिनको राष्टपिता महात्मागांधी देशमें समाजवादो या माम्यवादी अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय कार्यक्रमका आधार समझत थे। एक प्रकार चाहता है तो उस जनमतका प्रतिनिधित्व करने वाली से यह कहा जा सकता है कि पिछले पचास वर्पोमें सरकार इसी संविधानके ढांचेमें रह कर देशमें जिन अधिकारों तथा सिद्धांतोंके लिये हमारे राष्टने वैमी हो आर्थिक व्यवस्था ला सकती है। वह किसी अपना स्वाधीनता-संग्राम चलाया उन्हीं अधिकारों भी उद्योगका राष्टीयकरण कर सकती है। युक्तऔर सिद्धांतोंको इस संविधान में विशेष स्थान दिया प्रान्तमें जिम ढंगसे जमींदारी उन्मूलन किया जा गया है।
रहा है वैसे ही अन्य राज्यों में भी सरकार और भूमि ऊपर कहा जा चुका है कि इस मंविधानमें व्य- जोतने वालोंके बीच मध्यवर्तियोंको हटायाजा सकता क्तिके अधिकारोंकी इतनी विशद व्याख्या इस कारण है और यदि आम जनता चाहे तो यहांभी रूसके आवश्यक हुइ है क्योंकि सामाजिक रूपमें यहांकी .
म यहाका ढंगकी सामहिक कृषिकी व्यवस्थाकी जा सकती है। जनताका एक काफी बड़ा भाग पददलित रहा है।
यह एक दुर्भाग्यकी बात है कि प्रत्येक देशमें किसान और आर्थिक रूपमें उससे भी बड़ा भाग शोषित
के असन्तोपका लाभ उठाकर लोग क्रान्ति किया करते होता रहा है, इसी कारण समाजके इस अंगके लिये और फिर क्रान्तिके सफल हो जानेपर किसानकी संविधान में विशेष व्यवस्था की गई है। परिगणित जातियों और पिछड़े हुये कबीलों तथा कुछ अन्य
वैयक्तिक स्वतन्त्रता छीनकर उसे सामूहिक कृषिपिछड़े हुये क्षेत्रोंके लिये सविधानके पांचवें शालामें मजदूर बननेके लिये भेज दिया जाता है। छठे परिशिष्टमे शासनप्रबन्धकी विशेष व्यवस्था
भारतका किसान वैयक्तिक स्वतन्त्रताका सबसे बड़ा
पक्षपाती है। जिस गतिसे युक्तप्रान्तमें जमींदारी मिलती है । परिगणित जातियों और पिछड़े हुये
उन्मलनका कार्य चल रहा है, यदि उसी गतिसे अन्य कबीलोंके लिये दस वर्ष तक जन-संख्याक आधार पर केन्द्र तथा राज्योंकी धारासभाओंमें सीटें सुर
स्थानों में से भी जमींदारियाँ हटा दी गई तो फिर क्षित की गई है।
किमानका असन्तोष दूर हो जायगा और भारत
__ में साम्यवादी अथवा तानाशाही क्रान्ति सफल नहीं सहानुभूतिशून्य आलोचना
हो सकेगी। इस संविधानमें किसी विशेष आर्थिक व्यवस्था