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अनेकान्त पू० में जैन मूर्तियां बननेका यह अकाट्य प्रमाण एकत्र कर उनका तख्ता उलट दिया। राज सेनापति
पुष्य मित्रने शासन अपने हाथोंमें ले लिया और मौर्यकालमें कला अधिक विकसित होगई थी ब्राह्मणवादका जोर फिरसे बढ़ा । इतनेपर भी और सारनाथके चौमुखे सिंह जैसी वस्तुयें बनने श्रमण सस्कृति किसी तरह अपना बचाव करती लगी थीं। इस कालकी कला राज्याश्रित थी और अनेक केन्द्रोंमें कलाकी साधना करती रही। इस कांच सरीखे चमकने वाले श्रोपसे अनायास ही युगकी कला लोक कला है। राज्यसे उसे कोई प्रश्रय पहिचान ली जाती है। इस कालके बने सभी शिल्पों प्राप्त न था। में चुनारके पत्थरका उपयोग हुआ है और उस साँची और भरहुत की बौद्ध-कला शङ्गोंके ही पर इतनी घुटाई की गई है कि वह कांच जैसा चम- युग की है। मथुरामें जैन कलाका प्राधान्य बढ़ा कदार बन जाए।
किन्तु वह राज-धर्म से अछूती न रह सकी। सांची मौर्यवंशके शासक अपना निजी धर्म पालते और भरहुत के स्तूपों जैसा ही विशाल जैसा स्तूप हुए भी अन्य धमों के प्रति समष्टि थे। उन्होंने मथुरा में बनाया गया और उसकी पूजा होने लगो पशुहिंसा, यागहिंसा और ऊंच-नीच के भेद-भाव इसके तोरणों पर अनेक प्रकार की मर्तियाँ खोदी को कानूनी तौर पर निषिद्ध कर दिया था पर किसी गई और उनके साथ साथ अन्य लौकिक विषय धर्मके मौलिक सिद्धान्तों अथवा विचारोंपर कभी भी चित्रित किए गए। कोई आक्षेप नहीं किया और न उनकी क्रियाओंपर दक्षिण-पूर्व में महामेघवाहन खारवेलका उदय इसी ही कोई प्रतिबन्ध लगाया। सम्राट अशोक और युगमें हुआ और उसका प्रभाव उत्तर पश्चिमतक उसके पुत्र दशरथ ने आजीवक भिक्षुओं जो जैन फैल गया। मगध विजय तो उसने की हो पर विदेशी भिक्षओं जैसे नग्न रहते थे और वैसा ही आचार आक्रमण भी उमके भयसे रुक गया। विजय के पालते थे-को कार्यानषिद्याके लिये अनेक गुफाएं उपलक्ष्यमें कमारी उसनेपर्वत वतमान उदयगिरि खंडदान की थीं।
गिरि पर अनेक गुफाएं एवं गुफामंदिर बनवाए ___ अशोकका पौत्र सम्प्रति जैन था और अशोकके इन गुफामंदिरों की मतियोंकी मतिकला अपने दंग ही समान सार्वभौम शासक था। वह कशल शासक की निराली है और वह की कलासे प्रभावित था और अशोकके शासन काल में भी शासनको नहीं है। बाग डोर उसीके हाथमें थी। अनेक ऐसे उल्लेख कुषाण काल में पहुंच कर मथुराकी कला सम्पन्न मिलते है जिनसे विदित होता है कि राजकोष की हो चकी थी। इस कालमे सुन्दरसे सुन्दर जैन रक्षाके लिये उसने अशोकके सम्राट होते हुए भी मतियां बनी जो पद्मासन कायोत्सग दोनों आसनों उसकी आज्ञाओं और उसके द्वारा स्वीकृत दानको में मिलती हैं। पद्मासन मतियोंकी परम्परा मोहेंरद कर दिया था। जैन धर्म के प्रचार के लिये इसने जोदरोंसे चली आरही था और जैन क्षेत्रमें बराकछ उटा नहीं रखा। पटना म्यजियम में प्रदर्शित बर उक्त प्रकारकी मर्तियां बनरहीं थीं। इन्हीके जैन मतियों पर ठीक वही ओप है जो मौययुग आधारपर हो अब अन्य मूर्तियां बनने लगी थीं। के अन्य शिल्पपर है । ये मूर्तियां सम्प्रति कालीन बद्ध मूर्ति तीर्थकर मर्ति का अनुकरण थी। मथुरा होनी चाहिये, क्योंकि मौयवंशके शासनके साथ कलाकी मूर्तियां लाल चित्ते दार पत्थरकी हैं। ही ओपनेकी यह कला सदाके लिये लुप्त हो गई। और उन पर लेख भी खुदे है। इस कालकी अभि
मौर्य राजाओंकी समष्टि कट्टर पन्थियोंको न लिखित सर्बतो भद्रिका । प्रतिमाएं भी ध्यान देने योग्य रुची और जातिमदके अंधोंने धीरे-धीरे शक्ति हैं जो प्राय खड्गासन हैं।