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* वार्षिक मूल्य ५ ) ★
विश्व तत्य-प्रकाशः
अने
वर्ष १० किरण ६
: ॐ अहंम :
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नीतिविशेषध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् ! परय्यागमस्य वीजे भुवनैकगुरुर्जयत्यनेका
वस्तु तत्त्व-संघोतक
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★ इस किरणका मूल्य ॥) ★
मार्च १६५०
वीर सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम ), ७/३३ दरियागंज, देहली चैत्र शुक्ल वीरनिर्वाण-संवत् २४७६, विक्रम संवत् २००७
मुनिश्रीरत्न कीर्ति-विरचित-
शम्भु-स्तोत्र
| यह शम्भुस्तोत्र मुझे हालमें, जयपुरक श्री बड़ा मन्दिरजीके शास्त्र भण्डारका निरीक्षण करते हुए, एक जीर्णशीर्ण गुटकेपरसे ता० ६ मार्च सन् १९५० को उपलब्ध हुआ है। इसके कर्त्ता मुनिरत्नकोति हैं जेसा कि अन्तिम पद्यसे जाना जाता है, और उन्होंने अपने गुरु आदिका कोई परिचय साथमें नहीं दिया इसलिये यह बात अभी अन्वेषणीय ही है कि ये कौनसे रत्नकीर्ति मुनि हैं । प्रस्तुत स्तोत्र बढ़ा सन्दर, प्रपन्न, गम्भीर और अलंकारों तथा भावोंसे परिपूर्ण है । इसमें जिस शम्भुका जिन विशेषणोंके साथ स्तवन किया गया है वे उस शंभुका बोध करानेके लिये पर्याप्त हैं जो कविका इष्ट स्तुत्य भगवान् है और जिसके विषयमें बार बार यह कहा गया है कि ऐसे (सच्चे) शंभु वे लोग प्रणाम नहीं कर पाते हैं जो पुण्यहीन हैं—उसकी पूजा बन्दनाका सस्सौभाग्य पुण्यथानोंको ही प्राप्त होता है । [पुण्यहीन तो नामादि की कुछ समानताओं के कारण किसी दूसरे ही शंभु की उपासना किया करते हैं ] । कवि वह वन्दनीय शंभु युगादिदेव श्रीवृषभनाथ भगवान् (आदिनाथ) है, जिसकी भक्तिपूर्वक श्राराधमासे संसारी जीब संसारके दुःख समुद्र से पार होकर श्रनुपमस्खस्वरूप अद्भुत सिद्धिको प्राप्त होते हैं। इस स्तोत्रमें लोकप्रसिद्ध शंभु (महादेवनामक रुद्र) के कितनेही कथित विशेषणोंको किस चतुराई एवं सावधानी के साथ अपने इष्ट शंभुमें यथार्थताको दृष्टिसे घटित किया गया है वह विद्वानोके देखने जानने और मनन करने की वस्तु हैं। इस स्तोत्रका एक अच्छा हिन्दी