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अनेकान्त
1 वर्ष १०
कृष्णे नीले वं वर्ष पीतके व्याधिमादिशेत् । रूक्षे भस्मनिभं चापि दुवृष्टिर्भयमादिशेत् ||६||
अर्थ — काले और नीले वर्णका चन्द्र-मण्डल हो तो निश्चयसे वर्षा होती है। यदि पीले रंग का हो तो व्याधि ( महामारी) का प्रकोप होता है । यदि रूक्ष (रूखा) और भस्म (राख) के सदृश हो तो दधृष्ट अर्थात वर्षा नहीं होती और उससे भय प्राप्त होता है अर्थात् जलवर्षा न होकर वायु, धूलि आदिकी वर्षा होती है । और यह भयसूचक है | ॥
यदा तु सोममुदितं परिवेषो रुग्णद्धि हि । जीमूतवर्ण-स्निग्धश्च महामेघस्तदा भवेत् ॥ १०॥
अर्थ - यदि चन्द्रमाका परिवेष उदयप्राप्त चन्द्रमाको अवरुद्ध करता है - ढक लेता है और वह मेचके समान तथा स्निग्ध चीकना हो तो महामेघ होता है अर्थात उत्तम वृष्टि होती है ||१०|| अभ्युन्नतो यदा श्वेता रूक्षः सन्ध्या - निशाकरः अचिरेणैव कालेन राष्ट्र' चौरैर्विलुप्यते ॥११॥
अर्थ- - उदय होता हुआ संध्याके समयका चन्द्रमा यदि श्वेत और रूक्ष वर्णके परिवेष युक्त हो तो देशको शीघ्र चोरोंके उपद्रवका भय होता है अर्थात् देशको चारोंसे हानि होती हैं ।। १५ ।।
चन्द्रस्य परिवेषस्तु सर्वत्रं यदा भवेत् । शस्त्र जनक्षयं चैव तस्मिन् देशे विनिदिशेत् ॥ १२ ॥
अर्थ-यदि सारा रात (उदयसे अस्त तक) चन्द्रमाका परिवष रहे तो उस देशमें शस्त्रका गिरना अर्थात् युद्धका छिड़ना और जनताका नारा सूचित होता है ||१२||
भास्करं तु यदा रूक्षः परिवेषो रुणद्धि हि । तदा मरणमाख्याति नागरस्य महीपतेः || १३||
अर्थ - यदि सूर्यका परिवेष रूक्ष हो और वह उसे ढक ले तो वह नागरिक लोगों तथा राजाक मरणको बदलाता है ||१३|| आदित्य-परिवेषस्तु यदा सर्वदिनं भवेत् । क्षुद्भयं जनमारिश्च शस्त्र कोपं च निर्दिशेत् ||१४|| -सूर्यका परिवेष सारे दिन बना रहे तो क्षुधाका भय, मनुष्योंका महामारीसे मरण और युद्धका कोप होता है ||१४||
हरते सर्वस'स्यानां मीतिर्भवति दारुणा । वृक्ष- गुल्म- लतानां च वर्त्तनीनां तथैव च ॥ १५॥
अर्थ-तथा सब प्रकारके धान्योंका नाश होता और घोर ईति (प्राकृतिक भीति) होती है और वृक्षों, गुल्मों-झुरमुटों, लताओं तथा पथिकोंको हानि पहुँचती है ||१५||
यतः खण्डस्तु दृश्येत ततः प्रविशते परः । ततः प्रयत्नं कुर्वीत रक्षणे पुर - राष्ट्रयोः ॥ १६॥
अर्थ - उपरोक्त सारे दिन के सूर्य परिवेषका जिस ओरका परिवेष खण्डित दिखाई दे उस दिशामे परचक्रका प्रवेश होता है, अतः नगर और देशकी रक्षा के लिये उस दिशा में रक्षाका प्रबन्ध करना चाहिये १६ रक्तो वा यदाभ्युदितं कृष्ण पर्यन्त एव च । परिवेषा रविं रुन्ध्याद्राजव्यसनमादिशेत् ||१७||
अर्थ - यदि रक्त अथवा कृष्णवर्ण पर्यन्त चार वर्णवाला सूर्यका परिवेष हो और वह उदित सूर्य को रोके - श्राच्छादित करे तो कष्ट सूचित करता है ||१७||
यदा, त्रिवर्णपर्यन्तं परिवेषां दिवाकरम् । तद्राष्ट्रमचिरात्कालाद् दस्युभिः परिलुप्यते || १८ ||
अर्थ-यदि सूर्यका तीन वर्णवाला मण्डल सूर्यको ढक ले तो डाकुओं द्वारा देशका शीघ्र नाश होता है || १८ ||
१ दम्ती और तालवी दोनों सकारांका प्रयोग होता है । २ ईलियाँ छह प्रकारकी हैं— अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिङो. मुषक, तोता. स्वचक्र और परचक्र । ३ श्वेत व रहित चार वर्ण ।