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छठा अध्याय
अप्राणां लक्षणं कृत्स्नं प्रवक्ष्यामि यथाक्रमम् । प्रशस्तमप्रशस्तं च तनियोधत तत्त्वतः ॥१॥
अथ-बादलोंकी प्राकृतिके लक्षण यथाक्रमसे कहता हूँ। वे दो तरहके हैं-एक शुभ और दूसरे अशुभ ।।१।। स्निग्धाण्यभ्राणि यावंति वर्षदानि न संशयः । उत्तरं मागेमाश्रित्य तिथौ' मखे यदा भवेत् ॥२॥
अर्थ-चिकने बादल अवश्य वर्षा करते हैं इसमें कुछ संशय नहीं, और उत्तरदिशाके आश्रित बादल प्रात:काल अवश्य वर्षा करते हैं । ।।२।। उदीच्यान्यथ पूर्वाणि वर्षदानि शिवानि च । दक्षिणान्यपराणि स्युः समूत्राणि न संशयः ॥३॥
अर्थ-उत्तर और पूर्व दिशाके बादल सदा उत्तम वर्षा करते हैं और दक्षिण तथा पश्चिमके बादल मत्रके समान थोड़ी-थोड़ी वर्षा करते हैं, इसमें कुछ संशय नहीं। ॥३॥ कृष्णानि पीत-ताम्राणि श्वेतानि च यदा भवेत् । तयोनि शमासृत्य वर्षदानि शिवानि च ॥४॥
अर्थ-यदि बादल पीले, तांबे, और श्वेतवर्णके हों तो वे यह सचित करते है कि उत्तम वर्षा होगी।
अप्सराणां च सत्वानां सदृशानि चराणि च । सुस्निग्धानिच यानि स्यर्वष दानि शिवानि च ॥५॥ ___अर्थ-यदि बादल देवांगनाओंके और प्राणियों के सदृश आचरण करें अर्थात् विचरें और चिकने हों तो वे शुभ है और उनसे उत्तम वर्षा होती है ।।५॥ शुक्लानि स्निग्धवर्णानि बिन्दचित्रघनानि च । सद्यो वर्ष समाख्यान्ति तान्यभ्राणि न संशयः॥६॥
अर्थ-शुक्ल (श्वेत) वर्ण के बादल स्निग्ध सचिक्कण), बिन्दु समान विचित्र (लौकिकमें तीतरवर्णी) हों तो तत्काल वर्षाको करते हैं । शकुनैः करणैश्चापि संभवन्ति शुभैयैदा । तदा वर्षच क्षेमं च सुभिदं च जयं भवेत् ॥७॥
अर्थ-शुभ शकुन और अन्य शभ चिन्हों सहित यदि बादल हों तो वे वर्षा करते हैं तथा क्षेम. कुशल, सुभिक्ष और राजाकी विजय सूचित करते हैं ॥७॥ पक्षिणां द्विपदानां च सदृशानि यदा भवेत् । चतुष्पदानां सौम्यानां तदा विन्द्याज्जयं वदेत ॥८॥
अर्थ-सौम्य पक्षियोंके सदृश, सौम्य द्विपदों (मनुष्यों अथवा हंसों आदि) के सदृश और सौम्य चतुष्पदों (हाथी आदि पशुओं) के समान बादल हों तो उन्हें विजयको देनेवाले समझना चाहिये । यहांपर 'सौम्य' विशेषण है अतः इमसे यह तात्पर्य है कि बादलोंकी जो यह प्राकृति बतलाई गई है वह क्रूर प्राणियों जैसी न होकर सौम्य स्वभाववाले हस्ति, घोड़े, बैल, हंस, मोर, सारस, तोता, मैना, कोयल आदिकी तरह है। यदा राज्ञः प्रयाणे तु यान्यप्राणि शुभानि च । अनुमार्गाणि स्निग्धानि तदा राज्ञो जयं वदेत् ॥६॥
अर्थ-राजाके प्रयाण (चदाई) के वक्त यदि शभरूप बादल हों और वह मार्गानुसार (प्रयाण के अनुसार) गमन करते हों तथा वे चिकने हों तो उस यात्रामें राजाकी विजय होती है ॥ (क्रमशः)
। यहां तिथिका प्रात:काल प्रर्य किया गया है, क्योंकि तिथि नाम दिनका है और दिनका मुख प्रात:काल है।