________________
साहित्य परिचय और समालोचना
मेरी जीवनगाथा - लेखक श्री १०५ चुल्लक पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी, प्रकाशक गणेशप्रसाद वर्णी जैनमन्थमाला, भदैनी, काशी, मूल्य ६) रु० ।
यह भारत की आध्यात्मिक विभूति तथा महान् सन्त पूज्य वर्णीजी द्वारा अपनी कलम से लिखा गया उनका प्रामाणिक जीवनचरित है। पूज्य वर्गीजीको अपनी प्रशंसा नहीं सुहाती और इसलिये वे बार २ प्रेरणा होनेपर भी अपना जोवनचरित लिखना टालते रहे। वे कहते थे कि 'भाई ! कुन्दकुन्द, समन्तभद्र आदि लोककल्याणकारी उत्तमोत्तम महापुरुष हुए जिन्होंने अपना चरित कुछ भी नहीं लिखा । मैं अपना जीवन क्या लिखूं ? उसमें है क्या ?' जब उन्हें जनता ने भारी प्रार्थना और आग्रह के साथ उसे लिखनेके लिये बाध्य कर दिया तो उन्होंने इसे लिखा है । यह जीवनचरित नहीं है, यह तो अपने आपमें एक धर्मशास्त्र अथवा पद्मपुराण है जिसका घर-घर में आबालवृद्धको स्वाध्याय करना चाहिये । इसमें समाजका ५० वर्षका इतिहास निबद्ध है जो आगामी पीढ़ी के लिये बड़ा ही लाभ दायक सिद्ध होगा । पूज्य वर्गीजीने कितनी मुसीबतों और विप
दाको उठाया है और लोकोत्तर पुरुष बन है, यह इसे पढ़कर सहज में मालूम किया जा सकता है और प्रत्येक साधारण पुरुष उससे आत्मविकासकी उत्तम शिक्षा ग्रहण कर सकता है। जनता पूज्य वर्गीजी की बड़ी कृतज्ञ है कि उन्होंने इसे लिखा और जनता का बड़ा उपकार किया । इनके लिखवानेका प्रधान श्रेय श्री . कस्तूर चन्दजी नायककी धर्मपत्नीको प्राप्त है जिन्होंने सत्याग्रहपूर्ण प्रतिज्ञा की थी कि - 'महाराज जब तक आप लिखना शुरू न करेंगे तब तक मैं भोजन न करूंगी।' धन्य है इम महिलाको ! पुस्तक हर-एकके पढ़ने योग्य है। ऐसी पुस्तकोंका लाखोंकी संख्या में प्रचार होना चाहिये । इसके प्रका
शनके लिये ग्रन्थमाला धन्यवादकी पात्र है। मजबूत जिल्द तथा छपाई -सफाई उत्तम ।
२. वर्णी-वाणी - सम्पादक- वि० नरेन्द्र जैन, प्रकाशक उपयुक्त । मू. ४) रु० ।
यह वर्णीजीके आध्यात्मिक प्रवचनों तथा पत्रों आदिका सुन्दर और संशोधित एवं परिवर्धित दूसरा संस्करण है । एक बार यह पहले प्रकाशित हो चुको है और जिसे जनताने बहुत पसंद किया है। यह प्रत्येक के मनन करने योग्य है । इसमें कुछ परिवद्धित विषयोंके शीर्षक भ्रान्तिजनक तथा आपत्तिकारक है । जैसे इम प्रन्थ में एक शीर्षक है 'मोक्षप्राप्ति में उच्च गति आवश्यक नहीं। इस शीर्षकसे दिगम्बर जैन जनताको भ्रम हो सकता है । अतः इसके स्थान में 'आत्मविकास में उच्च गति आवश्यक नहीं' अथवा 'धर्मप्राप्तिमें उच्च गति आवश्यक नहीं' जैसा शीर्षक होना चाहिए था । मजबूत जिल्द छफाई-सफाई उत्तम
३. जेनधर्मका प्राण - लेखक पं० श्रीसुखलालजी संघवी, प्रकाशक जैनसंस्कृतिसंशोधनमण्डल काशी, मूल्य । ) ।
पण्डितजी जैन समाजके माने हुए लेखक एवं चिन्तक विद्वान् है । इस लेखको उन्होंने श्रीरामकृष्णशताब्दीप्रन्थ के नवीन संस्करण के लिये लिखा था, जिसे प्रस्तुत पत्रिका रूपमें उक्त मण्डलने प्रकाशित किया है । यह गुजराती में अनुवादित होकर 'संस्कृति' तथा 'प्रबुद्ध जैन' नामक पत्रोंमें भी प्रकट हुआ है | लेख मननपूर्ण तथा पढ़ने योग्य है ।
४. राजर्षि कुमारपाल - लेखक मुनि श्री जिनविजयजी, प्रकाशक उपर्युक्त मूल्य || ) |
मुनि जिनविजयजी जैन साहित्य और इतिहा मके अधिकारी विद्वान् हैं। उनकी लेखनीसे लिखा गया यह सुन्दर ट्रैक्ट है। इसमें राजर्षि कुमारपाल का वृत्त दिया गया है । यह गुजरातका यशस्वी और