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अनेकान्त
वर्ष १०
(एक प्रकारका श्रायुध) धनुष, बाण, गदा, फरमा, वन, तलवार, अर्द्धचन्द्राकार कुल्हाड़ी, गोह, सर्प, मियाल, भाला, मेढा, बकरा, भैंसा, कौश्रा, भेड़िया, खरगोश, बिल्ली. अत्यन्त ऊंचे उड़नेवाला पक्षीगिद्ध, रीछ, बन्दर, शिरकटे हुए धड़, कम्हारका चाक, टेड़ी आँखवाला, शक्ति (आयुधविशेष), हल इन सबके आकारवाली और दो शिरवाली तथा हाथीके आकारवाली उल्काएँ स्वभाषसे ही गिरती है ।।७,८, ६, १०, ११ ॥ उल्काऽशनिश्च विद्यु च सम्पूर्ण कुरुते फलम् । पतन्ती जनपदान्त्रीणि उल्का तीव्र प्रबाधते ॥१२॥
अर्थ-उल्का, अशनि और विद्युत ये तीनों विलियां पूरे फलको करती है। इन तीनों (उल्काओ) के गिरनेसे देशवासियोंको तीव्र बाधा होती है ।। ५२ ।। यथावदानुपूर्वेण तत्प्रवक्ष्यामि तत्वतः । अग्रतो देशमार्गेण मध्येनान्तर ततः ॥१३॥ पुच्छेन पृष्ठतो देशं पतन्त्युल्का क्निाशयेत् । मध्यमा न प्रशस्यन्ते नभस्युल्का: पतन्ति याः ॥१४॥
अर्थ-आगमानुसार क्रमशः उनका कथन करता हूँ। यदि उल्का अग्रभागसे गिर तो देशके मागका नाश करती है। यदि मध्यम भागसे गिरे तो देशके मध्यम भागका और पीछे भागसे गिर तो देशके पीछे भागका विनाश करती है । तथा जो उल्का मध्यम है अर्थात् समान-साधारण अवस्था (अग्र, मध्य और पृष्ठ रहित)वाली है और आकाशसे गिरे तो वह प्रशस्त नहीं है ॥ १३, १४ ॥ स्नेहवत्योऽन्यगामिन्यो प्रशस्ताः स्युः प्रदक्षिणाः । उल्का यदि पतेच्चित्रा पक्षिणामहिताय सा ॥१५
अर्थ-किन्तु यदि वह स्नेहयुक्त होती हुई दक्षिणमार्गसे गमन करे तो वह उल्का प्रशस्त है और यदि चित्र-विचित्र रंगकी उल्का वायें मागेस गिरे तो पक्षियोंको अहित करनेवाली जानो। ॥ १५॥ श्याम लोहितवर्णा च सद्यः कुर्यान्महद्भयम् । उल्कायां भस्मवर्णायां परचक्राऽऽगमो भवेत् ॥१६॥
अर्थ-यदि श्याम और लाल वण की उल्का गिरे तो वह शीघ्र महाभयकी सचना करतो है तथा भस्म बणकी उल्का परचक्रका आना बताती है ।। १६ ॥ अग्निमग्निप्रभा कुयोद् व्याधि माञ्जिष्ठ-सन्निभा : नीला कृष्णा च धूम्रा च शुक्ला चाऽसिसमद्य तिः॥ उल्का नीचेः समा स्निग्धा पतन्ती भयमादिशेत् । शुक्ला रक्ता च पीता च कृष्णा चापि यथाक्रमम्।। चातुर्वर्णा विभक्तव्याः साधुनोक्ता यथाक्रमम् ।
अर्य-अग्निकी प्रभावाली उल्का भय करती है। मंजिष्ठ (मजीठ)के समान वणवाली उल्का व्याधि (रोग बीमारी)को करती है । नील, कृष्ण, धूम्र और तलवारके समान द्यु तिवाली उल्का नीच प्रकृति अर्थात् अधम जानना ।स्निग्धा उल्का समप्रकृतिवाली जानना । शुक्ल, रक्त, पीत और कृष्ण इन वर्णोंवाली उल्का क्रमस चार वणों -ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रमें विभाजित करना । सो ये चारों वर्णवाली उल्का क्रमसे ब्राह्मणादि चारों वर्णाको भय होनेकी सूचना देती है ऐमा साधुओंने कहा है। अर्थात् श्वेत वर्णसे ब्राह्मण, रक्तसे क्षत्रिय, पीतसे वैश्य और कृष्णसे शुद्र जानना ।। १७, १८६॥ उदोच्या ब्राह्मणान् हन्ति प्राच्यामपि च क्षत्रियान् । वैश्यान् निहन्ति याम्यां प्रतीच्यां शुद्रघातिनी