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अनेकान्त
[वर्ष १०
हैं जिनमें सबसे बड़ी जमींदारी लखनाकी है। प्रभाव जम गया । भदौरिया राजपूतोंको अपने इटावेकी रियासतें
उत्कर्षका अवसर शाहजहांके शासनकालमें
मिला । कुछ लोगोंका मत है कि सातवीं इटावा जिलेमें क्षत्रियोंका काफी बोलवाला रहा
शताब्दीमें भदौरिया राजपत अजमेरकी तरफसे है। इटावा 'गजेटियरसे पता चलता है कि दिल्लीके
आये। कुछ लोगोंका कहना है कि ये चन्दवारके चौहान राजा पृथ्वीराजके वंशज सुमेरशाहने पहले चौहान राजपत हैं जो कालान्तरमें भदौरिया कहपहल इटावाको मेवोंसे छीन लिया। फरुखाबाद लाने लगे । १८०५ मे भदौरिया राजपतोंके मुखियाजिलेमें स्थित छिवरामऊसे लेकर जमुना नदी तट ने अंग्रेजोंके विरुद्ध इटावेमें बगावतकी थी इसके तक ११६२ गावोंपर समेरशाहने कब्जा कर लिया था
कारण उन्हें जिलेसे निर्वासित कर दिया गया। इस प्रकार समेरशाहने परतापनेर, चकरनगर और उन्होंने बड़पुरा नामक गांवमें शरण ली। भदौरिया सकरोलीके चौहान वंशकी नींव डाली। १८५७ में बड़पुराके अपने वंशजोंको इसी कारण आज भी जब भारतमें राज्य क्रान्ति हुई तो विद्रोहियोंका साथ अग्रपूज्य मानते है। देनेके कारण चकरनगर और सकरोलीकी जमींदारी इटावेमें कछवाहा राजपूतोंकी भी काफी संख्या है। अंग्रेजोंने जप्त करली। जसोहन और किशनीकी ये राजपूत औरैया और विधूनामें फैले हुए हैं। इस जमींदारी कालान्तरमें घटती गई और ये बहुत छोटे वंशके एक व्यक्तिने रोहतासगढ़का प्रसिद्ध किला से जमींदार रह गये।
बनवाया था। १५२६ ईस्वीमें कछवाहोंने ग्वालियर दसरो राजपत जाति संगरोंकी है जिसका औरैया राज्यके नरवर नामक स्थानको अपनी राजधानी तहसीलमें बोलवाला है। सेगरोंकी उत्पत्तिके सम्ब- बनाया। कहते है कि इसी वंशके एक व्यक्तिने जयन्धमें कहा जाता है कि ये डि-ऋषिकी सन्तान है। पुर राज्यकी नींव डाली थी। कालान्तरमें नरवरके एक किम्वदन्ती यह भी है कि कन्नौजके गहरवार कछवाहा शासक ग्वालियर राज्यके लहार नामक राजपूत राजा जयचन्द की पुत्री देवकलोके पत्र संगर स्थानमें चले आये और यहीं श्राकर बस गये जिसके
कारण लहारके आसपासका स्थान अभीतक कछवंशके संस्थापक है। देवकलीके नामसे औरैया अकबरके शासनकालकी कौन कहे ब्रिटिश शासन
वाहगढ़ या कछवाह घार कहलाता है। मे भी विख्यात रहा है। अकबरके शासनकालके
रियासत परतापनेर इटावेकी सबसे प्राचीन कागजातोंसे पता चलता है कि वर्तमान जगम्मनपुर जमींदारी है । इस रियासतके २१ मुस्सलिम मौजे के राजा अकबरके समयमें कनवारखेड़ाके राजा इटावा जिलेमें हैं और इस रियासतके कुछ गाँव कहलाते थे और कनवारखेड़ा एक परगना था। जालौन मैनपुरी जिलेमे भी है । परतापनेरके चौहान शासकों जिलेमें जगम्मनपुरसे दो मीलकी दूरीपर ध्वस्त कन- का इटवा, एटा और मैनपुरीमें सदियोतक दबदबा वारखेड़ा आजभी अपने प्राचीन वैभवोंको छिपाये हुए रहा है। कहते हैं सन् ११६३ ईस्वीमें दिल्लीके चौहान ध्वस्त अवस्थामें पड़ा है । इटावेके सेंगर वशके राजा पृथ्वीराजकी मृत्युके बाद करनसिंह सिंहासन शासक भरेह के राजा और रुरुके राजा है। पर बैठे। करनसिंहके पुत्र हमीरसिंहने रणथंभौर. भदौरिया राजपूतोंके सम्बन्धमें बतलाया जाता क किलका नाव डाला। कालान्तरम ।
के किलेकी नींव डाली। कालान्तरमें वे इस किलेकी है कि ये लोग आगरेसे इटावा पाये। मुगल शासकों रक्षामें ही मारे गये। उनके पुत्र उद्धवरावने ६ विवाह की इनपर कृपा थी इस कारण परतापनेर और किये जिससे १८ सन्तानें हुई। उद्धवराव जब मरे मैनपुरीके चौहानोंसे अधिक इन लोगोंका तब राज्यका नामोनिशान मिट चुका था। उनकी