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किरण ७८]
इटावा जिले का इतिहास
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सन्तानें अपने लिये उपयुक्त स्थानकी खोजमें थीं। ममय उसने अंग्रेजोंको बहुत मदद पहुँचायी थी। उन दिनों कानपुर फरुखाबाद, एटा, इटावा और चकरनगरके राजाने विद्रोहियोंका साथ दिया था मैनपुरीमें मेव लोगोंकी तूती बोल रही थी। सुमेरसिंह इसलिये अंग्रेजोंने जुहारसिंहको चकरनगरके कई (जो उद्धवरावके होनहार बेटे थे) ने एक छोटी-सी गाँव भेंट कर दिये थे । १८८६ ईस्वीमें राजा लोकेन्द्रसेनाका संगठन किया और मेर्वापर चढ़ाई करदी। सिंहकी मृत्यु हई और उनके पुत्र मुहकमसिंह गद्दोपर सुमेरसिंहके साथ चौहानोंको सामान्य सेना थी पर बैठे। मुहकमसिंह भी बड़ेशाह खर्च थे। रियासतको मेव उनके सामने न डट सके। सुमेरसिंह, जो राजा व्यवस्था इनके शासनकाल में बहुत खराब होगयी। होनेपर सुमेरशाह कहलाये, ने इटावेको अपनी राज- राजाका चरित्र भी अच्छा न था इस कारण इनकी राजा धानी बनाया और जमुनाके तटपर एक किलेकी की उपाधि भो छीन ली गई । मुहकमसिंह १८६७ में नींव डाली। यह वहो किला है जो इटावके टिकसी मर गये। उनके बादहुक्मतेजप्रतापसिंह परतापनेर मन्दिरके पास ध्वस्तावस्थामें अवस्थित है।
की गद्दीपर बैठे। हुमक्तेजप्रतापसिंह उस समय ___ सुमेरशाहने अपने एक भाई ब्रह्मदेवको राजाको नाबालिग थे। उनकी माने अपने पुत्रको नाबालगीमें उपाधि और राजौरका इलाका देदिया। दूसरे माई रियामतका सब इन्तजाम अपने हाथमें लेलिया अजवचन्द्रको चन्द्रवारका इलाका दिया। सुमरशा और उनकी व्यवस्थासे सन्तुर होकर अग्रेजीने १७ हकी आठवीं पीढ़ीमें प्रतापसिंह हुए जिन्होंनप रता- माच १६० में हकमतेजप्रतापसिंहको फिर राजाको पनेरका किला बनवाया। उनके पांच पीढ़ी बाद
उपाधि प्रदान की। गजसिंह हुए जिनका १६-३ ईस्वीमें देहान्त हुआ।
परतापनेर रियासतके इतिहासके साथ ही चकगजसिंहके चार लड़के थे । गजसिंहने अपनी रिया
रनगर और सहसा तालुकका इतिहास सम्बन्धित सत इन चार पुत्रोंमें बांट दी। सबसे बड़े लड़केका
है। चकरनगर राज्यका नींव सुमेरशाहके भाई नाम गोपालसिंह था जिनके हिस्समें परतापनेरका
त्रिलोकचन्द्रने डाली थी। त्रिलोकचन्द्रको ५ वीं पीढ़ी इलाका पड़ा। गोपालसिंह अभी अभी अच्छी तरह
मे चित्रसिह हुए जिन्होंने राजाकी उपाधि प्रहण की। सम्भल भी न पाय थे कि मुसलमानोंने उनपर
मन् १८०३ में इस राज्यके शासक राजा रामबक्शहमला कर दिया और उनके पास जो कुछ था सब
सिंह थे। इन्हांन स्वाधीन राजा होनेकी घोषणा की छीन लिया।
गोपालसिंहकी चौथी पीढ़ीमें राजा दरयावसिंह और अपने आपको शक्तिशाली बनानके लिये ठग और हए जिन्हें अग्रेजोंने राजाकी उपाधि देकर फिर पर- डाकुओका एक जबरदस्त गिरोह संगठित किया। तापने का राजा बनाया। राजा दरयावमिहके उत्त- अंग्रेज इनसे चिढ़े हुए थे ही उन्होंने रामबक्शसिंहराधिकारी चेतसिंह हए जिनके समयमे राज्यकी की रियासतपर कब्जा करनेक लिये फौजकी एक आर्थिक स्थिति बहुत खराब होगयी जिसके कारण टुकड़ी भेजी। राजा साहबने आत्मसमर्पण नहीं परतापनेर रियासतमें केवल ११ गांव रह गये। किया। वे चम्बल नदीको पार कर जंगलमें चले चतसिंह के बाद उनके पुत्र लोकेन्द्रसिंह रियासतके गये । अंग्रेजोंने रियासतपर कब्जा कर लिया बादमें मालिक हुए पर उनको बुद्धि कमजोर थी इस कारण केवल चकरनगर राजा रामवशसिंहको दे दिया उनकी तथा रियासतको व्यवस्था सब लोकेन्द्रसिंहके और बाकी जमींदारीपर 'प्रजोन कब्जा कर चाचा जुहारसिंहको सौंपी गयी। जहारसिंह अंग्रेजों लिया। सहसोंको १८०६ तक अमेजोने अपने का बहुत कृपापात्र था। १८५७ की राज्यक्रांतिके अधिकार में नहीं किया। चकर नगरके राजाके वंशज