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किरण ७-८]
इटावा जिलेका इतिहास
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समयमें उसके नामपर तहसीलका नाम पड़ा। १०, ११वीं शताब्दीका कहा जा सकता है । इस पत्र
बकवर-यह एक बड़ा गांव है जो २६-३६ श्र. में लिखा गया है कि हरिवोके पुत्र तक्षदत्तने अपने क्षांश उत्तर तथा ७६.१२ अक्षांश पूर्व स्थित है। यह पिताके स्मरणमें यह ब्राह्मणोंके वासके लिये दिया। इटावासे ५३ मील दक्षिण पूर्व रैया सड़कपर इसमें उन ६ ब्राह्मणोंका नाम है जो वहां रहते थे। स्थित है। १८७२ में यहां की आबादी २६५० थी जिन- राजाके नामका कोई उल्लेख नहीं है, इसकी लिखामें ब्राह्मण और मुसलमान प्रमुख थे। यहां ब्रिटिश बट स्थानीय महत्वकी है। कहा जाता है कि कुदर. अधिकारियों और भारतीयोंके साथ बहुत-सी लड़ा- कोटसे कन्नौज तक एक भूमिगत मार्ग था । इसमार्गइयां हुई।
में जानेका छोटा रास्ता जो अब भी स्थित है पाताल ___कनचौसी तहसील औरैया-यह ग्राम २६-६५ दरवाजेके नामसे प्रसिद्ध है। कोई भी इस मार्ग में नहीं अक्षांश उत्तरो ७६-२६ अक्षांश पूर्व मे स्थित है और गया है। एक कहानी है कि एक फकोरने इसके रहउससे कच्चीसड़क मिली है यह गांव विधनाके राज. स्यको जाननेका प्रयत्न किया। एक वत्ती और खाना पूतोंके अधिकारमें है। यहांके निवासी अधिकतर लेकर और एक लम्बी रस्सी अपने हाथमें लेकर वह मारवाड़ी धनी व्यापारी है।
यहां उतरा।३दिन ३रात यह रस्सी ढीली जाती कोटरा तहसील औरैया-यह गाँव २६-३३ अक्षांश रही और फिर रोक ली गयी। तबसे उस फकोर और उत्तर ७६-३३ अक्षांश पूर्व जिलेके दक्षिणी पूर्वी कोने रस्सीके विषयमें कुछ भी पता न चला।। मे औरैयासे कालपी जानेवाली सड़कपर औरैया वह किला जिसका भग्न अब भी खेड़ापर स्थित से ५ मील तथा इटावासे ४४ मील जमुनाके किनारे है वह अवधके गबनेर अलमास अलीखां जिसकी स्थित है । १८७२ में इसकी आबादी २७०५, १६०१ कचहरी यहां थी, उसके द्वारा बनवाया गया था। में आबादी घटकर २५६३ हो गई। इसमें ब्राह्मणों की इसमें १६ बुर्जियाँ हैं और यह ब्रिटिश सरकारको दे संख्या अधिक है।
दिया गया। पर तबसे इसकी प्रवनति होने लगी। कुदरकोट तहसील विधना-यह एक बड़ा गांव इसमें लगी गोलीक चिह्न अब भी पाये जाते है। है। उत्तरमें २६.४८ अक्षांश उत्तर ७६-२५ अक्षाश पहले यह एक शक्तिशाली स्थान था पर बादमें पूर्वमें स्थित है । इटावासे २५ मील उत्तर-पर्व कन्नौज यह आधा एक नोलके व्यापारीके हाथ बेच दिया जानेवाली सड़कपर स्थित है। यह बड़ा ही पुराना गया जिसने यहाँ एक फैक्टरी स्थापित को। दक्षिणी स्थान है। यहां पानका बाग था। इस सम्बन्ध में भागमें थाना स्थापित कर दिया गया। अब यह एक कहानी कही जाती है कि एक राजा अपनी थाना नहीं रहा। वहां स्कूलकी स्थापना की गई। सेनाक साथ इस स्थानसे जारहा था। उसको रानीके आजकल नगरके कई मकान इसको ईटोंसे बने हैं। कानका कुण्डल यहीं खोगया। स्थानीय देवीके बलसे १८७२ में कुदरकोटकी आबादी २५६७ थी, १६०१ में यह आभूषण शीघ्र ही मिल गया। इसलिये राजाने यह केवल २२२७ रह गई । इसमें जुलाहोंकी संख्या अपनी कृतज्ञता प्रकट करनेके लिये वहीं एक किला अधिक है जो कपड़े बुननेका काम करते हैं ।
दिया। आर तब उसका नाम कुण्डलकोट कदरेल तहसील भरथना-यह गाँव भरथना पड़ा, बादमें यही कुदरकोट होगया।
तहसोलके उत्तरमें २६:५६ अक्षांश उत्तर तथा ७६.५० ___कन्नौज साम्राज्यके समय यह प्रसिद्ध स्थान था। अक्षांश पूर्वमें स्थित है। यह इटाबासे २४ मील तथा १८५७ में पाए ताम्रलेखको लिखावटको देखकर उसे भरथनासे १४ मील दूर-भरथना ऊसराहार सड़क