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इटावा जिलेका संक्षिप्त इतिहास
(ले० श्रीगिरीशचन्द्र त्रिपाठी, बी०ए० )
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इटावा जिलेका प्राचीन इतिहास अन्धकारपूर्ण है । परम्परागत विचारधाराके अनुसार कुछ लोग जमुना- चम्बल द्वाबेमें स्थित चक्रनगरको महाभारत का एक चक्र बताते हैं। यह अनुमान सन्देहपूर्ण है । आस-पास के बहुत से पुराने टीले, जिनपर प्राचीन काल में प्रसिद्ध नगर और किले स्थितं थे, अब भी वर्तमान है पर इनकी खोज नहीं हुई। कुदरकोट, मृञ्ज और आसईखेड़ा इनमें अधिक प्रसिद्ध है। १२ वीं शताब्दी मे राजपूतोंने जब मेवों तथा इस्माइली जानको खदेड़ दिया तो वे इन्हीं इलाकों में जाकर बसे । अनुमान किया जाता है कि प्राचीन समय में यह इलाका सेगर नदीके उत्तरमे घने जङ्गलोंसे ढका था । दक्षिणी भागमें जङ्गलसे ढके कितने खन्दक थे जो अब भी इस क्षेत्रके प्राकृतिक सौन्दर्यको बढ़ा रहे है ।
यहांके निवासियोंके विषयमें इतना ज्ञात है कि उनका सम्बन्ध मौर्य तथा गुप्त सम्राटोंसे था । ७ वीं शताब्दी के आरम्भ में यह इलाका हषवर्द्धनके राज्य में था की मृत्यु ( ६४ ई० ) के पश्चात् भारत में अशान्ति थी । कन्नौज में ८ वीं शताब्दीमें जिस साम्राज्य की स्थापना हुई वह १०१८ तक रहा बाद में महमूद गजनीने इसका अन्त कर दिया। मुसलमानों के यहांसे चले जानेके पश्चात् गहरबारोंने यहां राज्य स्थापित किया और यह जिला उनके आधीन था। कुदरकोटमें एक ताम्रपत्र मिला है जो १९५४ में चन्द्रदेव के शासनकाल में लिखा गया था । मूज और आसईखेड़ा के विषय में भिन्न भिन्न मत है। कुछ लोगों का कहना है कि ये वे ही किले है जिनपर महमूद गजनीने ई० १०१८ में हमला किया
था । वरन, कुलचन्दका किला तथा मथुरा लेने के बाद सुल्तान कन्नौजकी ओर बढ़ा और बहुत सम्भव है कि वह इसी जिलेसे होकर गुजरा हो । इसके बाद वह मृञ्जकी ओर बढ़ा। यहांके ब्राह्मणोंने मुसलमानोंका सामना किया पर जब उन्होंने अपने को असमर्थ पाया तो उन्होंने शस्त्र रख दिये । पर इनमें से बहुतसे मारे गए। अब सुल्तान आसईके किलेकी ओर बढ़ा। आसई उस समय हिन्दू वीर चन्दलभोर के अधिकार में था । चन्दल योद्धा था और उसने कन्नौज के रायसे भी युद्ध किया था । इसके किलेके चारों और जङ्गल था जिसमें विपैले सर्प रहते थे ।
महमूद गजनवीकी इस यात्रा से यह पता चलता है कि मूञ्ज और आसई कन्नौज के पूर्व में थे । मुसल मान इतिहासकारोंके वर्णनद्वारा इनको स्थितिका पूर्ण निश्चय नहीं किया जासकता ।
जमुना नदी के तटपर बसा हुआ इटावा नगर प्राचीनकालमें व्यापारका केन्द्र था जब रेल और हवाई जहाजों का प्रचलन नहीं हुआ था तब लोग नौका श्री मे बैठकर नदियोंके सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा किया करते थे । इस कारण नदियोंके तटपर बसे हुए नगरोंने काफी उन्नति की ।
इस जिलेके सम्बन्धमें प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री से पता चलता है कि ब्राह्मणोंका इस जिलेमें काफी प्राधान्य रहा है। कनौजिया, लहरिया, संगिहा, सावण हिनारिया और लहरिया इन ६ घरानोंके ब्राह्मण इस जिलेमें जमींदार किसान और अन्य व्यवसायों द्वारा अपनी जोविका उपार्जन करते रहे है । इन ब्राह्मणों में ६ घरानोंकी अलग अलग जमींदारियाँ