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: ॐ अहम :
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स्व-सचातक
विश्व तत्व-प्रकाशक
-मायालाAaATREATE
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* वार्षिक मूल्य ५)*
* इस संयक्त किरणका मूल्य १)*
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नीतिविरोधष्यसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्त,
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वर्ष १० किरण ७-८
वीरसेवामन्दिर ( समन्तभद्राश्रम ), ७३३ दरियागंज, देहली / जनवरी-फर्वरी माघ-फाल्गुन, वीरनिवाण-संवत् २४७६, विक्रम संवत् २००६ । १९५०
श्रीपद्मनन्दि-यतीन्द्र-
विचित
शान्ति-जिन-स्तवन
[गत दिसम्बर मासके अन्तिम सप्ताहमें, श्रीमान् बा० छोटेलालजी कलकत्तावालोंसे मिलनेके लिए जयपुर जानेपर, मुझे पं० श्रीचैनसुखदासजी और पं० कस्तूरचन्दजी एम०ए० की कृपासे भामेर-शास्त्रभण्डारके कुछ गुटकोंको देखनेका अवसर मिला। एक गुटकेको देखते हुए 'शान्ति-जिन-स्तवन' नामका एक सटिप्पणस्तोत्र उपलब्ध हुआ, जो श्रीपचनन्दि-यतीन्द्रका रचा हुआ है और इससे पहले अपने परिचयमें नहीं आया था। स्तोत्र सुन्दर तथा कलात्मक जान पड़ा और इस लिए मैंने पं० कस्तूरचन्दजीसे उसकी साधारण कापी करा ली तथा मूलप्रतिसे स्वयं मिलान करके संशोधन आदिका कार्य सम्पम किया। बादको एक दूसरे गटकेमें इस स्तवनकी एक टिप्पण-रहित प्रति भी मिली है। यह स्तबन बरनगर-गिरोन्द्र के अधीश्वर-बड़नगरके पर्वतपर स्थित शान्तिजिनालयके मूलनायक श्रीशान्तिजिनेन्द्रसे सम्बन्ध रखता है, ऐसा इसके अन्तिम पद्यसे जाना जाता है। इसमें सारङ्ग, हरि हंस कीलाल और शिष प्रादि शब्दोंका प्रयोग एकसे अधिक बार किया गया है और वह प्रत्येक बार भिन्न-भिन्न अर्थको लिए हुए है, जैसे 'सारङ्ग शब्दका प्रयोग १६ बार किया गया है और वह क्रमश: सूर्य, चन्द्र, वज्र, खा, हेम, भ्रमर, कुठार, गज, सागर, कामुक, गरुड, मकंट, हंस, अग्नि, अश्व और मृग जैसे सोलह प्रोंमें प्रयुक्त हुआ है और इस तरह यह स्तवन शब्दालङ्कार तथा अर्थालङ्कारको अच्छी बटाको लिए हुए है। उपयोगी समझकर आज इसे यहां प्रकाशित किया जाता है। -सम्पादक]