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अनेकान्त
[वर्ष १०
काम हो जाय या बस्तु मिलजाय या काम होजाने वृद्धिमें भी सहायक होकर अपने कर्तव्यका एवं
और वस्तु मिलजाने पर वह रकम दे दी जाय और पुरुषार्थका पालन करते है। कोई हीलो हुज्जत नहो यही ज्वलन्त सत्य है । भले ही अन्याय एवं अनीतिमें एक मादकता है जो मदिराहम इसकी महत्ताका पूर्ण अंदाज न लगा सकें, पर की तरह आदमीको अन्धा और प्रमत्त बना देती हैं इसी सत्यके ऊपर ही हमारी शान्ति और हमारा उसका निराकरण ही सुखशान्तिकी जननी हैसारा सुख निर्भर है । हर काममें या हर बातमें पग- अब यह निराकरण चाहे जैसेहो उसके ऊपर सारा पगपर यदि हीलो हुज्जत होने लगे तो जीवन निभना दारोमदार वर्तमान एवं भविष्यका है। प्रतिहिंसाकठिन ही नहीं असंभव हो जाय।
त्मक या नाशकारी उपायों द्वारा ऐसी बातों, असत्यको जानकर उसको रोकना, उसका विरोध व्यक्तियों या कार्यों का शमन करदेना क्षाणिक या प्र. करना और उसके सुधारके उपाय करना ही सत्या- स्थायी होता है। भीतर ही भोतर आग सलगती रहती ग्रह है । अनीति, अन्याय, अनाचार इत्यादि असत्य है । और समय पाकर भड़क सकती है । पर अहिंसाआचरण है या असत्यके ऊपर निर्भर हैं या असत्य त्मक सत्याग्रह द्वारा अन्यायको दूर कर अन्यायीको बढ़ाते और प्रोत्साहन देते हैं इसलिये इनका को ही सधार देना सर्वदाके लिए जड़को ही खतम सक्रिय विरोध करना ही सत्याग्रह या अहिंसा है। करदेता है। सत्याग्रह और अहिंसा एक ही चीजके कार्य कारण
साधारण-अज्ञान एवं अशक्त-मानव जब श्रासम्बधानुसार अलग अलग दो नाम है। अहिंसा
दर्शकी सर्वोच्चता तक नहीं पहुंच पाता है तो आदर्श है और सत्याग्रह व्यवहार या आचरण है।
उसे झठा समझता या कहता है । "अग र खट्टे है" महात्मा गांधीकी अहिंसा और सत्याग्रह भी अना
वालो बात ही वह करता है। पर सफलता मिले या चार, असत्य और अनीतिका खुलकर विरोध करने
न मिले-व्यवधानोंकी कभी संसार या जीवनमें से ही सिद्ध होते है। दबजाना या चुपचाप सहन नहीं है-चारों तरफ कठिनाइयां रुकावटें एवं विघ्नकरलेना तो हमारी किमी कमजोरीके ही फलस्वरूप बाधाए' तथा अनेक सीमाए प्रतिबन्धया लिमिटेशन्स है। चाहे वह कमजोरी-काम,क्रोध, मान,माया, लोभ भर पडे है फिर भी याद को चाहोना व्यक्ति या कायरता, या मांसारिक प्रतिबन्धोंके कारण हो या समाजको सबम अधिक ऊपर उठाने या लेजाने अज्ञान, निराशा और शक्तिहीनताके कारण हो। वाला है। सभी भारतीय संस्कृतियों-धमसिद्धांतों प्रतिहिंसा या वैर साधन तो हर हालतमें हिंसा है एवं दर्शनोंमें ईश्वरत्व प्राप्तिका चरमोद्देश ही
और उसका फल वैर विरोध एवं अशान्तिको उत्तरो- परम पुरुषार्थ या मानव-कर्तव्य निर्धारित किया त्तर बढ़ानेवाला ही होता है। उसे दूर करनेके लिए गया है । पर संसारमें कितने व्यक्ति हैं जो सचमुच ही अन्यायीका विरोध अहिंसमय तरीकोंसे करना आत्मज्ञान या अत्मलाभ करके मोक्ष पा लेते हैं ? आवश्यक है ताकि हिंसा या अन्याय और अनीति- फिर भी इसे बुरा, गलत या त्याज्य कभी नहीं करार का मूल स्रोत भी अत होजाय और भविष्यके लिए दिया गया। यदि मनुष्य ऊचे किसी बात, विषय उस स्रोतसे होनेवाली या फैलने वाली आशान्ति या जगहमें नहीं चढ़ पाता है तो वह उसकी कमजोरी की संभावना भी समाप्त हो जाय । अन्यायीका सुधार या किसी गलती वगैरहके ही कारण है न कि उसकी करके हम अन्याय को तो समाप्त करते ही हैं अन्यायी असफलताके कारण ऊँचे आदर्शका उपलब्ध होना । का भला भी करते है और अन्ततः लोककल्याणकी ही असंभव सर्वदाके लिये और सबके लिये मान