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किरण ७८] अहिंसा और सत्याग्रह
२५१ उसके सुधारकी कामना, उद्योग या उपाय अहिंसा तो वह दूसरी बात है । समाजमें अधिकतर ऐसा है। भाव शुद्ध होना या अशुद्ध होना ही अहिंसा या ही होता है कि संसारी कार्यों में व्यस्त और यह हिंसाके कारण है। किसो पानीमें पड़े जीवको सोचकर कि कौन व्यर्थका झगड़ा और मझट मोल उसको बचानेकी कामनासे ही पूर्ण सावधानी पूर्वक ले अधिकतर लोग अन्यायको और अनीतिको चुप पानीसे निकालनेकी चेष्टामें ही यदि उसे कुछ तकलीफ चाप देखते रहते हैं और कुछ नहीं करते-कहीं कहीं भी होती है या उसका प्राणान्त तक भी होजाता है राजके नियम या तौर-तरीके भो बाधक होते है। तो वह पूर्ण अहिंसात्मक प्रवृत्ति है । पर किसी जीव- आजको कानूनी दुनिया शब्दोंके अर्थपर कितने को मारनेकी मकाम चेष्टा करनेपर भी यदि वह जीव अनर्थीका किला खड़ा कर देती है और उसमें किसी उपाय या कारण-द्वारा बच जाता है तब भी
न्यायकी जगह अन्याय, सत्यको जगह असत्य और वध करनेकी इच्छा रखनेवाला पूण हिंसाका
अहिंसाकी जगह हिंसाका हो बोलबाला प्राय: सर्वत्र दोषी है।
नजर आता है। हिंसा-अहिंसाके दो एक व्यावहारिक या सांसा- जहां सत्य है वहां अहिंसा है, जहां असत्य है रिक उदाहरण यहां दिए जा सकते हैं-
वहां हिंसा है। आज भी संसार सत्यके ऊपर ही
कायम है। सत्यका परिमाण असत्यसे अधिक है। (१)एक पिता शक्ति एवं साधन संपन्न होता हुआ
1. जितना अधिक सत्य रहेगा शान्ति भी उतनी ही भी यदि अपनी संतानको उपयुक्त शिक्षा समय एवं चारों तरफ रहेगी और जितना अधिक असत्यका उपलब्धिके अनुकूल न दे या न दिला सके वा सन्तान विस्तार होगा अशान्तिकी संभावना भी उतना ही द्वारा आगे चलकर होनेवाली अनीतियों और हिमा- अधिकाधिक बढ़ेगी। सत्य सीधा सादा सरल एवं ओंका मूलकारण होनेसे वह पिता हिंसाका दोषी है। प्रछन्न-सा होनेसे कम-सा लगता है जबकि असत्य भड़
(२) किसी व्यक्तिने मरते समय या जीवनके कदार आकर्षक एवं आडम्बरोंसे पूर्ण होनेसे बड़ा या किसी भी समयमें किसी कारणवश अपनी परी
प्रभावकारी-सा लगता है। फिर भी सत्यकी ही विजय सम्पत्तिका या किसी भागका कोई ट्रस्ट कायम कर हाती
होती है यह निश्चित बात है । सत्यके विद्यमान होनेदिया ताकि उसका सदुपयोग विशेष तरहके लोको
का हमें भास हो या नहीं पर विश्वका नियन्त्रण या पकारक कार्यों में हो सके। बादमें उसका देहान्त
शासन होता उसीसे है। एक छोटा-सा उदाहरण होजाय और टस्टी लोग टस्टकी सम्पत्तिका दरुप- सत्यकी विश्वव्यापकता एवं हर जगह हर समय योग करने लगे तो जानकार लोगोंका यह कर्तव्य है विद्यमानताका कुछ आभास दे सकता है । जैसे एक कि उसे ऐसा करने का
रिकशावालसे एक जगहसे दूसरी जगह तक लेजाने ऐसा विरोध करनेमे यदि उन्हें उस टस्टीका कोप- का किराया किसोने कुछ ते किया। उस निदिष्ट
| भी बनना पड़े या और भी सब लौकिक स्थानपर पहुचकर उस व्यक्तिने रिकशावालेको तें हानियां सहनी पड़ें तो वह प्रसन्नतापूर्वक वगैर वैर- की हुई रकम दे दी और रिकशा वालेने चपचाप भावना या बदलेको भावनाके क्षमाभावपर्वक सहन वगैर हीलो-हुज्जतके स्वीकार करली, यही सत्यका कर । यही अहिंसाका आदर्श है। यदि कोई जान- प्रत्यक्ष नमूना है। हमारे जीवनमें प्रत्येक दिन हर कार व्यक्ति किसी डरसे या कारणवश ऐसा नहीं जगह हर काममि ऐसे न जाने कितने ही उदाहरण करता तो वह उसकी कमजोरी, कमी या कायरता मिलते हैं। हर एक तरहके आदमियों को किसी काम ही है-भले हो वह क्षमा और अहिंसाकी दुहाई दे या चीजके लिए एक ते की हुई रकम दे देने पर वह