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किरण ६]
भद्रबाहु-निमित्त-शास्त्र
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अथ तृतीयोऽध्यायः।
नक्षत्रं यस्य यत्पु सस्तूर्णमुल्का प्रताडयेत् । भयं तस्य भवेद् घोरं यतस्तत्कम्पते हतम् ॥१॥
अर्थ-जिस पुरुषके जन्मनक्षत्रको' अथवा नामनक्षत्रको उल्का शीघ्रतासे ताडित करे उस पुरुषको घोर भय होता है । यदि जन्मनक्षत्रको कम्पायमान करे तो उसका घात होता है ॥ १॥ अनेकवर्णनक्षत्रमुल्का हन्युर्यदा समाः । तस्य देशस्य तावन्ति भयान्युग्राणि निर्दिशेत् ॥२॥ ____ अर्थ-जिस वर्ष जिस देशके नक्षत्रको अनेक वर्ण (रंग) की उल्का आघात करे तो उस देश वा प्रामको उग्र भय करनेवाली उसे समझना चाहिए ॥२॥ येषां वर्णेन संयुक्ता सूर्यादुल्का प्रवर्त्तते । तेभ्यः संजायते तेषां भयं येषां दिशं पतेत् ॥३॥ ___ अर्थ-सूर्यसे निकली हुई उल्का जिस वर्णसे युक्त होकर जिस दिशामें गिरे तो उस दिशामें उस सवालको वह घोर भय करनेवालो जानो ॥३॥ नोलाः पतन्ति या उल्काः सस्य सर्व विनाशयेत् । त्रिवर्णा त्रीणि धोराणि भयान्युल्का निवेदयेत्॥४
अथे-यदि नीलवर्णकी उल्का गिरे तो वह सर्वप्रकारके धान्योंको नाश करती है अर्थात उनके नाश होनेकी सचना देती है। और यदि तीन वण की उल्का गिरे तो तीन प्रकारके घोर भयोंको वह बताती है।॥ ४॥ विकीर्यमाणा कपिला विशेष वामसंस्थिता । खण्डा भ्रमन्त्यो विकृताः सा उल्का भयावहाः ॥५॥
अर्थ-विखरी हुई कपिल वर्ण की विशेषकर वामभागमें गमन करनेवाली, घूमती हुई, खण्डरूप एवं विकृत उल्काएँ दिखाई दे तो ये सब भय होनेकी सूचना करती हैं ।।५।। उल्काऽशनिश्च विषायं च प्रपतन्ति यतो मुखाः । तस्यादिशि विजानीयात्ततो भयमुपस्थितम् ॥६॥
अर्थ-उल्का, अशनि और धिष्ण्य जिस दिशामें मुखसे गिरें तो ऐसा जानो कि इस दिशा में भय उपस्थित होगा ॥३॥ सिंह-व्याघ्र-वराहोष्ट्र-श्वान द्वीपि-खरोपमाः । शूल-पट्टिश-संस्थाना धनुर्बाण-गदामयाः ॥७॥ पाश-वज्रासि-सदृशाः परश्वर्द्धन्दुसन्निभाः । गोधा-सर्प शृगालानां सदृशाः शन्यकस्य च ॥८॥ मेषाञ्ज-महिषाकाराः काकाऽऽकृति-वृकोपमाः । शश-मार्जार-सदृशाः पक्ष्योदग्रसन्निभाः ॥६॥ ऋक्ष-वानर-संस्थानाः कवन्ध-सदृशाश्च याः । अलातचक्र-सदृशाः वक्राक्ष-प्रतिमाश्च याः ॥१०॥ शक्ति-लागल-संस्थाना यस्याश्चोभयतः शिरः । सा स्तन्यमाना(!)नागाभाः प्रपन्ति स्वभावतः॥११
अर्थ-सिंह, व्याघ्र (चीता अथवा नाहर), सुअर, ऊंट, तेन्दुश्रा, कुत्ता, गदहा, त्रिशूल, पट्टिश जन्मनपत्रके प्रभावमें नाम नपत्रपरसे विचार करना ।