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किरण ५ ]
उनकी संख्या और संगठनके ऊपर निर्भर करता है। इत्यादि । स्वास्थ्य पर भी इसी तरह असर पड़ता है और परिवर्तन होते हैं । हम जो कहीं किसी खाम वातावरण में एकाएक (अचानक ) बीमार पड़ जाते हैं या दूसरे में जाकर अच्छे हो जाते हैं यह सब इन वर्गाओं की समानता और विभिन्नताके ही कारण होता है | कभी ऐसा होता है कि कोई हवा बह जाती है या किसी छूतवाली बीमारीकी छूत लगने से एकाएक कोई बीमार हो जाता है, इसका मतलब यह है कि उस मनुष्य में वैसी वर्गणाए' बन जाती है पहले से कुछ हों तो उनकी संख्या एकाएक काफी बढ़ जाती है और वे अपना प्रभाव ऊपर कर देती है। दवाइयां ग्वानेसे हमारे अन्दरकी वर्गणाओंमें परिवर्तन होता है और फिर वे वातावरण के जब अनुकूल हो जाती है तब बीमारी छूट जाती हैं । पथ्य, भोजन, विचार, रहनसहन इत्यादि हर एक वस्तुका प्रभाव हर वक्त हमारी वर्गों की बनावटको बदलता रहता हूँ — जैसा कि पहले ऊपर कह आए है - इससे इनका भी असर हम बीमारी वगैरह में या स्वस्थ अवस्था में पूर्ण रूपसे देखते या अनुभव करते है ।
(६) वर्गणाओं के परिवर्तन -हमारे चारों तरफ पुद्गल भरे पड़े हैं- कुछ परामागुरूपमें कुछ मूलसों (atoms) के रूपमे और कुछ वर्ग - ाओं (molecules) के रूपमे । हमारे अन्दर भी शरीरमें ये सब वस्तुएं मौजूद हैं। वर्ग णाओंकी बनावट ऐसी है कि एक जालीसे उसकी उपमा दो जा सकती हैं। उसके भीतर भी यों ही छुट्ट पुद्गल इन तीनों रूपों में बराबर विद्यमान है या आते-जाते रहते है | जिस समय हमारे शरीरकी वर्गणाओंका कम्पन या प्रकम्पन किसी कारण से होता है इनकी बनावटके अन्दर एक हलचल मच जाती है और इस हलचलमे बहुत से परमाणु अपना स्थान छोड़ देते हैं और उनकी जगह नए परमाणु ले लेते हैं। इस तरह इन वर्गणाओंमें परिवर्तन हो जाता है या होता ही
जीवन और विश्वके परिवर्तनों का रहस्य
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रहता है। यह परिवर्तन कम्पनके कमजोर या अधिक जोर पर कम वेश होता है या कम्पनके कारणों द्वारा विशेष तरीके से होनेसे ये परिवर्तन कम-वेश, स्थायी, क्षणिक, कम समय (स्थिति) वाले या अधिक समय (स्थिति) वाले, तीब्र या हलके इत्यादि अनेक प्रकार के होते है। तीव्र कषायोंके कारण जो कम्पन होते हैं उनसे बंध गहरा होता है । बन्धका विभाग हमारे यहां प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग ऐसे चार प्रकार किया गया है और इन सबका जैन शास्त्रों में बहुत कुछ विस्तार के साथ वर्णन है । (८) बाह्य वस्तुओंका प्रभाव और कारण -
हम जो कुछ देखते है उसका बहुत बड़ा असर हमारे ऊपर पड़ता है। हर एक वस्तु या शरीर से अजस्ररूपमं पुद्गलोंका प्रवाह निकलता रहता है । यह प्रवाह इस तरह निकलता रहता है कि जिससे हमें किसी वस्तु के होने का और उसकी रूपरेखा तथा रङ्गका ठीक-ठीक भान या भास होता है । ये पुद्गल परमाणु, मूलसंघ और वर्गणाओंके रूपमें निकलते रहते है और हमारी आंखों पर जब पड़ते है या आंखोंक पसे अन्दर जाते है तो हमे उनके कारण जो अनुभव होता है वही हमारी देखनेकी शक्ति कही जाती है ।
हम जो कुछ भी देखते हैं उसका मूल कारण यह हूँ कि जो वर्गखाए अजस्ररूपसे किसी भी शरीर या वस्तु के हर हिस्सेसे हर समय निकलती रहती हैं वे उस वस्तुके अनुरूप ठोक ठीक वैसी ही रूपरेखा-रङ्गवाली सूक्ष्म वर्गणाए' बना देती हैं या ऐसी वर्गाओं में परिणत हो जाती हैं जो फिर दृष्टिद्वारा दर्शित एवं प्रतिबिम्ब उत्पन्न करनेवाली वस्तुओं में प्रतिबिम्बित होती है या फोटो खिंचने में सहायक होती हैं । इतना ही नहीं, जो वर्गणाएं एक छोटे लेन्स ( Lense) के भीतर घुसती हैं लेन्स की बनावटके अनुसार ही दूसरी तरफ बाहर निकलनेपर उनका फैलाव (Scattering) होता है । सूर्यकिरणें सूर्य से निकली वर्गणाएं ही हैं, उन्हें भी किसी लेन्स द्वारा एकत्रित किसी वस्तुपर जोर से आक्रमण करने के