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अनेकान्त
[वर्ष १०
निर्विकारता द्वारा ही प्रभाव रहित (neu.ralise) वरणमें जो प्रक्रिया होती है वह भी उसीके अनुरूप कर सकता है। ऐसी हालतमें दुष्टके शरीरसे निकली हानिकारक या बुरी और लाभदायक या अच्छो वर्गणाएं तो आसपासमें रहनेवालेके शरीरके होती है । इन दोनोंको मिलाकर ही हमारे ऊपर अन्दर घुसेंगे ही पर यदि वहां कम्पन या भावों जो उनका असर पड़ता है उसे हमारे भावोंके में फरक न आवे तो वे बगैर असर या बध किए अनुसार ही अच्छा या बुरा अथवा उलटा-प्रतिअथवा उस दूसरे मनुष्यकी वर्गणाओंमें कोई क्रियात्मक प्रभाव कहते है। इस तरह अपने भाव, परिवर्तन उत्पन्न किए बिना हो आप-से-आप एक भाषण या व्यवहार अच्छे रखना अपना ही भला तरफसे घुमतो हुई दूसरी तरफ निकल जायंगी, करते है। इत्यादि । इसके विपरीत सत्पुरुषके शरीरसे निक- (१०) भोजन-पानादिका असर-इसी तरह लनेवाली वर्गणाए उसके स्वभावके अनुकूल । शान्त, सरल और समता युक्त होंगी, जिससे
___ जो कुछ हम अन्नपान भोजन करते है उनका तो उसके आस-पासका वातावरण भी उसी मुताविक
एकदम ही सीधा (Direct) असर हमारे अन्दर प्रभावित होगा-और पासके रहनेवाले प्राणीपर
के पुद्गलवर्गणाओंकी बनावटपर पढ़ता है। यों भी उसी तरहका शुभ्र प्रभाव पड़ेगा। सत्पुरुष कुछ
तो इन पुद्गलवर्गणाओंको जैन सिद्धांतने तीन करें भी नहीं तब भी संसारका भला केवल उनकी
मोटे-मोटे भागोंमें विभक्त किया है। कार्माणअवस्थिति मात्रसे ही होजाता है। उनके शरीरसे
वर्गणाए, तेजस वर्गणाए और औदारिकशरीर निकलने वाली वर्गणाए' लोककल्याणरूप होने
रूपी दृश्य पुद्गलशरीरको बनाने वाली वगणाएं। से सारे संसारमें फैलकर अपना भला प्रभाव
ये तीनों ही एक दूसरेसे अभिन्न रूपसे संबन्धित अंकित करती हैं।
और मिली-जुली हुई हैं । हर-एकका प्रदेश पूर्णरूप ___इनके अतिरिक्त भी जब हम किसीके प्रति से दूसरेके प्रदेशोंसे समान और एकमेक मिला अच्छे या बरे भाव रखते हैं या हमारे अन्दर अच्छे हुश्रा हे । केवल इस सांसारिक शरीरसे आत्मा या बरे भाव जब कभी किसी विशेष व्यक्ति के प्रति के निकलने या मृत्युके समय ही तैजस और कर्माण उत्पन्न होते है तो हमारे अन्दर उसके अनसार रूपी सूक्ष्म शरीर तो आत्माके साथ-साथ जाता वर्गणाए' बनकर बड़ी तेजीसे बाहर निकलती हैं है पर यह स्थूल औदारिक शरीर यहीं रह जाता
और उस मनुष्य तक पहुचती हैं ऐसी हालतमें दो है । जिस समय भोजन या पेय हमारे शरीरके काम एक साथ ही होते हैं। एक यह कि ये वर्गणाएं अन्दर जाता है वहां रासायनिक क्रिया-प्रक्रिया उस दूसरे मनुष्यके भावोंके या अपनी चंचलता प्रारम्भ हो जाती है और उनका असर वर्गणाओंक के अनुसार ही उसपर असर करेंगी, न करेंगी या परिवर्तनमें होने लगता है । यह असर हर एक कम-वेश करेंगी । पर इनका एक निश्चित असर वर्गणापर पड़ता है ऊपर देखने में सारी वर्गणाओं उस मनुष्यपर तो अवश्य ही पड़ता है जिसके का समूह यह शरीर एक सत्ता-सा दीखता है या अन्दर इस तरहकी वर्गणाएं अच्छी या बुरी बनीं। रहता है पर अन्दर परिवर्तन हर समय होता रहता कारण दो हैं एक यह कि वर्गणाएं जो अच्छी या है। मनुष्यकी अवस्था या उसका सब कुछ जो एक बुरी बनी सबकी सब तो निकल नहीं जाती, काफी क्षण पहले था दूसरे क्षण वही नहीं रहता-उसमें परिमाणमें अपने अन्दर भी रह जाती हैं और परिवर्तन हो जाता है-भले ही इसे हम महसूस दूसरी वर्गणाओंमें भी अपना असर उत्पन्न करती करें या न करें अथवा देरसे करें, यह दूसरी हैं । इसके अतिरिक्त उनके बाहर निकलनेसे वाता- बात है।