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ॐ अहम्
तस्व-सघातक
विश्व तत्त्व-प्रकाशक
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* वार्षिक मूल्य ५) *
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एक किरणका मूल्य।)
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नीतिविरोधध्यसीलोकव्यवहारवर्तकसम्यक। परमागमस्यबीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥
वर्ष १० । वीरसेवामन्दिर ( समन्तभद्राश्रम ), ७३३ दरियागंज, देहली 1 किरण ६ ) पौषशुक्ल, चीनिर्वाण-संवत् २४७६, विक्रम संवत् २००६ ।
विद्यानन्दलशस्ति
दिसम्बर १६४E
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विद्यानन्द हिमाचल-मुख-पद्म विनिर्गता सुगम्भीरा । प्राप्तपरीक्षा-टीका गङ्गावञ्चिरतरं जयतु ॥ १ ॥ भास्वद्भासिरदोषा कुमति-मत-ध्वान्त भेदने पटवी ।
आप्तपरीक्षाऽलंकृतिराऽऽचन्द्रार्क चिर' जयतु ।। २॥ स जयतु विद्यानन्दो रत्नत्रय-भूरिभूषणः सततम् । तत्त्वार्थार्णव-तरणे सदुपायः प्रकटितो येन ॥३॥
-प्राप्तपरीक्षा-टीकान्तगता "विद्यानन्दरूप हिमाचलके मुखरूप पादहसे निकली हुई सुन्दर-सातिशय गम्भीर जो प्राप्तपरीक्षाकी टोका है वह गंगाकी तरह चिरकाल तक अपवन्त होवे-लोकमें अपने प्रभावादिको विस्तृत करे ॥ सूर्य के समान
दीप्तिमती और कुमतियों तथा कुमतोंके अन्धकारको विनष्ट करने में समर्थ जो प्राप्तपरीक्षाकी निर्दोष अलंकृप्ति-- Y उसे सुभूषित करनेवाली स्वोपज्ञ टीका है वह सूर्य-चन्द्रमाको अवस्थिति पर्यन्त चिर-जयबती होवे । (और) जो V रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र) रूप बहुत बहुमूल्य प्राभूषणोंसे निरन्तर भूषित हैं और जिन्होंने ॐ तत्वार्थरूप समुद्रको तिरनेका उसके पार पहुँचनेका-समीचीन उपाय (अपने पासपरीक्षा-तस्वार्थश्लोकवातिकादि
प्रन्थोंद्वारा) प्रकट किया है वे श्रीविद्यानन्द प्राचार्य सदा जयवन्त हों-जोकहृदयमें अपने तत्वज्ञानका सिक्का * बराबर जमाए रहें।