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डा० कालोदास नागका बेहलोमें भाषण
किरण ६]
की महानता बताना चाहते हो तो आपका यह कर्त्तव्य है कि आप सरकारद्वारा होने वालो जनगणनापर निभर होकर न बैठ जाएं परन्तु उससे पूर्व ही अपनो समस्त शक्ति लगाकर अपनी एक सच्ची तथा महत्वपूर्ण जनगणना कर डालें जिससे आपको सहो तौर पर जैनजातिको संख्या तथा इसकी सामाजिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में महानता का पता पड़ जाएगा । हिंसाकी महानता
आजका युग वह है जिसमें 'अहिंसा' शब्दकी एक अपूर्व ही महानता है। इस एक शब्दके पीछे समस्त संसार तुम्हारा साथ देनेको प्रस्तुत है - यह एक शब्द ही तुम्हें संसारमें जीवित रखनेके लिये पर्याप्त है। हम सबको तो पूज्य स्वर्गीय बापूका अत्यन्त ही अनुगृहीत होना चाहिये कि उन्होंने इस श्रहिंमा सिद्धान्तकी भूली हुई महानता को विश्वमें चमका दिया। आज संसारके लाखों प्राणी संसारमे चारों ओर फैली हुई अशान्तिसे दुःखी होकर हिंसा की ओर झुक रहे है और यह एक ऐसा मौका है जिससे आपको लाभ उठाकर अपनी संख्या २० लाखसे तिगुनी, चौगुनी करनी चाहिए। यदि आप इस समय क्षेत्रमें उतर आएँगे तो करोड़ोंका अपनी ओर खेच लेंगे ।
आपको सोचना यह है कि आपको क्या करना है - आपको किस प्रकार अहिंसा - सिद्धान्तका प्रचार करना है । हिंसा के महान् सिद्धान्तको जातीय सिद्धान्तका रूप न देकर आप विश्व-सिद्धान्तकी भांति प्रचार करना सीखें ।
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इस सिद्धान्तके प्रचारके लिये कुछ त्यागकी भावनाको सीखने की आवश्यकता है । जैनधर्मकी विश्वको अपरिग्रह सिद्धान्तकी पूर्व न
आप जैनियोंका दूसरा मुख्य सिद्धान्त 'अपरिग्रह' - त्याग भावना है । परन्तु खेद है कि आपने अपने जीवन में त्यागकी भावनाको नहीं अपनाया है, जिस समय आप इस त्यागकी भावनाको अपनाकर अहिंसाके सिद्धान्तको प्रचार करनेके लिए कटिबद्ध हो जाएंगे उस समय समस्त संसार आपके इन दोनों सिद्धान्तोंके कारण आपके जैनधर्मका श्रद्धालु हो जायेगा ।
देहली में हिंसा मन्दिर की स्थापनाका सुझाव
मैं सबका अनुगृहीत हूं कि आपने मुझे बुलाकर मेरा सन्मान किया परन्तु मेरे हृदय में इस बात का दुःख है कि आप महानुभाव यहाँ आकर विचार सुन जाते हैं परन्तु अपने इस लोकप्रिय धर्मको प्रचार करनेके कार्य में आगे नहीं बढ़ते । अन्तमें आप सबके लिये मेरा एक सुझाव है कि आप इस स्वतन्त्र भारतकी राजधानी देहली नगर में एक विशाल हिंसा - मन्दिरकी स्थापना कर दें जिसके अन्दर आपके अहिंसाकं श्रवतार तीर्थकरों की मूर्तियां विराजमान हों। और उसके साथ ही उसमें एक विशाल केन्द्रीय अहिंसा-पुस्तकालय हो जिसमें श्रहिंसासंबंधी सर्वप्रकारका साहित्य हो, जिसको मनन करके संसारपर आपके जैनधर्मकी अमिट छाप बैठ जाए ।
- अनु० आदीश्वरलाल जैन, एम.ए.,