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राष्ट्रकूट गोविंद तृतीयका शासनकाल
किरण ६ ]
का पुत्र राजा श्रीवल्लभ दक्षिण में राज्य कर रहे थे ऐसा सीधा अर्थ होता है । इस प्रकार दक्षिण में उस समय शासन करने वाला वह श्रीवल्लभ कृष्ण नृपका पुत्र स्पष्ट सिद्ध होनेसे वह राष्ट्रकूटवंशस्थ प्रथम कृष्णका पुत्र धारावर्ष, कविवल्लभ एवं निरुपम इन उपाधियोंका धारक ध्रुव अथवा धोर (प्राकृतरूप) नामसे पुकारा जानेवाला शासक होना चाहिये, ऐसा सिद्ध होता है । यह धारावर्ष ध्रुव अथवा घोर तृतीय गोविंदका पिता एवं उसके पूर्व शासन करनेवाला पूर्वाधिकारी है ।
ध्रुवका कविवल्लभ उपनाम था इस बातको सभी जानते है । पर क्या इसका श्रीवल्लभ उपनाम भी था ? था । राष्ट्रकूट वंशके रणावलोक कंभराज अथवा कंभदेवनं तृतीय गोविंदके शासनकालमे शक सं० (७) ३० कार्तिक मास पूर्णिमा सोमवार = ई० सन् ८०८ नवम्बर ता० ६ सोमवारको जो दान किया था और जिसका विवरण 'बदनेगुप्ये' के एक ताम्रशासनमे अंकित है; उसमें तृतीय गोविंद के पिता पूर्वोक्त धोर ( पंक्ति ७ ) या ध्रुवको कलिवल्लभ 'निरुपम : कलिवल्लभोऽभूत्' (पंक्ति १६) नाममे सिर्फ लिखा ही नहीं गया है, किन्तु धोरके पुत्र तृतीय गोविंदको 'परमभमहाराजाधिराजपरमेश्वर पृथ्वी वल्लभप्रभूतवर्षश्रीमत्गोविंदराजदेवः धारावर्ष - श्रीवल्लभमहाराजाधिराजस्य पुत्रः' (पंक्ति ४६-५१) ऐसा अ ंकित भी किया गया है ।
हारक
इस प्रकार तृतीय गोविंद के पिता ध्रुवको प्रत्यक्ष
१ Mythic Society's Journal XIV, पृष्ठ २ Mysore Archacological Report, १९२४ पृष्ठ ११२-१५)
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श्रीवल्लभ नामसे उल्लेख किये जानेसे निसंदेह इसका श्रीवल्लभ उपनाम था, यह स्पष्ट सिद्ध होता है।
अत एव जैन हरिवंशपुराण के रचना काल में ई० सन ७८३- ८४ में दक्षिणमे शासन करनेवाला श्रीवल्लभ निसंदेह राष्ट्रकूटशामक धारावर्ष, निरुपम तथा कविवल्लभ उपाधियोंका धारक ध्रुव या धोर ही है, न कि ई० सन् ७६१ मे उसके बाद ही गद्दीपर बैठनेवाला उसका पुत्र तृतीय गोविंद ।
तृतीय गोविंदके बाद ही गद्दीपर बैठनेवाले उसके पुत्र प्रथम अमोघवर्ष नृपतुरंग शिरूरुके शिलालेखका समय शकसं० ७८८ ज्येष्ठ मास अमावास्या आदित्यवार == ई० सन् ८६६ जून ता० १६ आदित्यवार होता है । उस दिन पूर्ण सूर्यग्रहण था ओर वह समूचे भारतवर्षमे दृश्य था । उस समय नृपतु
'गके शासनकालमे ५२वां वर्ष चल रहा था । | शकनृपकालातीतसंवत्सरंगल एलनूरेण्भसेंटनेय (७८८ ) व्ययमेवं सवत्सरं प्रवत्तिसे श्रीमदमोघवर्षनृपतु 'गनामांकितना विजयराज्य प्रवर्धमान संवत्सरंगल् श्रयवतेरहुन् ( २ ) उत्तरोत्तरराज्याभिवृद्धि सलुचिरे'''''''''ज्येष्ठमासदमासेयु श्रादित्यवारमार्ग सूर्य ग्रहणं... ...]
इससे व्यक्त होता है कि नृपतुरंग ई० सन ८१४-१५ मे गद्दीपर बैठा था ।
मी दशामें इसका पिता एवं पूर्वाधिकारी तृतीय गोविद ई० सन ७६१ में राष्ट्रकूट सिंहासनपर आरूढ़ हो ई० सन ८१४-१५ तक राज्य शासन करता रहा यो निस्संदेह सिद्ध होता है। X
1 Indian Antiquary, XII, पृष्ठ २१८ - १९ ।
x 'प्रजासत' के १६४३ के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित श्रास्थानकवि एम० गोविंद पैं के कन्नड लेखका
भाषान्तर ।