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प्राप्त परीक्षाका सुन्दर न या संस्करण
'आप्तपरीक्षा के प्रेमी विद्यार्थी, विद्वान और पाठक अर्सेसे जिस संस्करणको प्रतीक्षा कर रहे थे वह छप कर तैयार हो गया है। इस संस्करणपर विद्वानोंने अपनी सम्मतियां भेजते हुए हर्ष व्यक्त किया है। विच्छिरोमणि कवि-तार्किकचक्रवर्ती प्रो. महादेव शास्त्री पाण्डेय प्रोफेसर हिन्दूविश्वद्यिालय काशी लिखते हैं-'मैंने 'माप्तपरीक्षा' की भाषाव्याख्या, जिसके निर्माता श्रीदरबारीलालजी जैसे विज्ञ हैं, विमर्श-। पूर्वक देखी। इस व्याख्या कर्तृत्वमें अध्ययन, श्रम, गवेषणा तथा भाषासौष्ठव विशद प्रकारसे उपलब्ध । होता है। पदार्थविवेचन स्पष्ट, शुद्ध और अर्खलन भावसे किया गया है। मार्मिक स्थलोंकी पन्थियां : ऐसी उद्घाटित हुई हैं कि उससे अध्येतृवर्गको सुगमता प्राप्त करनेमें विशेष बुद्धिब्यायामका प्रसङ्ग कदा. चित् उपस्थित हो सके। यह प्रयत्न राष्ट्रभाषाके भण्डारके लिए सफल होगा।'
गवर्नमेन्ट संस्कृत कालेज बनारसके सुप्रसिद्ध विद्वान मो० मुकुन्द शास्त्री खिस्ते साहित्याचार्य लिखते है-'प्राज इस 'प्राप्तपरीक्षाके' भाषानुवादको देखकर मुझे परम सन्तोष हो रहा है। इसमें पं० दरबारीलालजी जैनने ऐसीरीतिका श्राश्रयण किया है जिससे कठिन-से-कठिन रहस्य सरलतासे समझमें भाजावें। यह हिन्दी भाषानुवाद केवल साधारण जनोंके लिये ही नहीं, किन्तु संस्कृत जानने वालोंके लिए भी अतीव उपयोगी है, इससे समाजका परम उपकार होगा।'
जैनसमाजके मूर्धन्य प्रसिद्ध मुनि कान्तिमागर सम्पादक 'ज्ञानोदय' भारतीयज्ञानपीठ काशी अपनी सम्मतिमें लिखते हैं-"आप्तपरीक्षा के प्रस्तुत सस्करणमे विद्यानन्दकी दार्शनिक प्रतिभा और प्रौढता पृष्ठ-पृष्ठपर है। | इस सुन्दर संस्करण में सम्पादकने जो प्रयत्न किया है वह अनुकरणीय है।'
गवर्नमेन्ट सस्कृत कालेज बनारसके प्रिन्सिपल श्रीनारायणशास्त्री खिस्ते अपनी संस्कृत भाषामे नियद्ध सम्मतिमें लिखते हैं-'मैंने मुनि विद्यानन्द विरचित स्वोपज्ञटीकासहित आप्तपरीक्षाको आपाततः ही दखा, परन्तु इतनेसे हो स्थालोपुलाकन्यायसे जो परीक्षण हुआ उससे इसकी परम उपादयता अच्छी तरह ज्ञात होगई। इसका सम्पादन भी नवीन प्रणालीस बहुत उत्तम हुआ, जो अत्यन्त प्रमोदजनक है।'
श्रीभूपनाराण झा शास्त्री प्रो. गवर्नमेन्ट संस्कृत कालेज बनारस अपनी संस्कृत पद्यमय सम्मतिमें लिखते है-'हिन्दो व्याख्यासहित 'आप्तपरीक्षा' का, जिसकी स्वोपज्ञति अनेक समीक्षाओंस उल्जसित है, देखकर मन प्रसन्न हुआ। इस व्याख्यामें कोई क्लिष्ट पद ऐसा नहीं रहा जिस स्पष्ट न किया गया हो। अन्तमें निबद्ध परिशिष्ट और भी अधिक मेरे मनको प्रमुदित करता है । इस विद्वन्मान्य उच्च विद्वान्की यह कृति प्रशंसा योग्य है।'
इस संस्करणकी विशेषताएँ निम्न है:
१. इसका प्राक्कथन बहुश्रुत विद्वान् और स्याद्वादमहाविद्यालय काशोके प्रधानाध्यापक पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने लिखा है जो विचारपूर्ण है।
२. इसमें ५४पेजकी प्रस्तावना, ७ परिशिष्ट, मूलप्रन्थको शुद्ध करके उसमें पैराग्राफ, उत्थानिकावाक्य, विषयविभाजन (ईश्वरपरीक्षा आदि) जैसा निर्माणकार्य किया गया है। तात्पर्य यह कि पिछले मुद्रित दोनों संस्करणोंसे इस संस्कणको अधिक लोकप्रिय और उपयोगो बनानेका प्रयत्न किया गया है।
'व्यवस्थापक' वीरसेवामन्दिर, ७/३३ दरियागज, देहली ।