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अनेकान्त
[वर्षे १०
कारण हो अग्नि उत्पन्न हो जाती है। यह भी ठीक है। वर्गणाओंकी बनावटमें बड़ा तोत्र परिवर्तन हो. उसी तरह होता है जैसे फिलामेंटमें हम रोशनीका ता है और एकदम दबी हुई निष्क्रिय वर्गणाए भान करते है जबकि विद्य त प्रवाह जारी रहता है। ऊपर आकर अपना प्रभाव तुरन्त प्रकट रूपमें डालने रंगोंका प्रभाव भो हमारे अन्दरकी वर्गणाओंको एक लगती हैं। इसीके द्वारा सहसा क्रोध बदलकर आक्र. खास तरतीवमें पुनःसंगठन करनेमें बड़ा भारी कार- मणमें परिणत होजाता है या दूसरे निमित्त पाकर गर होता है । उपयुक्त रङ्गोंके चुनाव, सम्मिश्रण या अथवा अपनोंपर हाथ उठानेमे अशक्तता महसूम सम्मेलन और प्रदर्शन द्वारा हरएक तरहकी बीमा- होनेसे मनोभावनाओंमें ऐसा परिवर्तन होजाता है रियां स्वयं अच्छी हो सकती हैं और मनपर अच्छा कि जिससे क्रोधकी वर्गणाए' मलाईमें परिणत हो बुरा प्रभाव भी डाला जा सकता है।
जाती हैं इत्यादि। ___यह बात नहीं कि किसी वस्तुमे लगातार निक- इस तरह जो भी वस्तु जिस अवस्था लनेवाले ये पुद्गल केवल प्रांखोंमें ही घुसते हों
में हम अच्छी या बुरी देखते हैं यदि उस समय ये तो सारे शरीरमें सब जगह घुसते और निकलते
हमारे अन्दर मनोविकार हुए तो उनका असर दुगुना रहते हैं और कम्पनके अनुसार अपना प्रभाव भी
हो जाता है । इसीलिए बुरी वस्तुएं देखकर या अन्य हाल जाते हैं-चाहे स्थायी क्षणिक या कैसा भी
किसी अनिष्ट बातको देखकर घृणा करनेके लिए मना क्यों न हो। हमारे शरीरसे भी इसी तरह पुद्गलका
किया गया है। वस्तुस्वरूपका विचार करके घृणा अजस्र प्रवाह तेजीसे निकलता रहता है। जिसके .
आदि विकारोंको रोकना चाहिए, जिससे हमारे अंदर कारण ही प्रतिबिंब दृष्टिगोचर होते है या फोटो खींचना या उतारना संभव होता है। यह फोटो या
__ की पद्गल बर्गणाओंकी बनावट और समभावी
वर्गणाओं की संख्या ठीक रहे। इसीलिए मनुष्यके प्रतिबिंबों का बनना इन पद्गल वर्गणाओंके निष्का
अन्दर विकार न पैदा हो या कम-से-कम पैदा हो सनके कारण ही होता है। यदि ये पुद्गल वर्गणाएँ किसी वस्तु या शरीरसे अजस्ररूपमें नहीं
इसके लिए यह आवश्यक है कि हमारे चारों तरफ निकलती रहतीं तो फोटो खींचना या प्रतिबिंबोंका
हर वस्तु सन्दर होकर अच्छी तरहसे स्थित हो और बनना या कोई वस्तु देखना या जानना संभव नहीं
उनकी तरतीब य। सजावट ऐमी हो जिससे हमारे होता । जिस समय कोई जोरोंका कम्पन शरीरमें
मनपर बुरा असर न पड़कर अच्छा शुभ असर अन्दर या बाहर या भावोंमें होता है तब पदगलका पड़े। अच्छे प्राकृतिक दृश्योंवाले स्थानोंकी महत्ता प्रवाह और तीव्र हो जाता है-आनेवाले पद्गला
इसी कारण है । सुन्दर-भव्य वस्तुओंका देखना का भी और बाहर निकलनेवाले पदगलोंका भी। हमारे भावाम या हमारी वगणाओंके गठनम जब बदनमे थर-थराहट हो, छींके आवे या कम्प- सुन्दरता या भव्यता लाता है। कुरुचिपूर्ण वस्तओं कम्पी हो या रोमांच हो जाय तो वगणाओं में बड़ा का दृश्य हानिकारक एवं सुरुचिपूर्ण और मनोहर भारी परिवर्तन एकाएक होता है। किसी भी सहसा दृश्योंका असर दोषोंका नाशक है। प्रभावकारी डर-भय या इसीतरह के दूसरे Shocks सुन्दरता द्वारा मनुष्य ही क्यों पशु भी मोहित या घटनाओंका बड़ा भारी असर पड़ता है । आक- एवं प्रभावित होते हैं। मनुष्यकी बनावट या स्वभाव स्मिक आघात Suddeu shocks या आवेगका कुछ ऐसा है कि वह सुन्दरताकी तरफ आकर्षित असर आधी या बबंडर की तरह पड़ता है अथवा होता है। इस आकषणमें अनुराग हो जाना ही प्रेम वषोती नदियों में होनेवाले चकोह्की तरह नीचकी है। प्रेममें ध्यानकी सबसे अधिक एकाग्रता होती चाज ऊपर और ऊपर को चीज नीचे कर देने में होता है। निर्जीव वस्तुओं की अपेक्षा जानदार वस्तुओं