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अनेकान्त
[वर्ष १०
(०८)
श्री मूलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे अन्दकुन्दाम्नाये मूर्तिका तमाम हिस्सा टूट गया है । सिर्फ कुछ भाग श्रीजिनप्रतिमा प्रतिष्ठितेयं । गोलापूर्वशे पदेले सिंघई बचा है । उसीसे कुछ लेख लिया गया है। मतिकी बाजुराय तस्य पुत्र दोय चन्द्रभान-सायकरायन नित्य अवगाहना करीब शा फुट रही होगी। पद्मासन है। प्रणमन्ति। काला पाषाण है। पालिश चमकदार है।
भावार्थ:-सम्बत् १८६१ के वैशाख सदी पंचमी लेख-सं० १२१३ सिद्धान्तीदेवस्वी सा .. सोमवारको श्रीमूलसंघ-बलात्कारगणमें सरस्वती
भावार्थ-मूर्तिके प्रतिष्ठापक सिद्धान्तीदेव- गच्छमें श्रीकुन्दकुन्दाम्नायमें यह श्रीप्रतिमा प्रतिश्री हैं। इन्होंने सं० १२१३ में बिम्ब प्रतिष्ठा कराई। ष्ठित हुई। (नं०८६)
गोलापूर्व वंशमें पैदा होनेवाले पड़ेले सिघई ___यह लेख वेदिकासे लिया गया है । वेदिका देशो बाजुराय उनके पुत्र दो-चन्द्रभान-सायकरायन प्रतिपाषाणकी बनाई गई है, जो कुछ पीला रुख लिये दिन प्रणाम करते हैं। है। इसकी तीन कटनी है। हरएक कटनीमें कंगूरेदार
।०६१) काम है। ऊपरी हिस्सेमें जलधारका जल बाहर जाने के लिये टोंटी है। अनुमानतः अभिषेकके लिये ही
यह मूर्ति सर्वाङ्ग सन्दर है। पीतलकी बनाई वेदी बनाई गई थी।
गई है। करीब ६ इन्च ऊँची पद्मासन है । चिन्ह
सर्पका है। (नीचे) लेख-सं० १२१३ भाषासुदी २ मोमदिन गृहपत्यन्वये कोल्लगोने बाणपुरवास्तव्य तद मुतमाहवा
लेख-सम्बत् १८८१ शभवृषे नाम फाल्गुनसुदी पुत्र हरिषेण उदइ-जलविदू प्रणमन्ति नित्यम् ।
३मोमवासरे ग्राम प्रहामरमेंथे सकल पंचान प्रणमन्ति । (उपर) लेख-हरषेण पुत्र हादव पुत्र महीपाल गंसव.
व भावार्थ-प्राम बहारवासी भकलपंचोंने संबत् सवचन्द्रवाहदेव माहिश्चन्द महदेव एते प्रणन्ति १८८१ के फागुन मुदी ३ सोमवारको बिम्ब प्रतिष्ठा नित्यम् ।
कराई। ___ भावार्थ:-गृहपतिबंशके काछल गोत्रमें पेदा
(नं०६२) होनेवाले वाणपुरनिवासी शाह तद उनके पुत्र
___यह प्रतिमा पीतलकी बनी है। सर्वांगसुन्दर है। माहवा उनके पुत्र माले उनके पुत्र हरिषेण-उदइ
करीब २ इंच उंची पद्माशन है । चिन्ह सका है। जलग्लू-विअइने मंवत १२१३ के अपाडसदी २ लेख-संवत् १६६३ म १ महसह । सोमवारको प्रतिष्ठा कराई।
भावर्थः-यह प्रतिमा संवन १६६३ में प्रतिष्ठित (ऊपरी भागमें) हरिषेण उनके पुत्र हाडदेव उनके पत्र महीपाल
(नं०६३) गांसव-सबचन्द्र-लाहदेव-महिचन्द्र-सहदेव ये प्रणाम
यह प्रतिमा माग सुन्दर है । पीतल को 'नी करते हैं।
हुई है। करीब ३ इञ्च पद्मासन होगी। चिन्ह मर्प(नं. १०) यह मूर्ति पीनलकी बनी हुई है। करीब ६ इंच लेख-संवत् १७२५ वर्षे अगहन बदी .......। पद्मासन होगी। चिन्हकी जगह कुछ नहीं।
भावार्थ:-सं १७२५ के अगहन वदी ५ को देख-संवत १८६१ पैशाख शुक्लपंचम्यां सोमवामरे बिम्ब प्रतिष्ठा हुई।-(भगले अमें ममाप्त)