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किरण ३]
ग्वालियर के किलेका इतिहास और जैन पुरातत्व
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कृतियां अभी तक मर देखनम आई है, शेष नीन अधिकांश वहां ही प्रतिलिपि किये गए हैं। कृतियां और भी अन्वेषणीय है । इनके विशेष परिच- श्वताम्बरसम्प्रदायमें भी ग्वालियरका कम यकं लिये 'वर्णी अभिनन्दन' ग्रन्थ देखना चाहिये। महत्व नहीं है। पूर्वकालमे ग्वालियर राज्यकी
(३) भ० गणभद्र, जो भ० मलयकार्तिक जो मीमा थी उसमें वर्तमान भग्तपुर स्टेटका शिष्य थे उन्होंने अपभ्रंश भाषाम छोटी छोटी १५ बयाना ग्राम, जो पहले कभी बड़े नगरके रूपमें रहा कथाओकी सृष्टि की है। इनका समय वि. की १६ है और जिसका प्राचीन नाम 'श्रीपथायां वी शताब्दीका पूर्वाद्ध है।
पुरि' अर्थात श्रीपथपरि अथवा श्रीपथ नामका नगर (४) कवि परिमलन मं० १६५१ मे, जो खा- था, ग्वालियर राज्यकी मीमाकं अन्दर अन्तनिहित लियरक निवासी थे, आगरेमें आकर श्रीपालच- था। यह वयाना दुवकुण्डसे८० मील उत्तरमें है । दृबरितकी रचना की है । इसके सिवाय और भी ग्रन्थोंका कुण्डक उम शिलालेम्बमे उल्लिखित राजा विजयपाल वहां निमाण हुआ है। जिनके सम्बन्धम मेरा अन्व- जो संभवतः विजयाधिराजकं नामसे ख्यात थे, बयापणकाय चाल है, प्राप्त होनपर उनका परिचय भी नाके शामक थे। इनके राज्यकालमे मं० ११०० का करानेका प्रयत्न किया जावेगा।
एक शिलालेख, जो कम्पाकगन्छके श्वेताम्बराचाय इसके अतिरिक्त ग्रंथोंकी अनेक प्रतिलिपियां श्रीमहश्वर सरिक समय लिखा गया है, इडियन वहां हुई एवं कराई है और व पद्मसिंह द्वारा एक
एण्टीक्वरीम प्रकाशित हुआ है। लक्षग्रन्थ लिखवानका उल्लेख भी ऊपर किया जा
प्रभावकचरितम ज्ञात होता है कि ग्वालियर चका है। उसके सिवाय और भी बहुतम ग्रन्थ
२३ हाथ उन्नत मंदिरम भगवान महावीरकी लेप्यमय समय ममयपर लिखवाए गये है। वि० सं० १४८६
प्रतिमा विराजमान को गई थी। में भ० यशःकीतिन राजा डूगरभिःके राजकालमे
कहा जाता है कि ११ वीं शताब्दीक विद्वान कवि श्रीधरका 'मुकमालचरिउ' और विबुध श्रीधर
प्रद्य म्नमूरिन अपनी वादक्तिसं ग्वालियर का संस्कृत भविष्यदत्तचरितकी प्रतिलिपि अपने
तत्कालीन राजाको अनुरंजित किया था । और
विक्रमकी १२ वीं शताब्दीक विद्वान वादिदेवसूरिन ज्ञानावरणीय कमके क्षयार्थ करवाई थी। सं० १५२१ में ज्ञानार्णव और महाकवि पुष्पदतके आदिपुराण
गंगाधर नामक किसी ब्राह्मण विद्वानको बादमे परा
जित किया था। इनके सिवाय सकलतीर्थस्तोत्रमे भी आदि अनेक ग्रन्थाकी प्रतिलिपियां कराई गई है।
ग्वालियरको नीथक रूपमै उल्लेखित किया गया है इनके अतिरिक्त और भी अनेक ग्रन्थोंकी प्रतिलिपियां
जिनस स्पष्ट है कि ग्वालियरकी श्वेताम्बर साहित्यकी गई है जो यत्र तत्र भंडारोंमे उपलब्ध होती है ।
मे भा प्रसिद्धि रही है। ग्वालियरके स्वय भट्टारकीय शास्त्रमडारम सहनों
उपसंहार ग्रन्थ है जिनकी प्रतिलिपियां भी प्रायः वहां हुई है। उपरक इस सब विवेचनपरस पाठक यह भली वहां शांतिनाथमंदिरके शास्त्रभंडारमे 'ज्ञानागाव' भांति जान सकते है कि जैन पुरातत्वम ग्वालियरका
और आचार्य वीग्नन्दिक 'चन्द्रप्रभ चरित' की सुन्दर कितना महत्वपर्ण स्थान है । और वहां की पुरातत्वएवं शद्ध प्रतिलिपियां मौजूद है। इनके सिवाय विषयक महत्वपूर्ण ऐतिहामिक मामग्रीको लक्ष्यम लश्कर की तेरापंथी और बीसपंथी मन्दिरोके शास्त्र- रखतं हा यह निष्कर्ष निकालना अधिक सुसंगत है भंडारोंम भी अनेक हस्तलिखित ग्रन्थ है जिनमे किवालियर जैनसंस्कतिका प्रभावशाली केन्द्र रहा है।
देखो, अनेकान्त वर्ष ८ किरण ६.७ मे प्रकाशित १ तथा गोप्यगिरौं लेप्यमयविम्बयुनं नृपः । 'अपभ्रंशकथाका जैन साहित्य'।
श्रीवीरमन्दिरं तत्र त्रयोविंशतिहस्तकम् ।।